कहते है जब एक शायर मोहब्ब्त में हो तो उसके तराशे अल्फाजों में हुब्ब की महक आने लगती है। मेयार_ए_शायरी में खुशबू घुली होती है मेहबूब को नूर_ए_नज़र की। कुछ ऐसे ही इश्क़ के नग्मों के ताने बाने को तराशकर बुनी गई है अल्फ़ाज़_ए_महक। जहां महक है हर एक शायर की शायरी में उसके इकरार_ए_इश्क़ की, और संजोया है शिद्दत से नज्मों में तस्कीन_ए_कल्ब को, जिससे प्रत्येक शायरी हर पाठक के सीने में भीतर तक रूह में समा जाए और अपने हबीब की यादों को तरोताजा कर पाए।