यह किताब स्नेहा की ज़िंदगी पर आधारित है। आज के समय में पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी कई बार लड़कियाँ अन्याय सहती हैं और समाज के डर से सच्चाई को छिपा लेती हैं।
शादी हो जाने का मतलब यह नहीं होता कि एक औरत की अपनी पहचान या ज़िंदगी समाप्त हो जाती है।
दुख की बात है कि हमारे समाज में अक्सर औरत ही औरत की सबसे बड़ी विरोधी बन जाती है।
विधवा हो जाने का अर्थ यह नहीं कि उसके जीवन के सारे रंग फीके पड़ गए हैं।
विधवा होना कोई अभिशाप नहीं है। मृत्यु पर किसी का वश नहीं होता। यदि किसी स्त्री का पति का निधन हो जाता है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह केवल सहानुभूति की पात्र है — बल्कि वह एक मजबूत महिला है, जो अपने बच्चों को पालने और जीवन को फिर से संवारने का साहस रखती है।
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