सुपर्णा भी औरों की तरह ऊँघने लगी थी। मगर उसे इतना पता था कि वह ऊँघ रही थी। बीच-बीच में एक आंख खोल कर यह इत्तला जरूर कर लेती थी कि उसके धान का ढेर सही सलामत था। नींद के मारे पूरी आंख नहीं खुल पा रही थी। नींद के बोझ से कई बार तो नीचे भी लुढ़क गयी थी। तभी अचानक से उसे एहसास हुआ कि उसे पैर पकड़कर कोई खींच रहा है...