एक अकूत ख़ज़ाना देकर परमात्मा हमें इस संसार में भेजता है!
अगर एक बच्चा बोल सकता तो वह कहता कि “हाँ, दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना लेकर मैं आ गया हूँ। इसीलिए तो जन्म के समय मेरी दोनों मुट्ठियाँ बंद थीं।”
किन्तु इस बहिर्मुखी सामाजिक परिवेश में जिस तरह से एक बच्चे का लालन - पालन होता है, वह अपने इस नैसर्गिक ख़ज़ाने को पूरी तरह भूल जाता है। और जो ख़ज़ाना बहुत दिनों तक उपयोग में नहीं आता, वह लगभग खो जाता है। इसी तरह, हम सबने अपने उस नैसर्गिक ख़ज़ाने के साथ – साथ उसके द्वार, तृतीय नेत्र को भी खो दिया है।
उस ख़ज़ाने को हम कहीं सदा के लिए न खो दें; इसीलिए ऋषियों ने उसके द्वार को बिंदी, टीका अथवा तिलक के द्वारा हमारे ललाट पर चिन्हित कर दिया था। फिर उस गुप्त ख़ज़ाने को कैसे खोला जाय- इस बात की भी पूरी जानकारी उन्होंने ‘ॐ’ तथा ‘स्वस्तिक’ के रूप में हमें दे दी थी।
इस पुस्तक में, लेखक ने ‘ॐ’ तथा ‘स्वस्तिक’ के चिह्नों की एक नई एवं पूर्णतः वैज्ञानिक व्याख्या देकर तथा उनसे संबन्धित ध्यान विधिओं का वर्णन कर उस ख़ज़ाने तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया है।
किन्तु, ध्यान रहे कि उस मार्ग पर प्रत्येक व्यक्ति को अकेले ही चलना होता है। असल में व्यक्तित्व का निखार एवं सफलता की कुंजी तो प्रयास में छिपी होती है!
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