आप सभी के समक्ष अपना काव्य संग्रह अन्तस्थल में इरण प्रस्तुत करते हुए में अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। मैंने अपनी भावनाओं को कविताओं में पिरोने का एक छोटा सा प्रयास किया है और आज मेरी ये कविताएं अन्तस्थल में इरण के रूप में इकठ्ठी एक जगह संग्रहित हई हैं। कभी सोचा न था कि मेरी कविताएं किसी दिन एक किताब की शक्ल में सामने आएंगी, परंतु आज यह सम्भव हुआ है और इस क्रम में सर्वप्रथम में उस सर्वशक्तिमान परमेश्वर श्री कृष्ण को धन्यवाद प्रेषित करता हूँ, जिनकी इच्छा और प्रेरणा के बिना शायद ही यह संभव हो पाता। मैं ऋणी हूँ अपने पूज्य पिताजी श्री मनोज जी और पूज्यनीय माता जी श्रीमती रामश्री देवी का, जिनकी वजह से मुझे यह जीवन प्राप्त हुआ। यह उनके ही दिए संस्कार हैं जो मैं रचनात्मकता की ओर उन्मुख हुआ। मैं आभारी हूँ अपने उन गुरुओं अनीता पांडेय (माँ जी), अभिषेक पांडेय (गुरुदेव) और प्रीति शर्मा (मैम जी) का, जिन्होंने मुझे इस योग्य बनाया कि मैं अपनी भावनाओं को कागज पर उकेर सकूँ। इस सब के अतिरिक्त कुछ और नाम हैं जिनके बिना यह संग्रह शायद ही संभव हो पाता। परम् प्रिय मित्रगण दिव्यांशु कुशवाह और अभिषेक कुमार। ये चंद ऐसे महत्वपूर्ण नाम हैं जिनसे अलग शायद इस संग्रह का कोई मूल्य नहीं, कोई महत्व नहीं।
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