आँखों का इंद्रधनुष
जीवन भावनाओं, स्मृतियों और क्षणभंगुर पलों का एक विस्तृत रंगमंच है — जहाँ हर रंग अपनी विशिष्टता लिए हुए भी मानवीय अनुभूति में समा जाता है। आँखों का इंद्रधनुष इन्हीं सूक्ष्मताओं की काव्ययात्रा है, जहाँ देखा हुआ और महसूस किया हुआ एकाकार हो जाता है। ईश्वरचंद्र मिश्र की कविताएँ बचपन के गाँव की महक, रिश्तों की अनकही गूँज और पितृत्व की मधुर अस्त-व्यस्तता को शब्द देती हैं — जैसे उनके नाती उनके लिखने को 'होमवर्क' समझ बैठते हों।
यहाँ शब्दों में वह चित्रात्मकता है जहाँ अनकहा भी उतना ही सार्थक है जितना कहा गया। एक मध्यकालीन दोहा गूँजता है: "सर्व ढँके सोहत नहीं, उघरे होत कुवेश... अर्ध ढँके सोहत अति, कवि-अक्षर कुच केश।" मिश्र की रचनाएँ इसी द्वंद्व को जीती हैं — खुशी और विषाद, जड़ें और बेचैनी — आशा के विस्तृत आकाश के नीचे।
प्रियजनों और साहित्यिक साथियों के सहयोग से बना यह संग्रह आत्मचिंतन और कलात्मक संवेदना का संगम है। आँखों का इंद्रधनुष केवल कविताएँ नहीं, बल्कि साधारण पलों को असाधारण प्रकाश में बदलने वाला एक प्रिज़्म है।
— जीवन के अनदेखे इंद्रधनुषों का उत्सव।
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