जब जीवन के हर एक पल को जीने वाली शशि ने पहली बार उस भस्म-मले कपाली को देखा, जो आसमान की ओर शंख उठाए, उसमें अपार शक्ति फूँक रहा था, वह एक पल के लिए थम गई। उसकी यात्रा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संगम घात तक पहुँच चुकी थी। बी.ए. में पढ़ने वाली शशि का इस अघोरी के प्रति आकर्षण शंखनाद था—एक नए धर्म युद्ध का।
यह प्रेम कहानी एक नई दिशा में ले जाने वाली है, जहाँ प्रेम की परिभाषा मिलने और बिछड़ने से परे है। शशि और भैरव की इस यात्रा में आत्मा की गहराइयों में उतरकर उसके सच्चे स्वरूप को उजागर करने का प्रयास किया गया है। दो संसारों का यह मिलन दर्शाता है कि प्रेम एक अनंत यात्रा है, जिसमें खोकर ही खुद को पाया जा सकता है।
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