रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि दो चीजो़ं को थाम लो गुमराह ना होगे, एक कुरआन और दूसरी अहलेबैत लेकिन अफसोस कि हमने इन दो चीजो़ं से ही सबसे ज़्यादा दूरी बनाकर रखी है।
शिया-सुन्नी के बीच का इख़्तिलाफ़, हमेशा से चला आ रहा है और शायद आगे भी चलता रहेगा लेकिन अब ज़रूरत है कि हम एक दूसरे के इख़्तिलाफो़ं को समझें, कलमे और विलायत की बुनियाद पर एक होने की कोशिश करें। ये खा़ई बहुत गहरी है लेकिन मुहब्बत से इसे भी भरा जा सकता है।
मौला अली की फजी़लत में लिखने की एक छोटी सी कोशिश। ये किताब अपने आप में कई राज़ समेटी है।