अंजिता-'एक दर्पण' शीर्षक की यह पुस्तक आपकी अपनी मनोस्थिति है,अपना अपना व्यवहार है,आपका अपना आईना है,जो शब्दों के जरिये..मन की हर भावना को दर्शाता है,चाहे वो आपके दिये आँसू हो या आपकी दी हुई मुस्कुराहट हो!
"अंजिता" उस "मैं कौन हू्ँ"का हस्ताक्षरित जबाब भी है..जिसे हर कोई ताउमर तलाशता है..
"अंजिता"किसी स्त्री की कहानी नहीं बल्कि मन की एक भावना है...स्त्री और पुरूष का मन अलग नहीं होता..बस दोनों की बाह्य बनावट का फर्क है..सोच दोनों ही समान रखते है..कश्मकश दोनों ही समान रखते हैं।