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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
उम्मत ने बाद ए पर्दा ए रसूल ही दीन ए हक़ छोड़ दिया और तख़्लीक़ी दीन के पैरोकार बन गए। इमाम अली अलैहिस्सलाम से लेकर इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम तक, हर एक आईम्मा ए अहलेबैत अलैहिमुस्
उम्मत ने बाद ए पर्दा ए रसूल ही दीन ए हक़ छोड़ दिया और तख़्लीक़ी दीन के पैरोकार बन गए। इमाम अली अलैहिस्सलाम से लेकर इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम तक, हर एक आईम्मा ए अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम ने तख़्लीक़ी दीन के मुकाबले में हक़ीक़ी दीन बुलंद किया है और इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम भी आकर, दीन ए हक़ का अलम बुलंद करेंगे। फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने दीन ए हक़ को बचाने के लिए सबसे पहले तख़्लीक़ी दीन के ख़िलाफ़ बग़ावत की। हक़ीक़ी दीन को बुलंद करने की कोशिशों को रोकने के लिए ही तख़्लीक़ी दीन की पैरोकार उम्मत ने हर दौर में इमाम अली, बीबी फ़ातिमा, आईम्मा ए अहलेबैत व आल ए रसूल को शहीद कर दिया।
हमने ये किताब लोगों को बेदार करने की नियत से लिखी है ताकि हम मक़सद ए करबला व मक़सद ए इमाम को समझें और हक़ीक़ी दीन को ज़िंदा करने की कोशिश करते रहें। हमें चाहिए कि हम, इमाम ए क़ायम की नुसरत के लिए जीने-मरने वाले बन जाएँ। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व अला आले मुहम्मद।
This Ummah deviated from the Haq Deen (the straight path) soon after the demise of Rasulullah Sallallahu Alaihe Wa Ala Aalihi Wa Sallam, becoming followers of Takhliqi Deen. From Imam Ali Alaihissalam to Imam Hasan Askari Alaihissalam, every Imam of Ahl al-Bayt sought to uphold Haqiqi Deen in the face of Takhliqi Deen. Imam Mehdi Alaihissalam will also reappear to raise the flag of Haqiqi Deen.
Fatima Salamullah Alaiha was the first to rise against Tak
This Ummah deviated from the Haq Deen (the straight path) soon after the demise of Rasulullah Sallallahu Alaihe Wa Ala Aalihi Wa Sallam, becoming followers of Takhliqi Deen. From Imam Ali Alaihissalam to Imam Hasan Askari Alaihissalam, every Imam of Ahl al-Bayt sought to uphold Haqiqi Deen in the face of Takhliqi Deen. Imam Mehdi Alaihissalam will also reappear to raise the flag of Haqiqi Deen.
Fatima Salamullah Alaiha was the first to rise against Takhliqi Deen in order to preserve the Deen of Allah. Imam Ali, Imam Hasan, and the entire progeny of Ahl al-Bayt Alaihimussalam were martyred in this struggle.
I have written this book with the intention of awakening people to understand the significance of Karbala and the motive of Imam Hussain Alaihissalam, urging them to strive to revive Haqiqi Deen. Our sole aim should be to live and die in support of Imam al-Qayam.
Allahumma Salle Ala Muhammad wa Ala Aale Muhammad.
This Ummah deviated from the Haq Deen (the straight path) soon after the demise of Rasulullah Sallallahu Alaihe Wa Ala Aalihi Wa Sallam, becoming followers of Takhliqi Deen. From Imam Ali Alaihissalam to Imam Hasan Askari Alaihissalam, every Imam of Ahl al-Bayt sought to uphold Haqiqi Deen in the face of Takhliqi Deen. Imam Mehdi Alaihissalam will also reappear to raise the flag of Haqiqi Deen.
Fatima Salamullah Alaiha was the first to rise against Tak
This Ummah deviated from the Haq Deen (the straight path) soon after the demise of Rasulullah Sallallahu Alaihe Wa Ala Aalihi Wa Sallam, becoming followers of Takhliqi Deen. From Imam Ali Alaihissalam to Imam Hasan Askari Alaihissalam, every Imam of Ahl al-Bayt sought to uphold Haqiqi Deen in the face of Takhliqi Deen. Imam Mehdi Alaihissalam will also reappear to raise the flag of Haqiqi Deen.
Fatima Salamullah Alaiha was the first to rise against Takhliqi Deen in order to preserve the Deen of Allah. Imam Ali, Imam Hasan, and the entire progeny of Ahl al-Bayt Alaihimussalam were martyred in this struggle.
I have written this book with the intention of awakening people to understand the significance of Karbala and the motive of Imam Hussain Alaihissalam, urging them to strive to revive Haqiqi Deen. Our sole aim should be to live and die in support of Imam al-Qayam.
Allahumma Salle Ala Muhammad wa Ala Aale Muhammad.
इस किताब में मैंने शिया-सुन्नी के बीच के इख़्तिलाफ़ दूर करने की कोशिश की है। मेरा ये मानना है की शिया-सुन्नी के दरमियान इख़्तिलाफ़ कम और ग़लत'फ़हमियाँ ज़्यादा हैं। बाकि कुछ मौलव
इस किताब में मैंने शिया-सुन्नी के बीच के इख़्तिलाफ़ दूर करने की कोशिश की है। मेरा ये मानना है की शिया-सुन्नी के दरमियान इख़्तिलाफ़ कम और ग़लत'फ़हमियाँ ज़्यादा हैं। बाकि कुछ मौलवियों की साज़िश है।
शिया-सुन्नी के बीच की दूरियों को मिटाया तो नहीं जा सकता लेकिन कम ज़रूर किया जा सकता है। मैंने एक छोटी सी कोशिश की है।
इस किताब में आपको उन ग़लत'फ़हमियों के बारे में जानने मिलेगा जो शिया-सुन्नी के बीच इख़्तिलाफ़ बढ़ाने जानबूझकर डाली गईं। ज़रूर पढ़ें।
इस किताब में मैंने सरकार अबु तालिब अलैहिस्सलाम के लिखे व पढे़ अश्शारों को एक जगह जमा करने और उनका ट्रांसक्रिपशन लिखते हुए, हिंदी में तर्जुमा व थोड़ी तफ़्सीर करने की कोशिश की है।<
इस किताब में मैंने सरकार अबु तालिब अलैहिस्सलाम के लिखे व पढे़ अश्शारों को एक जगह जमा करने और उनका ट्रांसक्रिपशन लिखते हुए, हिंदी में तर्जुमा व थोड़ी तफ़्सीर करने की कोशिश की है।
अहलेबैत अलैहिस्सलाम के चाहने वालों के लिए ये किताब किसी तोहफे़ से कम नहीं और दुश्मनाने अहलेबैत के लिए तमाचे की तरह है।
मिम्बर ए रसूल पर बैठकर, मौलवी हज़रात ने हर दौर में, रसूलुल्लाह के प्यारे चचा, मौला अली के बाबा, हसनैन करीमैन के दादा पर झूठी तोहमतें व कुफ्र के फत्वे दिए हैं।
ये किताब पढ़कर आप खुद फैसला करें कि, "ईमान ए अबुतालिब क्या था?"
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व अला आले मुहम्मद
Kis tarah ummat ka ek bada tabka haqeeqi islaam ko chhor kar takhleeqi islaam ka pairo'kaar ho gaya?, Kis tarah Allah ke Deen E Islaam ki jagah, Yazeedi maulviyo'n ke takhleeqi Deen E Islaam ko asal islaam bana kar pesh kiya aur bad'naam kiya. Iss kitaab mey dono'n islaam ke beech ka farq batane ki koshish ki hai.
Kis tarah ummat ka ek bada tabka haqeeqi islaam ko chhor kar takhleeqi islaam ka pairo'kaar ho gaya?, Kis tarah Allah ke Deen E Islaam ki jagah, Yazeedi maulviyo'n ke takhleeqi Deen E Islaam ko asal islaam bana kar pesh kiya aur bad'naam kiya. Iss kitaab mey dono'n islaam ke beech ka farq batane ki koshish ki hai.
किस तरह उम्मत का एक बडा़ तबका हकी़की़ इस्लाम को छोड़कर तख़्लीकी़ इस्लाम का पैरोकार हो गया?, किस तरह अल्लाह के दीन ए इस्लाम की जगह, यजी़दी मौलवियों के तख़्लीकी़ दीन ए इस्लाम को असल
किस तरह उम्मत का एक बडा़ तबका हकी़की़ इस्लाम को छोड़कर तख़्लीकी़ इस्लाम का पैरोकार हो गया?, किस तरह अल्लाह के दीन ए इस्लाम की जगह, यजी़दी मौलवियों के तख़्लीकी़ दीन ए इस्लाम को असल इस्लाम बनाकर पेश किया और बदनाम किया। इस किताब में दोनों इस्लाम के बीच का फ़र्क़ बताने की कोशिश की है।
इस किताब में वो सवाल-जवाब मौजूद हैं, जो उम्मत ए रसूल ने इतरत ए रसूल यानी अपने दौर के इमाम अलैहिस्सलाम से किए, सवाल करने वाले लोग, इमाम बाकि़र अलैहिस्सलाम के दौर के थे इसलिए आप इमाम ब
इस किताब में वो सवाल-जवाब मौजूद हैं, जो उम्मत ए रसूल ने इतरत ए रसूल यानी अपने दौर के इमाम अलैहिस्सलाम से किए, सवाल करने वाले लोग, इमाम बाकि़र अलैहिस्सलाम के दौर के थे इसलिए आप इमाम बाकि़र अलैहिस्सलाम के जवाब मौजूद हैं।
किताब में, अल्लाह की मारिफ़त, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम, चौदह मासूमीन, बारह इमाम, कुरआन, इस्लाम, ईमान, तिब्ब, शरियत, दीन ओ दुनिया से जुडे़ मौजू़ओं पर सवाल और उनके जवाब मौजूद हैं।
हर मोमिन और मुसलमान को चाहिए की कुरआन ओ अहलेबैत अलैहिस्सलाम को थामने वाला बने।
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व अला आले मुहम्मद
यूँ तो हर दौर में ही मौला अली अलैहिस्सलाम की फजी़लतों को दबाने की कोशिशें की गई हैं और आज भी खा़रजियों और नासबियों की कोशिश ये ही रहती है कि जिक़्र ए अहलेबैत अलैहिस्सलाम को मिटाय
यूँ तो हर दौर में ही मौला अली अलैहिस्सलाम की फजी़लतों को दबाने की कोशिशें की गई हैं और आज भी खा़रजियों और नासबियों की कोशिश ये ही रहती है कि जिक़्र ए अहलेबैत अलैहिस्सलाम को मिटाया जा सके, हालाँकि ये मुमकिन नहीं।
इस किताब में मैंने इमाम नसाई रहमातुल्लाह आलेह की किताब ख़साइस ए अली अलैहिस्सलाम को आसान हिंदी भाषा में लिखने की कोशिश की है। उम्मीद है कि आप सबको इस किताब के ज़रिए, फजी़लत ए अहलेबैत को समझने में आसानी होगी।
- सैयद शादाब अली
हकी़की इश्क, इश्क़ ए अहलेबैत और तसव्वुफ़ की नज़्मों से भरी किताब। इश्क़ को बाँधकर नहीं रखा जा सकता, इश्क को हिस्सों में नहीं बाँटा जा सकता, इश्क़ की तफ़्सीर बयाँ नहीं की जा सकती, इ
हकी़की इश्क, इश्क़ ए अहलेबैत और तसव्वुफ़ की नज़्मों से भरी किताब। इश्क़ को बाँधकर नहीं रखा जा सकता, इश्क को हिस्सों में नहीं बाँटा जा सकता, इश्क़ की तफ़्सीर बयाँ नहीं की जा सकती, इश्क़ बस इश्क़ है। आशिको़ं ने जब इसे महसूस किया और जब इसकी आवाज़ सुनी तो बस इश्क़ की तरफ़ अपने कदम बढा़ दिए। इश्क़ फ़ना से बका़ तक का सफ़र करवाता है। मुहब्बत अगर पाक़ हो तो हर मुहब्बत की आखि़री मंजि़ल अल्लाह ही है। तो चलिए, इस किताब के ज़रिए, मजाजी़ इश्क़ से कहीं दूर जाकर, सिर्फ़ इश्क़ ए हकीकी़ में खोने की कोशिश करते हैं।
रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि दो चीजो़ं को थाम लो गुमराह ना होगे, एक कुरआन और दूसरी अहलेबैत लेकिन अफसोस कि हमने इन दो चीजो़ं से ही सबसे ज़्यादा दूरी बनाकर रखी है।
रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि दो चीजो़ं को थाम लो गुमराह ना होगे, एक कुरआन और दूसरी अहलेबैत लेकिन अफसोस कि हमने इन दो चीजो़ं से ही सबसे ज़्यादा दूरी बनाकर रखी है। शिया-सुन्नी के बीच का इख़्तिलाफ़, हमेशा से चला आ रहा है और शायद आगे भी चलता रहेगा लेकिन अब ज़रूरत है कि हम एक दूसरे के इख़्तिलाफो़ं को समझें, कलमे और विलायत की बुनियाद पर एक होने की कोशिश करें। ये खा़ई बहुत गहरी है लेकिन मुहब्बत से इसे भी भरा जा सकता है। मौला अली की फजी़लत में लिखने की एक छोटी सी कोशिश। ये किताब अपने आप में कई राज़ समेटी है।
All the Books, articles and novels about love I had read and all the movies based on love stories I have seen have one thing in common and it is a happy ending. Scripts has an end when Lovers finally meet with each other. But according to me , Love starts after a relationship turns into a marriage. Before starting their story you should know basic things about the book and its main characters. The characters of my book are not lovers and I am not w
All the Books, articles and novels about love I had read and all the movies based on love stories I have seen have one thing in common and it is a happy ending. Scripts has an end when Lovers finally meet with each other. But according to me , Love starts after a relationship turns into a marriage. Before starting their story you should know basic things about the book and its main characters. The characters of my book are not lovers and I am not writing on the struggle and madness of two people who can do anything for each other. Instead of that, My book is all about Love of a husband and his wife and the story revolves around their love and care for each other.
इस किताब में मैंने , इस्लाम की वो ज़रूरी तालीम और तर्बियत के बारे में लिखने की कोशिश की है जो हमारी " बुनियाद " बनाती है । इसके साथ ही साथ पश्चिमी सभ्यता की तरफ़ झुक रहे लोगों , खा़सकर
इस किताब में मैंने , इस्लाम की वो ज़रूरी तालीम और तर्बियत के बारे में लिखने की कोशिश की है जो हमारी " बुनियाद " बनाती है । इसके साथ ही साथ पश्चिमी सभ्यता की तरफ़ झुक रहे लोगों , खा़सकर मुसलमान समुदाय को , हक़ बताने की भी कोशिश की है । वैसे तो ये किताब हर उम्र के व्यक्ति के लिए फायदेमंद साबित होगी लेकिन मैं चाहता हूँ , युवा वर्ग इसे जरूर पढे़ । मुआशरे में बदलाव के लिए एक ज़रूरी किताब ।
मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ और इस किताब में मैंने पश्चिमी सभ्यता की तरफ झुक रहे लोगों , खा़सकर मुसलमान समुदाय को , भारतीय सभ्यता के साथ साथ इस्लाम की वो जरूरी तालीम और " तर्बियत " बताने
मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ और इस किताब में मैंने पश्चिमी सभ्यता की तरफ झुक रहे लोगों , खा़सकर मुसलमान समुदाय को , भारतीय सभ्यता के साथ साथ इस्लाम की वो जरूरी तालीम और " तर्बियत " बताने की कोशिश की है जो मुआशरे में बहुत जरूरी है । वैसे तो ये किताब हर उम्र के व्यक्ति के लिए फायदेमंद साबित होगी लेकिन फिर भी मैं चाहता हूँ की युवा वर्ग इसे जरूर पढे़ । एक जरूरी किताब ......
मैं अपने देश , अपने लोगों से बहुत प्यार करता हूँ । देश , कौम और लोगों के भले के लिए सोचता हूँ । मेरे हिसाब से देश को उन्नति और खुशी के मार्ग पर लाने के लिए बहुत कुछ बदलाव की जरूरत है और
मैं अपने देश , अपने लोगों से बहुत प्यार करता हूँ । देश , कौम और लोगों के भले के लिए सोचता हूँ । मेरे हिसाब से देश को उन्नति और खुशी के मार्ग पर लाने के लिए बहुत कुछ बदलाव की जरूरत है और ये बदलाव लाने के लिए जरूरी है कि सबसे पहले हम खुद में बदलाव लाएँ । यूँ तो मैं बहुत पहले से ही लिखता आ रहा हूँ लेकिन आज तक जो भी लिखा वो बंद कमरे में लिखा । अब लगता है शायद जरूरत है अपने विचारों को आप सबसे बाँटने की ये मेरी जिंदगी की पहली किताब है , उम्मीद है आप सबको पसंद आएगी । अगर आप सबने मेरे विचारों और मेरी कलम को पसंद किया तो जल्द ही कुछ और भी आप सबके सामने रखने की कोशिश करूँगा । आपका अपना सैयद शादाब अली
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