क्या आज़ादी सिर्फ घड़ी की टिक-टिक पर जागने और कैलेंडर की तारीखों में सिमट जाने का नाम है? आनन्द देव की ये कविताएँ हमें मशीनी जीवन के शोर से निकालकर उस ‘शून्यता’ की ओर ले जाती हैं, जहाँ असल ‘पूर्णता’ छिपी है। यह संग्रह एक निमंत्रण है—भीड़ में खोए अपनेपन को पुनः खोजने का और जीवन को महज़ जीने के बजाय ‘जीवंत’ होकर महसूस करने का।“