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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palशेर-ओ-शायरी की मेरी पहली पुस्तक "इबादत -ए - इश्क़" का प्रथम संस्करण एमेजॉन, पोएटिक इमैजिका में खूब प्रचलित हुआ। मेरी उम्मीद से भी ज्यादा। मुझे पाठकों की बेइंतहा मोहब्बत नसीब हुई। मेरी उम्मीद यकीन में तब्दील हो गई। "इबादत -ए - इश्क़" का यह द्वितीय संस्करण एक ऐसी पुस्तक है जहाँ न सिर्फ कविताएं एवं शायरी मिलेगी, अपितु एक सार्थक प्रयास भी दिखेगा। प्रयास भावनाओं के हृदय स्पर्शी प्रदर्शन का, प्रयास अनुभवों को अंकित करने का और साथ ही एक प्रयास अपने हुनर को पंख देने का। सामाजिक तौर पर आज हम पहले की अपेक्षा अधिक विकसित हो चले हैं। समझ में, परिवार में, हमारे सोच में कई तब्दीलियाँ हुई हैं। रिश्तों के इर्द गिर्द सहमी बिखरी संवेदनाओं, उनमें सिमटे एहसास, एहसास एवं जज़्बातों से अंकुरित होता शब्द संसार, हर तरह से अनुकूल बदलाव आए हैं। बस इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर, संवेदनाओं को समेंटकर एक माला में पिरोने का निष्ठ प्रयास है "इबादत -ए - इश्क़" का द्वितीय संस्करण। पुस्तक के शुरूआती भाग ‘जायज़ा’ में आप कुछ बेहतरीन और नामचीन पाठकों की प्रतिक्रिया पढ़ सकेंगे। यकीन मानिए, मेरी किताब को लेकर उनके अनुभवों को पढ़कर मेरी आंखें भर आईं। मानों मेरा लिखना सफल रहा। साथ ही आप सभी के सहुलियत के नाते, कठिन शब्दों के अर्थ समझाने का भी प्रयास किया है मैंने। आशा है, मेरे हर एक प्रयास को उम्मीद से भी बढ़कर पसंद किया जाएगा। इस पुस्तक को आप सभी की ओर से खूब सराहना मिले।
रितु महिपाल
रितु की कलम से …
प्रिय पाठकों, मेरी पहली ही पुस्तक " इबादत-ए-इश्क़ " का द्वितीय संस्करण आपके कर कमलों में है। मुझे असीम खुशी का एहसास हो रहा है। मैं तो एक नौसिखिया, नव हस्ताक्षर हूं शेर-ओ-शायरी की दुनिया में। सच कहूं तो प्रथम प्रयास में ही मुझे जो बेतहाशा कामयाबी हासिल हुई है, प्रारंभिक सफलता के जो सोपान चढ़ी हूं, यही सुखद अनुभूतियां मुझे उत्साहित कर रही हैं। ऊर्दू भाषा की खूबसूरती है कि बहुत कम लफ्जों में बहुत कुछ कह देना। यही विशेषता हिंदी की है। मेरी मात्र भाषा हिन्दी भले ही है , मगर मैं उर्दू भाषा की दीवानी हूं, दोनों ही ज़बान से मैं बेइंतहा मुहब्बत करती हूं दोनों भाषाओं में लिखती हूं। मुझे लेखन के रास्ते पर सदैव सकारात्मक सहयोग मिले हैं, और निःसंदेह इससे मेरा सफर आसान हो गया। मैं तहे दिल से आभारी हूं अपने सभी परिजनों का। मैं उन सभी लोगों को तहे दिल से धन्यवाद करती हूं जिन्होंने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से मेरी हौसला अफजाई की, मार्गदर्शन किया। हकीकत में, मुझे शेर-ओ-शायरी का न तो तजुर्बा था न इल्म मगर इन्सानी जज्बातों को उकेरने की ख्वाहिश जरूर थी। लिखने का शौक केवल शौक ही रह जाता यदि मुझे मेरे अपनों का सहारा न मिलता। मेरी हमेशा से चीजों या बातों की गहराई तक समझ रखने में दिलचस्पी थी, आज भी मैं ऐसी ही हूं। शायद हर लेखक ऐसा ही होगा! बातों को समझना और उसके दोनों पक्षों पर सार्थक विचार करना, एवं अंत में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना, यह मेरे गुण रहे हैं। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, और मैं दोनों पहलुओं पर ध्यान देने में विश्वास रखती हूं। मेरी पुस्तक इन्हीं पहलुओं का आइना है।
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