भारत एक निश्चित भौगोलिक सीमाओं से आबद्ध एक आध्यात्मिक देश है जिसकी भौगोलिक सीमा से परे एक आध्यात्मिक औरा भी है,जिसका प्रभाव अनादि काल से वैश्विक स्तर पर भी रहा है,और इसी के आलोक से हमारा वर्तमान भी आलोकित होता रहता है।आज हम भारतीय स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मानते हुए यह महसूस कर रहे हैं कि हमने विकास और परिष्कार एक लम्बी यात्रा के अनेकानेक पड़ावों में स्वाधीनता आन्दोलन एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।स्वाधीनता आन्दोलन का सर्वाधिक महत्व इस बात में है कि इस आन्दोलन ने पूरे भारत के एकबार फिर से संगठित किया।क्षेत्रीय आकांक्षाओं और क्षेत्रीयता बोध से ग्रसित भारतीय जनमानस के स्वजागरण की दिशा में इस आन्दोलन का विशेष महत्व है। स्वजगारण के माध्यम से एक लम्बे समय तक स्वबोध से वंचित समाज में चेतना को जागृत करना अपने आप में महत्वपूर्ण है।
भारतीय स्वजगारण इस अर्थ में और भी महत्वपूर्ण है कि यह अपने विस्तार में पूरे भारत में देखने को मिलता है । भाषा,रहन-सहन,जातिगत आग्रह और क्षेत्र की सीमाओं से परे जाकर भारतीय समाज ने अपने स्व की प्राप्ति के निमित्त संगठित प्रयास किया । इस स्वजगारणके अनेक चरण देखने को मिलते हैं। स्वजगारण के विविध चरणों पर दृष्टिपात करना आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रासंगिक ही नहीं अपरिहार्य है ।