अपने ज़ज़्बातों को अपनी क़लम से पिरो कर एक आकार देने वाले शेख रहमत अली "बस्तवी" द्वारा रचित यह पुस्तक "आज़ाद परिंदा" इनकी दूसरी एकल पुस्तक है। जिसमें लेखक ने अपना कीमती वक़्त देकर हर शब्द को बारीकी से उतारा है
जो अलग अलग भावनाओं की हर तरह के कविताओं की संग्रह से सुसज्जित है।