“त्वदीय पाद-पंकजम् — नमामि देवी नर्मदे / नर्मदे हर” एक आध्यात्मिक साहित्यिक उपन्यास है जो नर्मदा नदी की पावन परिक्रमा के माध्यम से भौतिक यात्रा के साथ-साथ गहन आत्मिक परिवर्तन की कथा प्रस्तुत करता है। अमरकंटक, ओंकारेश्वर, महेश्वर और भरूच जैसे पवित्र स्थल केवल भौगोलिक पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि जीवंत और रूपांतरित करने वाली चेतन उपस्थिति के रूप में उभरते हैं। रेवा और सोनभद्र की प्राचीन कथा से गुंथा यह कथानक प्रेम, अहंकार, आत्म-समर्पण और आत्मबोध जैसे शाश्वत मानवीय भावों को प्रतिबिंबित करता है। रवि और अन्या की यात्रा के माध्यम से यह उपन्यास भौतिक आसक्तियों से मुक्ति, चिरंतन प्रेम की खोज तथा लोक-संस्कृति और अद्वैत दर्शन के माध्यम से व्यक्त शांत और गहन अनुभूतियों को उजागर करता है। अपने मूल में यह कृति जीवन को एक सतत परिक्रमा के रूप में प्रस्तुत करती है, जहाँ अंतिम विसर्जन मुक्ति, पूर्णता और आध्यात्मिक जागरण का सशक्त प्रतीक बन जाता है।
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