दो शब्द:
अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत हुई 2000 में और शुरू हो गया जीवन के कड़वे-मीठे अनुभवों का सफ़र। इस सफ़र में प्रकाश पुंज को देखा और गुमनामी के अंधेरे को भी। हर मोड़ पर नएं-नएं अनुभव होते गएं। संसार की नग्न वास्तविकता को नज़दीकी से देखा। अपने इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं, जीवन में होने वाले अनुभवों और मानव-मन की गहराई में जाकर मैंने जो महसूस किया उसे शब्दबद्ध कर एक गठरी में बांध लिया। उस गठरी को लघु कथा के रूप में आपके सम्मुख खोल रहा हूं और चाहता हूं कि आप मेरे एक-एक शब्द पर चिंतन करें।
**समीर उपाध्याय 'ललित'**