Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
कवि की कलम से.....
कविता कवि के उर का अविष्कार है, कल्पना लोक का साक्षात्कार है और नूतन शब्दों का चमत्कार है। कवि की भावनाओं को छंद इत्यादि नियमों में बाँधना मुक्त ग
कवि की कलम से.....
कविता कवि के उर का अविष्कार है, कल्पना लोक का साक्षात्कार है और नूतन शब्दों का चमत्कार है। कवि की भावनाओं को छंद इत्यादि नियमों में बाँधना मुक्त गगन में उड़ान भरते हुए पंछी को पिंजरे में कैद करने के बराबर है।
भूमिका
कुछ अपनी बात
मेरा इतिहास से लगाव तो है, परंतु स्वयं को अल्पज्ञ ही समझता। शेरशाह या शेरखां। बचपन में उसे फरीद खां कहा जाता था। इन पर लिखने का मतलब हिन्दुस्तान के उस काल
भूमिका
कुछ अपनी बात
मेरा इतिहास से लगाव तो है, परंतु स्वयं को अल्पज्ञ ही समझता। शेरशाह या शेरखां। बचपन में उसे फरीद खां कहा जाता था। इन पर लिखने का मतलब हिन्दुस्तान के उस काल एवं घटनाओं को याद करना है, जब एक बार फिर देश गुलाम बन गया था। केवल बिहार और देश ही नहीं, बल्कि समूची दुनिया की घटनाओं को समझना था।
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा में सात चरण हैं। अर्थात्
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा में सात चरण हैं। अर्थात् यह सात पंक्तियों वाली एक छोटी-सी कविता है। प्रथम पंक्ति में एक, द्वितीय में दो, तृतीय में तीन, चतुर्थ में चार, पंचम में पाँच, षष्टम में छः और सप्तम में सात वर्ण होते हैं।
वर्ण पिरामिड क्या है?
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस वि
वर्ण पिरामिड क्या है?
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा में सात चरण हैं। अर्थात् यह सात पंक्तियों वाली एक छोटी-सी कविता है। प्रथम पंक्ति में एक, द्वितीय में दो, तृतीय में तीन, चतुर्थ में चार, पंचम में पाँच, षष्टम में छः और सप्तम में सात वर्ण होते हैं।
साहित्य समाज का दर्पण होता है, जिसमें विविध सामाजिक समस्याएं प्रतिबिंबित होती है। साहित्य समाज की विसंगतियों को उद्घाटित कराके बदलते हुये सामाजिक मूल्यों के प्रति लोकमानस को
साहित्य समाज का दर्पण होता है, जिसमें विविध सामाजिक समस्याएं प्रतिबिंबित होती है। साहित्य समाज की विसंगतियों को उद्घाटित कराके बदलते हुये सामाजिक मूल्यों के प्रति लोकमानस को आकर्षित करती हैं। यही जनकल्याण की प्रवृत्ति साहित्य को सार्थकता प्रदान करती है। जीवन के प्रति व्यापक सकारात्मक दृष्टिकोण, अनुभूति की गहनता, मानवीय उत्थान के प्रति अटूट आस्था, महान लक्ष्य से केन्द्रित साहित्य निश्चित ही अपना शाश्वत मूल्य रखता है।
ख़ुदा की ख़ुदखुशी
यदि कोई
ख़ुदा था तो उसने
ख़ुदखुशी करली उस दिन
जब चार दरिन्दों ने
अस्मत लूटी थी
बूड़े जुम्मन की फूल-सी
बेटी की
और चीर डाला था
ख़ुदा की ख़ुदखुशी
यदि कोई
ख़ुदा था तो उसने
ख़ुदखुशी करली उस दिन
जब चार दरिन्दों ने
अस्मत लूटी थी
बूड़े जुम्मन की फूल-सी
बेटी की
और चीर डाला था
कवि की कलम से
"सृजन के मोती" ये मेरी पहली एकल काव्य संग्रह है, जो आप सभी पाठकों को समर्पित है। इस काव्य संग्रह में मैंने रचनाओं का समावेश सभी आयु वर्ग, जिसमें विशेष रूप से बच्चे स
कवि की कलम से
"सृजन के मोती" ये मेरी पहली एकल काव्य संग्रह है, जो आप सभी पाठकों को समर्पित है। इस काव्य संग्रह में मैंने रचनाओं का समावेश सभी आयु वर्ग, जिसमें विशेष रूप से बच्चे सम्मिलित हैं, को ध्यान में रखते हुए किया है।
प्रस्तुत पुस्तक "श्रृँगार सरिता" को आप सबके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन में अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है।
समानता-असमानता,अमीरी-गरीबी सांसारिक जीवन और समय चक्र की प
प्रस्तुत पुस्तक "श्रृँगार सरिता" को आप सबके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन में अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है।
समानता-असमानता,अमीरी-गरीबी सांसारिक जीवन और समय चक्र की प्रदत्त ईश्वरीय गतिविधियाँ हैं। ऐसे में कवि हृदय की व्यग्रता और विकलता का कविता की पंक्तियों में श्रृजित या क्रमबद्ध होना स्वाभाविक है
प्रस्तावना
मेरी यह किताब समाज की सेवा करने व समाज को जागरुक रखने का एक छोटा सा प्रयास मात्र है। इस पुस्तक के माध्यम से मैंने समाज को कुछ संदेश देने का प्रयास किया है। ये केवल म
प्रस्तावना
मेरी यह किताब समाज की सेवा करने व समाज को जागरुक रखने का एक छोटा सा प्रयास मात्र है। इस पुस्तक के माध्यम से मैंने समाज को कुछ संदेश देने का प्रयास किया है। ये केवल मेरी अभिव्यक्ति है। मेरी सोच सही है तो मुझे आशीर्वाद जरूर दीजिए। मैं आपके मार्गदर्शन से समाज को प्रेरणा दे सकूं यही कामना है।
आपके सुझाव व सहयोग की प्रतीक्षा में .......
निमंत्रण
कर रहे है अन्नपूर्णा तुम्हारा।
निमंत्रण हमारा स्वीकार करो।।
कल कोई भूखा न सोए।
हर एक का स्वीकार करो।।
मन में खोए, मन से जागे।
मन में प्रीत समाए
निमंत्रण
कर रहे है अन्नपूर्णा तुम्हारा।
निमंत्रण हमारा स्वीकार करो।।
कल कोई भूखा न सोए।
हर एक का स्वीकार करो।।
मन में खोए, मन से जागे।
मन में प्रीत समाए।।
जीवन ऐसा खुशहाल करो।
मन से प्रेम दिखाए।।
इस त्रयी काव्य-संकलन "काव्य-पारायण" में क्रमशः अंजू कालरा दासन "नलिनी", डॉ.विनय कुमार सिंघल "निश्छल" व डॉ.वीणा शंकर शर्मा "चित्रलेखा", तीन कवि/कवयित्रियाँ सम्मिलित हैं। यह इनका चौथा
इस त्रयी काव्य-संकलन "काव्य-पारायण" में क्रमशः अंजू कालरा दासन "नलिनी", डॉ.विनय कुमार सिंघल "निश्छल" व डॉ.वीणा शंकर शर्मा "चित्रलेखा", तीन कवि/कवयित्रियाँ सम्मिलित हैं। यह इनका चौथा त्रयी काव्य-संकलन है।
तीनों की अपनी-अपनी सामग्री कई दिनों से तैयार थी। हुआ यह कि एक लघु खंड-काव्य "राम का अंतर्द्वंद्व" पहले से ही प्रकाशन के लिये भेजा जा चुका था। उसमें उक्त तीनों लेखक जी-जान से जुटे हुए थे और पीडीएफ में बार-बार संशोधन करने पड़ रहे थे। कल देर रात अन्तिम त्रुटिहीन पीडीएफ तैयार हुआ और उक्त खंड-काव्य की आगे की प्रक्रिया आज से आरम्भ हो गई।
यदि प्रकाशनाधीन काव्य-संकलन समय पर प्राप्त हो गए तो यह काव्य-संकलन ७८वाँ होगा। मैं इस उपलब्धि के लिए उत्साहित हूँ। लेखन अभी गतिमान है। माँ सरस्वती की क्या योजना है मैं नहीं जानत
यदि प्रकाशनाधीन काव्य-संकलन समय पर प्राप्त हो गए तो यह काव्य-संकलन ७८वाँ होगा। मैं इस उपलब्धि के लिए उत्साहित हूँ। लेखन अभी गतिमान है। माँ सरस्वती की क्या योजना है मैं नहीं जानता। अनेक कारणों से पूर्व की १८०१० कविताएँ प्रकाशित नहीं करवा पाया इसे अपना दुर्भाग्य न कहूँ तो और क्या कहूँ। जैसी प्रभु इच्छा। इस काव्य-संकलन तक २३९६१ कविताएँ लिख चुका हूँ मैं। हो सकता है यह भी कोई उपलब्धि हो।
यह मेरा ५३ वाँ एकल काव्य-संकलन है। ईश्वर को ही ज्ञात है कि मैं अपने जीते जी कितने एकल व अन्य काव्य-संकलन प्रकाशित करवा पाऊँगा। प्रयासरत हूँ। मेरा स्वास्थ्य लगभग चार वर्ष से अच्छा
यह मेरा ५३ वाँ एकल काव्य-संकलन है। ईश्वर को ही ज्ञात है कि मैं अपने जीते जी कितने एकल व अन्य काव्य-संकलन प्रकाशित करवा पाऊँगा। प्रयासरत हूँ। मेरा स्वास्थ्य लगभग चार वर्ष से अच्छा नहीं चल रहा। इसलिए यह अनिश्चितता बनी हुई है। शब्द को ब्रह्म कहा गया है और मैं उसी ब्रह्म की गोद में खेलता हूँ, कविता लिखना मेरा व्यसन है। एक लघु खंड-काव्य " राम का अंतर्द्वंद्व " प्रकाशित हो चुका है।
यह मेरा कुल मिला कर ८१ वाँ काव्य-संकलन है व ५१वाँ एकल काव्य-संकलन है। आज स्वास्थ्य कुछ अधिक ही गड़बड़ है अतः मैं इस उपोद्घात् को यहीं विराम दे रहा हूँ। पाठक इसे पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिय
यह मेरा कुल मिला कर ८१ वाँ काव्य-संकलन है व ५१वाँ एकल काव्य-संकलन है। आज स्वास्थ्य कुछ अधिक ही गड़बड़ है अतः मैं इस उपोद्घात् को यहीं विराम दे रहा हूँ। पाठक इसे पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुल
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी।
"जीने की चाह " काव्य संग्रह मां सरस्वती की कृपा से पूर्ण कर पाया हूं ।इस पुस्तक के पढ़ने तथा इसके अमल करने से लोगो के जीवन मे सुधार आ सकता है। अपना जीवन सुखी एवं समृद्ध शाली बनाने के
"जीने की चाह " काव्य संग्रह मां सरस्वती की कृपा से पूर्ण कर पाया हूं ।इस पुस्तक के पढ़ने तथा इसके अमल करने से लोगो के जीवन मे सुधार आ सकता है। अपना जीवन सुखी एवं समृद्ध शाली बनाने के लिए इस पुस्तक का अध्ययन करना बहुत आवश्यक है। जीने की चाह पुस्तक पढ़ने से मनुष्य के जीवन का सफर आसान से हो सकता हैं। इसमें काव्य के माध्यम से शराब,तंबाकू ,बीड़ी, सिगरेट तथा नशे की प्रवृत्ति त्याग कर उत्तम राह अपनाने के लिए लिखा गया है।
इस लघुखंड काव्य की एक और बड़ी विशेषता यह है कि यह खंड काव्य छंद बद्ध है और राम के अन्तर्मन में उठने वाले हर संचारी भाव को ,जो समय-समय पर पानी के बुलबुलों की तरह संचरण करते हैं,उन्हें
इस लघुखंड काव्य की एक और बड़ी विशेषता यह है कि यह खंड काव्य छंद बद्ध है और राम के अन्तर्मन में उठने वाले हर संचारी भाव को ,जो समय-समय पर पानी के बुलबुलों की तरह संचरण करते हैं,उन्हें विनय जी ने क्रमानुसार अनुक्रमणिका में डाला है।यह प्रयास इस काव्य की मौलिक अभिव्यक्ति है ।
डॉ. वीणा शंकर शर्मा
चित्रलेखा,
मेरी पुस्तक “विस्मृत दृष्टांत” अपने नाम के अनुरूप उन पौराणिक और पर्व से जुड़ी कथाओ को काव्य रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है| आशा है, ये पाठको में उत्साह उत्पन्न कर पायेगी|
मेरी पुस्तक “विस्मृत दृष्टांत” अपने नाम के अनुरूप उन पौराणिक और पर्व से जुड़ी कथाओ को काव्य रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है| आशा है, ये पाठको में उत्साह उत्पन्न कर पायेगी| पाठको के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी| धन्यवाद|
सर्वप्रथम में सरस्वती मां को नमन करते हुए काव्य के इस समुंदर में गोता लगाने के लिए मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय श्री नाथूराम बिलगैया का आशीष मिला था जिसका ईश्वर की कृपा से मेरे अंदर
सर्वप्रथम में सरस्वती मां को नमन करते हुए काव्य के इस समुंदर में गोता लगाने के लिए मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय श्री नाथूराम बिलगैया का आशीष मिला था जिसका ईश्वर की कृपा से मेरे अंदर काव्य एवं साहित्य का विकास दिन प्रतिदिन बढ़ता गया मैंने भी अपनी जिज्ञासाओं को काव्य के माध्यम से पूर्ण किया क्योंकि काव्य का विषय बहुत ही गहरा और विस्तृत है।
कविता के आंगन में
आज के दौर की कविता बेशक साहित्य की सभी विधाओं में सर्वमान्य एंव सर्वोपरि का खिताब हासिल कर पुस्तकों का सेहरा बनी हो, परंतु इसमें भी कोई दो राय नही
कविता के आंगन में
आज के दौर की कविता बेशक साहित्य की सभी विधाओं में सर्वमान्य एंव सर्वोपरि का खिताब हासिल कर पुस्तकों का सेहरा बनी हो, परंतु इसमें भी कोई दो राय नही कि अब कविताओं की दुनिया सिमट रही है। ये एक प्रमाणिक तथ्य है। ये एक आने वाले कल का साहित्य के प्रति सच भी है,
इसमें हर कविता के मूल भाव अलग है, सन्दर्भ अलग है, आक्षेप अलग है, शब्द विन्यास अलग है, अर्थ अलग है ..... पर हर कविता में एक समान मात्रा विन्यास है, एक समान गेयता है, एक तरह के आरोह अवरोह है|
इसमें हर कविता के मूल भाव अलग है, सन्दर्भ अलग है, आक्षेप अलग है, शब्द विन्यास अलग है, अर्थ अलग है ..... पर हर कविता में एक समान मात्रा विन्यास है, एक समान गेयता है, एक तरह के आरोह अवरोह है| उम्मीद है कि ये कविताए पाठको का ध्यान आकृष्ट कर पाएंगी| प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी| धन्यवाद|
वर्ण पिरामिड क्या है?
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा
वर्ण पिरामिड क्या है?
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा में सात चरण हैं। अर्थात् यह सात पंक्तियों वाली एक छोटी-सी कविता है। प्रथम पंक्ति में एक, द्वितीय में दो, तृतीय में तीन, चतुर्थ में चार, पंचम में पाँच, षष्टम में छः और सप्तम में सात वर्ण होते हैं।
यह काव्य-यात्रा अनेक कलेवरों में गतिमान है यथा एकल काव्य-संकलन, युगल काव्य-संकलन, त्रयी काव्य-संकलन व अन्य संयुक्त काव्य-संकलन आदि।
स्वास्थ्य बहुत रुष्ट चल रहा है फिर भी साहस
यह काव्य-यात्रा अनेक कलेवरों में गतिमान है यथा एकल काव्य-संकलन, युगल काव्य-संकलन, त्रयी काव्य-संकलन व अन्य संयुक्त काव्य-संकलन आदि।
स्वास्थ्य बहुत रुष्ट चल रहा है फिर भी साहस बटोर कर स्वयं को सम्भाल रखा है मैंने। काव्य-लेखन ही मेरा मनोरंजन भी है और जीने का सम्बल भी। काव्य-सृजन बहुत धीमी गति से ही हो पा रहा है।
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा में सात चरण हैं। अर्थात् यह
वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नई काव्य-विधा है। इसके जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी है। यह हाइकु की तरह विषम चरणों वाली काव्य-विधा है। इस विधा में सात चरण हैं। अर्थात् यह सात पंक्तियों वाली एक छोटी-सी कविता है। प्रथम पंक्ति में एक, द्वितीय में दो, तृतीय में तीन, चतुर्थ में चार, पंचम में पाँच, षष्टम में छः और सप्तम में सात वर्ण होते हैं।
बोलो राम, सियाराम, जय राम राम राम।
राम नाम है मंत्र, अयोध्या मुक्ति धाम।।
राम नाम बिन पुरुष अधूरा, जीवन ना पूरा,
जो न भजे राम का नाम,, जीना उसका है बेसुरा,,
मिले नही उसे जग
बोलो राम, सियाराम, जय राम राम राम।
राम नाम है मंत्र, अयोध्या मुक्ति धाम।।
राम नाम बिन पुरुष अधूरा, जीवन ना पूरा,
जो न भजे राम का नाम,, जीना उसका है बेसुरा,,
मिले नही उसे जग मैं किसी पल आराम।
बोलो राम, सियाराम...............
मैं चंद्रकांत पांडेय 'चंद्र' अपनी रचनाओं का प्रथम पुष्प "काव्य धारा" अपनी धर्म पत्नी स्वर्गीय निर्मला चंद्रकांत पांडेय को समर्पित करता हूँ। जिन्होंने अपने जीवन के पैतीस वर्ष
मैं चंद्रकांत पांडेय 'चंद्र' अपनी रचनाओं का प्रथम पुष्प "काव्य धारा" अपनी धर्म पत्नी स्वर्गीय निर्मला चंद्रकांत पांडेय को समर्पित करता हूँ। जिन्होंने अपने जीवन के पैतीस वर्ष हमारे परिवार को सजाने , सवाँरने और आगे बढ़ाने में लगा दिए। हम सभी उनके साथ बिताए गए हर पल को याद करते हैं और उन्हें अपने अश्रुपूरित नेत्रों से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
आजकल मेरे चेतन-अचेतन, दोनों ही मन अन्यमनस्क हैं। कविता मेरे प्राणों में बसती है इसलिए लेखन जीवित है।
कुछ आयु का, कुछ परिवेश का, कुछ वातावरण का और कुछ अन्यमनस्कता का, समवेत प्रभ
आजकल मेरे चेतन-अचेतन, दोनों ही मन अन्यमनस्क हैं। कविता मेरे प्राणों में बसती है इसलिए लेखन जीवित है।
कुछ आयु का, कुछ परिवेश का, कुछ वातावरण का और कुछ अन्यमनस्कता का, समवेत प्रभाव यह है कि अपनी ही पुस्तक का उपोद्घात् लिखना तक बहुत दुष्कर लगने लगा है। आज प्रातः गिर गया, शरीर में गुप्त चोटें आई हैं कुछ दिन में पीड़ा का भी शमन हो ही जाएगा।
गरीब हटाओ
नाटककार - श्री प्रकाश गुप्ता
सेट
1 - ब्रह्मालोक - पर्दा पर सौर मंडल के बीच घूमती पृथ्वी।
कमल के फूल पर ब्रह्मा । पीछे बादलों का झुंड
2 - यमलोक &n
गरीब हटाओ
नाटककार - श्री प्रकाश गुप्ता
सेट
1 - ब्रह्मालोक - पर्दा पर सौर मंडल के बीच घूमती पृथ्वी।
कमल के फूल पर ब्रह्मा । पीछे बादलों का झुंड
2 - यमलोक - कंकाल रूपी द्वार
3 - पृथ्वीलोक मृत्युलोक - रास्ता और फुटपाथ पर
तिरपाल की झोपड़ी
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है।
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है।
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है।
मुझे अनुमान नहीं था कि हम तीन कवि/कवयित्रियाँ देखते-देखते यह चौथा त्रयी काव्य-संकलन "काव्य-अनुष्ठान" प्रकाशित करवा देंगे।
इस काव्य-संकलन के नाम करण का श्रेय अंजू कालरा दासन "न
मुझे अनुमान नहीं था कि हम तीन कवि/कवयित्रियाँ देखते-देखते यह चौथा त्रयी काव्य-संकलन "काव्य-अनुष्ठान" प्रकाशित करवा देंगे।
इस काव्य-संकलन के नाम करण का श्रेय अंजू कालरा दासन "नलिनी" जी को जाता है। अंजू जी एक वरिष्ठ कवयित्री हैं जो ३८ वर्ष से काव्य-साधना कर रही हैं।
यह मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का भाग-६ है। कुल मिला कर मेरे सब प्रकार के काव्य-संकलनों को मिला कर ७७ काव्य-संकलन हो गये हैं। माँ सरस्वती की महती कृपा है। इनके अतिरिक्त दो संयुक्
यह मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का भाग-६ है। कुल मिला कर मेरे सब प्रकार के काव्य-संकलनों को मिला कर ७७ काव्य-संकलन हो गये हैं। माँ सरस्वती की महती कृपा है। इनके अतिरिक्त दो संयुक्त काव्य-संकलन प्रकाशनाधीन हैं।
मैं अपनी आँखों की समस्या से बहुत व्यथित हूँ फिर भी किसी प्रकार काव्य-सृजन में जुटा हूँ। मन करता है लिखता ही जाऊँ।
आज बहुत थका हुआ हूँ इसलिये आज का उपोद्घात् बस इतना ही। आप कविताएँ पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुल
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
ओशो की कलम से राधा-कृष्ण के भावों का अलंकरण..........
कृष्ण अकेले हैं जो शरीर को उसकी समस्तता में स्वीकार कर लेते हैं, उसकी टोटेलिटी में। यह एक आयाम में नहीं, सभी आयाम मे
ओशो की कलम से राधा-कृष्ण के भावों का अलंकरण..........
कृष्ण अकेले हैं जो शरीर को उसकी समस्तता में स्वीकार कर लेते हैं, उसकी टोटेलिटी में। यह एक आयाम में नहीं, सभी आयाम में सच है। सभी बच्चे रोते हैं। एक बच्चा सिर्फ मनुष्य-जाति के इतिहास में जन्म लेकर हॅंसा है। यह सूचक है, इस बात का कि अभी हॅंसती हुई मनुष्यता पैदा नहीं हो पाई। भविष्य में कृष्ण की और होगी जरूरत, चमकते ही जाएंगे कान्हा।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी।
यह मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का पाँचवाँ भाग है। जब तक प्रभु इच्छा रहेगी मेरा लेखन अबाध चलता रहेगा। किसी से भी मेरी प्रतिस्पर्धा नहीं है। मैं मौलिक लेखन का हृदय से सम्मान करता
यह मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का पाँचवाँ भाग है। जब तक प्रभु इच्छा रहेगी मेरा लेखन अबाध चलता रहेगा। किसी से भी मेरी प्रतिस्पर्धा नहीं है। मैं मौलिक लेखन का हृदय से सम्मान करता हूँ। प्रत्येक कवि में अपार सम्भावनाएँ कुलमुलाती रहती हैं और इसीलिये कविता उत्तरोत्तर समृद्ध हो रही है। हमें कविता के मूल सिद्धान्तों व व्याकरणीय पक्ष को अनदेखा नहीं करना चाहिए। शिल्प धीरे-धीरे परिपक्व होता है।
वर्ण पिरामिड बढ़ते हुए वर्ण क्रम में प्रथम, द्वतीय, तृतीय ऐसे सात पंक्तियों की पिरामिड आकार की एक सुंदर रचना है ।जाने-माने कवि, साहित्यकार एंव शिक्षक आदरणीय समीर उपाध्या
वर्ण पिरामिड बढ़ते हुए वर्ण क्रम में प्रथम, द्वतीय, तृतीय ऐसे सात पंक्तियों की पिरामिड आकार की एक सुंदर रचना है ।जाने-माने कवि, साहित्यकार एंव शिक्षक आदरणीय समीर उपाध्याय 'ललित' ने उपरोक्त विधा को बड़ी ही खूबसूरती से सभी विषयों पर एक से बढ़कर एक पिरामिड रचनाएँ प्रस्तुत की हैं जो यह साबित करती हैं कि साहित्य के प्रति आपकी रुचि और भाव तथा शिल्प के प्रति मजबूत पकड़ है ।
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है
कवि की कलम से राधा-कृष्ण के भावों का अलंकरण.....
दिव्य शक्तियाँ पृथ्वी पर अनेक रूपों में अवतरित हुई हैं, किंतु राधा-कृष्ण की छवि ने मुझे ज्यादा लुभाया है। निर्मल और न
कवि की कलम से राधा-कृष्ण के भावों का अलंकरण.....
दिव्य शक्तियाँ पृथ्वी पर अनेक रूपों में अवतरित हुई हैं, किंतु राधा-कृष्ण की छवि ने मुझे ज्यादा लुभाया है। निर्मल और निश्छल प्रेम से परिपूर्ण एक अद्भुत जुगल-जोड़ी आज तक न अवतरित हुई है और न भविष्य में होगी।
01. बेहया, बदचलन, छिनाल...
" बेहया , बदचलन , छिनाल ... मेरे पीठ पीछे दूसरे मर्दों के साथ गुलछर्रे उड़ाती है , कमीनी ... रंडी .... मैंने कल सब अपनी आँखों से देख लिया था ... " राकेश जमीन पर नीचे गिर कर
01. बेहया, बदचलन, छिनाल...
" बेहया , बदचलन , छिनाल ... मेरे पीठ पीछे दूसरे मर्दों के साथ गुलछर्रे उड़ाती है , कमीनी ... रंडी .... मैंने कल सब अपनी आँखों से देख लिया था ... " राकेश जमीन पर नीचे गिर कराहती रीना की कमर पर लातें मारते हुए गुस्से से बड़बड़ा रहा था ।
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है,
विनय जी अपने समकालीन कवियों से पचास वर्ष आगे हैं। यह बात आज और भी सार्थक है, मैं अकिंचन भ्राता गुरु के लिये जितना कहूं कम है l डॉ. वीणा के गुण क्या कहूं जैसी हैं हृदय से वैसी ही बाहर स
विनय जी अपने समकालीन कवियों से पचास वर्ष आगे हैं। यह बात आज और भी सार्थक है, मैं अकिंचन भ्राता गुरु के लिये जितना कहूं कम है l डॉ. वीणा के गुण क्या कहूं जैसी हैं हृदय से वैसी ही बाहर से भी हैं, इसी में सब निहित है l
यूँ ही ईश्वर ने त्रिवेणी का संगम नहीं कर दिया, बहुत कुछ सोचे बैठा है वह, मैं बारम्बार ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि आप दोनों ने मुझे इस योग्य समझा
वरना कौन किसी का होता है, तीनों परिवारों का सहयोग भी सराहनीय है l
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का यह चौथा भाग है। मेरी काव्य-यात्रा गतिमान है और लगता है गतिमान रहेगी यद्यपि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। अधिकतर समय मेरा एक भिन्न प्रकार की मौन-स
मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का यह चौथा भाग है। मेरी काव्य-यात्रा गतिमान है और लगता है गतिमान रहेगी यद्यपि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। अधिकतर समय मेरा एक भिन्न प्रकार की मौन-साधना में ही व्यतीत होता है। चुपचाप बैठे रहना या लेट जाना यही क्रम रह गया है।
प्रकारांतर से देखा जाए तो मेरे पास समय ही समय है जो मेरे लेखन की आधार-शिला है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
आधुनिक हिंदी साहित्य के बहुचर्चित कवियों में एक नाम अशोक शुभदर्शी का भी आता है। इनकी भाषा-शैली बहुत ही सरल है जिसके कारण सभी वर्गों के पाठकों के ये दिनों-दिन प्रिय होते जा रहे है
आधुनिक हिंदी साहित्य के बहुचर्चित कवियों में एक नाम अशोक शुभदर्शी का भी आता है। इनकी भाषा-शैली बहुत ही सरल है जिसके कारण सभी वर्गों के पाठकों के ये दिनों-दिन प्रिय होते जा रहे हैं।
काफी लंबे समय से शुभदर्शी जी की कविताएं देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहा हूं। इनकी कविताएं मुझे काफी प्रभावित करती हैं। अचानक एक दिन विचार आया कि शुभदर्शी जी की चुनिंदा कविताओं का एक संकलन बनाया जाना चाहिए। अशोक शुभदर्शी जी से इसकी सहमति मिलने से इस उत्कृष्ट कार्य के लिए मैं तहे दिल से उनका आभार मानता हूं। उन्होंने मुझे इसके योग्य समझा।
प्रस्तुत पुस्तक में कवि की चुनी हुई कविताएं शामिल की गयी हैं जिनमें किसान, मजदूर, जिंदगी, गांधी, स्त्री, समाजवाद आदि विषयों पर गंभीरता से विचार करते हुए कवि ने अपनी कलम चलाई है। इस पुस्तक की हर एक कविता सिर्फ प्रशंसनीय ही नहीं आधुनिक हिंदी साहित्य को कवि की तरफ से अनुपम भेंट है।
एक संपादक व प्रकाशक होने के नाते मुझे विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक "अशोक शुभदर्शी की प्रतिनिधि कविताएं" पाठकों को बहुत-बहुत पसंद आएगी।
प्रकाशक व संपादक
हितेश रंजन दे
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰
"मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला" का यह तीसरा भाग है। माँ शारदा के आशीर्वाद से यह शृंखला चलती रहेगी।
काव्य-सृजन मेरा व्यसन है १९६७ से। अभी तक कुल मिला कर
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰
"मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला" का यह तीसरा भाग है। माँ शारदा के आशीर्वाद से यह शृंखला चलती रहेगी।
काव्य-सृजन मेरा व्यसन है १९६७ से। अभी तक कुल मिला कर ६८ काव्य-संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। यह ६९वाँ काव्य-संकलन है। एक संयुक्त काव्य-संकलन "दिल्ली दर्पण"
प्रकाशनाधीन है, जो प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से छप रहा है यदि वह पहले आ गया तो यह ७०वाँ संकलन माना जाएगा। एक त्रयी काव्य-संकलन "काव्य-कुम्भ" नोशन प्रैस द्वारा छप चुका है और कोरियर के पास है जो कभी भी हम तक पहुँच जाएगा उस परिस्थिति में यह वर्तमान संकलन ७१वाँ माना जाएगा।
५५ वर्ष की इस काव्य यात्रा में २२,००० से अधिक कविताएँ लिख चुका हूँ और अभी भी सक्रिय हूँ।
ऐसी कृपा बहुत भाग्य से ही देती हैं माँ शारदा।
मेरी कविताएँ यथार्थ के बहुत निकट रहती हैं और यह मेरा सत्य-आग्रही होने का ही परिणाम है।
आप ये कविताएँ मनोयोग से पढ़ें बस यही प्रमाण है।
आशीर्वादाकांक्षी
आपका
हस्ताक्षर
(डॉ.विनय कुमार सिंघल) "निश्छल"
अधिवक्ता/कवि
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है। लेखकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए संस्था लेखकों को उसकी लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
झारखण्ड की पावन भूमि दुमका जिले के अंदर स्थित साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों की एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्था है।
इस संस्था की स्थापना श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए की गयी। यह पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक मंच है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट एवं प्रतिनिधि रचनाओं को नि:शुल्क रूप से पुस्तक के रूप में संरक्षित करने का कार्य करता है।
उलझन में हूँ, कहाँ से आरम्भ करूँ और कहाँ उपसंहार करूँ इस उपोद्घात् का। फिर भी अपने दायित्व का निर्वहन तो करना ही है। यह तीन कवियों का दूसरा त्रयी काव्य-संकलन है। तीनों ही अवर्णनी
उलझन में हूँ, कहाँ से आरम्भ करूँ और कहाँ उपसंहार करूँ इस उपोद्घात् का। फिर भी अपने दायित्व का निर्वहन तो करना ही है। यह तीन कवियों का दूसरा त्रयी काव्य-संकलन है। तीनों ही अवर्णनीय उत्साह से ओत-प्रोत हैं।
एक मैं हूँ व दो कवयित्रियाँ हैं अर्थात् वही "त्रिवेणी" वाले सहभागी हैं। हम इस अनुष्ठान को कहाँ तक ले जा पायेंगे अभी हमें ही ज्ञात नहीं है। प्रयास तो यही रहेगा कि यह कड़ी टूटने न पाये। तीनों ही काव्य-लेखन को समर्पित हैं। यद्यपि मेरी गति आँखों के विद्रोह के कारण बहुत मन्थर या कहूँ कूर्म-गति से चल रही है। फिर भी जब तक साँसें हैं मैं लिखना नहीं छोड़ूँगा। मैं लम्बी दौड़ का वाजि हूँ।
'मेरी कव्य संग्रह "शव्द मुखर हो उठे" आपके हाथों में देते हुए मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। यथार्थ एवं कल्पना के चित्र के साथ देखे, सुने, भोगे, हुए पल जब मेरे दिलो-दिमाग में भाव-
'मेरी कव्य संग्रह "शव्द मुखर हो उठे" आपके हाथों में देते हुए मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। यथार्थ एवं कल्पना के चित्र के साथ देखे, सुने, भोगे, हुए पल जब मेरे दिलो-दिमाग में भाव-मंथन करने लगा तो उस भव-उर से जो शव्द मुखर हुऐ, कविता का सृजन हुआ। तत्पश्चात मैंने अपने भाव पुष्प को आप सुधीजनों के समक्ष प्रस्तुत करने का साहस बटोरा है।
कवि की कलम से.................
ईश्वर ने पृथ्वी पर अनेक रूपों में मानव जन्म धारण किया है, किंतु श्री कृष्ण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी एवं बहुरंगी है। यही कारण है कि मैं उन
कवि की कलम से.................
ईश्वर ने पृथ्वी पर अनेक रूपों में मानव जन्म धारण किया है, किंतु श्री कृष्ण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी एवं बहुरंगी है। यही कारण है कि मैं उनसे विशेष प्रभावित हुआ हूँ।
अध्यात्म के विराट आकाश में श्री कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म और अध्यात्म की ऊँचाइयों को छू कर भी न कभी गंभीर दिखाई देते हैं और न कभी मायूस। उनका व्यक्तित्व पूर्णरूपेण जीवन शक्ति से भरपूर है। उनके चरित्र में खेल है,
श्री मां शारदा की कृपा से समय-समय विभिन्न विषयो पर उठे अपने भावों को मै लेखनी में उतारती रही ।
इस संग्रह में लेखन के आरंभिक दौर की रचनाएं है। उन सारे भाव लेखन संग्रह को साह
श्री मां शारदा की कृपा से समय-समय विभिन्न विषयो पर उठे अपने भावों को मै लेखनी में उतारती रही ।
इस संग्रह में लेखन के आरंभिक दौर की रचनाएं है। उन सारे भाव लेखन संग्रह को साहित्य धरा प्रकाशन पुस्तक का रूप दे रहा है। साहित्य धरा प्रकाशन को ह्रदय से स्नेहिल आभार !���������
अर्चना के भावों का यह संग्रह , मैं अपनी मां श्रीमती ध्रुव देवी जायसवाल जी एवं पिता श्री बिहारी लाल जायसवाल जी को समर्पित करती हूं।
सुधी पाठक गण,
आपके समक्ष मै अपना प्रथम स्वतंत्र एकल कविता संग्रह “सृजन की साधना” प्रस्तुत कर रहा हूं।
कविता भावों का वह स्पंदन है जो मानवीय अन्तर्मन के मनोभावों से स्वत
सुधी पाठक गण,
आपके समक्ष मै अपना प्रथम स्वतंत्र एकल कविता संग्रह “सृजन की साधना” प्रस्तुत कर रहा हूं।
कविता भावों का वह स्पंदन है जो मानवीय अन्तर्मन के मनोभावों से स्वतः प्रस्फुटित और मुखरित होती है,। मुखर भावों को जब तूलिका समेटकर चितेरे के अन्तर्भाव उदघाटित करती है तो एक कलात्मकता पूर्ण चित्र बनता है, जो समाज की व्यथा कथा को मूक वाणी से चित्रित करती है।
विरासत या धरोहर सांस्कृतिक भावों का आदान - प्रदान करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है । विरासत के विभिन्न गुणों व लक्षणों के बारे में अभिव्यक्ति , ज्ञान , कौशल तथा आत्मविश्वास का आकल
विरासत या धरोहर सांस्कृतिक भावों का आदान - प्रदान करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है । विरासत के विभिन्न गुणों व लक्षणों के बारे में अभिव्यक्ति , ज्ञान , कौशल तथा आत्मविश्वास का आकलन करने का प्रयास किया गया है । विरासत प्रस्तुत करते हुए इतिहास तथा सांस्कृतिक विरासत पर उपलब्ध सामग्रियों को समाहित कर पुस्तक को अधुनातन बनाने का प्रयास किया गया है ।
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
मैंने अब यह नई काव्य-शृंखला "मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला ( भाग-०१ ) आरम्भ की है। आवरण पर हर बार कोई न कोई मेरी अपनी छवि ही रहा करेगी। इस से पूर्व मैं लगभग
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
मैंने अब यह नई काव्य-शृंखला "मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला ( भाग-०१ ) आरम्भ की है। आवरण पर हर बार कोई न कोई मेरी अपनी छवि ही रहा करेगी। इस से पूर्व मैं लगभग २२,००० से अधिक कविताएँ लिख चुका हूँ जिनमें दो पंक्ति, चार पंक्ति की रचनाएँ, क्षणिकाएँ, माहिया, कह मुकरी, लघु हाइकु, हाइकु आदि रचनाएँ सम्मिलित नहीं हैं, वे सब पृथक हैं। कभी अवकाश मिला तो उन सबके संकलन पृथक रूप से प्रकाशित करवाऊँगा।
आँखें तो जैसे लाल ध्वज ले कर विद्रोह पर उतारू हैं इस कारण से लेखन की गति बहुत धीमी चल रही है।
जैसी ईश्वरेच्छा!
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला की यह दूसरी कड़ी है। कम कविताओं का संकलन निकालने के लिये मुझे मेरी आँखों की पीड़ा ने बाध्य किया है। कविता लिखना मेरा व्यसन
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला की यह दूसरी कड़ी है। कम कविताओं का संकलन निकालने के लिये मुझे मेरी आँखों की पीड़ा ने बाध्य किया है। कविता लिखना मेरा व्यसन है। ज्ञात ही न हो सका कब पचपन वर्ष की काव्य-यात्रा पूरी हो गई?
मेरी हार्दिक इच्छा है कि जब मेरे प्राण शरीर छोड़ें तब मैं कोई कविता ही लिख रहा होऊँ। मेरी कविताएँ समाज के लिये सन्देशवाहिका बनें बस यही चाहता हूँ। मेरी कविताओं पर सम्यक दृष्टि तो पाठक ही डालेंगे। पाठक इन कविताओं का वाचन करें और मेरा मार्गदर्शन करते रहें इसी आकांक्षा के साथ—
आपका
'त्रिवेणी' मेरी प्रकाशित होने वाली दूसरी संयुक्त काव्य रचना है।मन की बात लिखते हुए सबसे पहले यही विचार आ रहा है कि जो काम जैसे होना होता है, वैसे ही होता है । अभी तो पहला साझा काव्य
'त्रिवेणी' मेरी प्रकाशित होने वाली दूसरी संयुक्त काव्य रचना है।मन की बात लिखते हुए सबसे पहले यही विचार आ रहा है कि जो काम जैसे होना होता है, वैसे ही होता है । अभी तो पहला साझा काव्य संग्रह छपा है कि अचानक ये विचार डॉ विनय सिंघल जी की ओर से रखा गया कि क्यों न हम तीनों डॉ विनय सिंघल, श्रीमती अंजू कालरा दासन और मैं डॉ वीणा शंकर शर्मा,मिलकर एक त्रयी संकलन की रचना करें।
अग्निशिखा" स्वर्गीय जीतेंद्र कुमार कर्ण की प्रकाशित तीसरी पुस्तक है। इस कथा के मुख्य पात्र अपने समय के महा-प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट राजा पुरूरवा और स्वर्ग-लोक की सर्वश्र
अग्निशिखा" स्वर्गीय जीतेंद्र कुमार कर्ण की प्रकाशित तीसरी पुस्तक है। इस कथा के मुख्य पात्र अपने समय के महा-प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट राजा पुरूरवा और स्वर्ग-लोक की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी अप्सरा उर्वशी हैं। उनकी प्रणय कथा पर आधारित है यह पुष्तक। पुरूरवा और उर्वशी की चर्चा पुराण के अतिरिक्त ऋग्वेद में भी मिलती है। विभिन्न पुराण और ऋग्वेद की कथाओं से ली गई जानकारियों के आधार पर यह कथा लिखी गयी है।
प्रस्तुत काव्य-संग्रह 'अनुभूतियाँ' में मैंने अनुभूतियों को ही महत्व दिया है। संसार में रहकर सुख और दुख, आनंद और शोक, जय और पराजय, स्वीकार और अस्वीकार, प्रेम और घृणा, स्वार्थ और निस
प्रस्तुत काव्य-संग्रह 'अनुभूतियाँ' में मैंने अनुभूतियों को ही महत्व दिया है। संसार में रहकर सुख और दुख, आनंद और शोक, जय और पराजय, स्वीकार और अस्वीकार, प्रेम और घृणा, स्वार्थ और निस्वार्थ जैसे विभिन्न भावों की जो अनुभूतियाँ की हैं उन्हें छंद, मात्रा, ताल और लय आदि नियमों मैं न बंध कर मुक्त मनसे अभिव्यक्ति करने का प्रयास किया है।
मैं अग्रजसम भाई वीरेन्द्र प्रधान जी को उनके इस कविता संग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई देती हूं तथा मुझे विश्वास है कि उनकी कविताएं पाठकों को रुचिकर लगेंगी एवं आंदोलित करेंगी।&
मैं अग्रजसम भाई वीरेन्द्र प्रधान जी को उनके इस कविता संग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई देती हूं तथा मुझे विश्वास है कि उनकी कविताएं पाठकों को रुचिकर लगेंगी एवं आंदोलित करेंगी।
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
वरिष्ठ साहित्यकार, कवयित्री
समीक्षक एवं स्तम्भ लेखिका
यह मेरा ४२वाँ एकल काव्य-संकलन है जो माँ शारदा की अनुकम्पा के बिना सम्भव हो ही नहीं सकता। इसके अतिरिक्त १६ संयुक्त काव्य-संकलन, ०४ युगल काव्य-संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं, ०१ संयु
यह मेरा ४२वाँ एकल काव्य-संकलन है जो माँ शारदा की अनुकम्पा के बिना सम्भव हो ही नहीं सकता। इसके अतिरिक्त १६ संयुक्त काव्य-संकलन, ०४ युगल काव्य-संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं, ०१ संयुक्त दोहा संकलन व ०१ त्रयी काव्य-संकलन "त्रिवेणी" आकार ले रहे हैं।
यह मेरा ४२वाँ एकल काव्य-संकलन है जो माँ शारदा की अनुकम्पा के बिना सम्भव हो ही नहीं सकता। इसके अतिरिक्त १६ संयुक्त काव्य-संकलन, ०४ युगल काव्य-संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं, ०१ संयु
यह मेरा ४२वाँ एकल काव्य-संकलन है जो माँ शारदा की अनुकम्पा के बिना सम्भव हो ही नहीं सकता। इसके अतिरिक्त १६ संयुक्त काव्य-संकलन, ०४ युगल काव्य-संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं, ०१ संयुक्त दोहा संकलन व ०१ त्रयी काव्य-संकलन "त्रिवेणी" आकार ले रहे हैं।
कविता संग्रह "हौसले की ऊँची उड़ान" मेरी पहिली कविता संग्रह है। जो मेरे मन मे एक कुलबुलाहट,एक जिजीविषा, एक अकुलाहट थी, वह इस कविता संग्रह "हौसले की ऊँची उड़ान" के माध्यम से बाहर आई है
कविता संग्रह "हौसले की ऊँची उड़ान" मेरी पहिली कविता संग्रह है। जो मेरे मन मे एक कुलबुलाहट,एक जिजीविषा, एक अकुलाहट थी, वह इस कविता संग्रह "हौसले की ऊँची उड़ान" के माध्यम से बाहर आई है। जो आम जनमानस से लेकर युवाओं में हौसले भरने का काम करेगी। सोई हुई अंतरात्मा को जगाने का काम करेगी। उनमें आशा, विश्वास और हौसले का संचार करेगी।
हिंदी साहित्य में मुक्तक भी प्रभाव शाली विधा है। मुक्तक का अर्थ ,,,अपने आप में पूर्ण होना है। इसमें एक छंद का दूसरे छंद से संबंध नहीं होता। इसमें चार पंक्तियां जिसमें पहली,
हिंदी साहित्य में मुक्तक भी प्रभाव शाली विधा है। मुक्तक का अर्थ ,,,अपने आप में पूर्ण होना है। इसमें एक छंद का दूसरे छंद से संबंध नहीं होता। इसमें चार पंक्तियां जिसमें पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति तुकांत होती हैं। एक पूरी कविता का सामर्थ एक मुक्तक रखता है। मैंने अपने चुनिंदा मुक्तक इस पुस्तक में रखे हैं। जीवन के संदर्भ से जुड़े सभी विषयों पर। सामाजिक रिश्तों पर, पर्यावरण पर, देश के हालात पर, आदमी के मरते अहसास पर। महँगाई से जूझते इंसान पर और भी बिषयों पर, सभी मुक्तक सहज सरल आम फेम भाषा में हैं जिन्हें समझने में किसी भी आदमी को या महिला को कोई दिक्कत नहीं होगी।
राष्ट्र भाषा हिंदी से हमे बहुत लगाव है, हम हिन्दी गुजराती कवि लेखक अनुवादक है, कोरोंना समय में हमने गांधीनगर साहित्य सेवा संस्थान चेरी टेबल ट्रस्ट का गठन किया और वॉट्स अप ग्रुप म
राष्ट्र भाषा हिंदी से हमे बहुत लगाव है, हम हिन्दी गुजराती कवि लेखक अनुवादक है, कोरोंना समय में हमने गांधीनगर साहित्य सेवा संस्थान चेरी टेबल ट्रस्ट का गठन किया और वॉट्स अप ग्रुप महात्मा गांधी साहित्य मंच के नाम से शुरू किया, हिंदी गुजराती भाषा मे 50 से अधिक कवि सम्मेलन ऑन लाइन आयोजित किया गया, हमे भी कविताए लिखने का अवसर मिला
मेरे लिए बड़े हर्ष का विषय है कि "बांसुरी की जिंदादिली" मेरा द्वितीय काव्य संग्रह प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें मैंने साधारण भाषा में अपनी कविताओं का सृजन किया है ताकि पाठक आसान
मेरे लिए बड़े हर्ष का विषय है कि "बांसुरी की जिंदादिली" मेरा द्वितीय काव्य संग्रह प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें मैंने साधारण भाषा में अपनी कविताओं का सृजन किया है ताकि पाठक आसानी से भावों को समझ सकें। सब कविताएं आम जीवन के इर्द-गिर्द हैं यदि मुझसे कोई त्रुटि हुई हो या व्याकरण की दृष्टि से कोई त्रुटि रही हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
मैं इस धरती पर हूं
यह आपका आशीर्वाद है.....
आपके श्री चरणों में यह संग्रह समर्पित कर रहा हूं।
आपका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।
आपको कोटि-कोटि नमन
मैं इस धरती पर हूं
यह आपका आशीर्वाद है.....
आपके श्री चरणों में यह संग्रह समर्पित कर रहा हूं।
आपका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।
आपको कोटि-कोटि नमन
सबसे कठिन काम होता है अपनी कृति के लिये अपने हृदय के उद्गार लिखना। एक उलझन सी आ खड़ी होती है कि कहाँ से आरम्भ करूँ?
सौभाग्य और संयोग से आज गुरु पूर्णिमा का दिन है , प्रभु कृपा से मौ
सबसे कठिन काम होता है अपनी कृति के लिये अपने हृदय के उद्गार लिखना। एक उलझन सी आ खड़ी होती है कि कहाँ से आरम्भ करूँ?
सौभाग्य और संयोग से आज गुरु पूर्णिमा का दिन है , प्रभु कृपा से मौसम भी सुहाना है, हृदय स्वयं ही लेखनी लेकर तैयार हो गया उद्गार लिखने को।
सर्वप्रथम मेरे माता पिता के प्रति हृदय तल से नतमस्तक हूँ जिन्होंने उँगली पकड़ कर चलना सिखाने से लेकर जीने की कला तक बहुत कुछ सिखाया l
मेरी पाँचवीं कक्षा तक हिंदी अध्यापिका रहीं श्रीमती सुंदरी चावला ,मेरी प्रथम सफलता का श्रेय उनको जाता है ,उनके चिरगमन के बाद उनकी बेटी श्रीमती सरिता मेंदीरत्ता ने मेरा सदा उत्साहवर्द्धन किया।
इस काव्य-संकलन को मैंने युगल काव्य-संकलन कहना उचित समझा क्योंकि इसमें दो ही कवि सम्मिलित हैं— एक कवयित्री अंजू कालरा दासन "नलिनी" व दूसरा अधिवक्ता/कवि डॉ.विनय कुमार सिंघल अर्था
इस काव्य-संकलन को मैंने युगल काव्य-संकलन कहना उचित समझा क्योंकि इसमें दो ही कवि सम्मिलित हैं— एक कवयित्री अंजू कालरा दासन "नलिनी" व दूसरा अधिवक्ता/कवि डॉ.विनय कुमार सिंघल अर्थात् मैं।
इस संकलन का नाम भी अनायास ही सूझा— "साँझ और सवेरा"। यहाँ साँझ का प्रतीक मैं हूँ और सवेरे की प्रतीक अंजू जी हैं।
ओ वीणावादिनी मां,
ओ पुस्तक धारणी मां
ओ कमल निवासिनी मां,
पुस्तक धारिणी मां,
हर सरगम संगीत की जननी,
हर धून की ध्वनि की जननी,
हर कला में तू ही बसती,
ममतामई निर्मल न
ओ वीणावादिनी मां,
ओ पुस्तक धारणी मां
ओ कमल निवासिनी मां,
पुस्तक धारिणी मां,
हर सरगम संगीत की जननी,
हर धून की ध्वनि की जननी,
हर कला में तू ही बसती,
ममतामई निर्मल नैनों से,
प्रेम सुधा बरसा दो मां,
मैं नहीं जानता मैं कितने एकल व अन्प काव्य-संकलन प्रकाशित करवा सकूँगा क्योंकि मेरा स्वास्थ्य निरंतर गिर रहा है। न तो मुझे ज्ञात है कि किसने कितने काव्य-संकलन प्रकाशित करवाये हैं
मैं नहीं जानता मैं कितने एकल व अन्प काव्य-संकलन प्रकाशित करवा सकूँगा क्योंकि मेरा स्वास्थ्य निरंतर गिर रहा है। न तो मुझे ज्ञात है कि किसने कितने काव्य-संकलन प्रकाशित करवाये हैं न ही मेरी किसी के साथ प्रतिस्पर्धा ही है। मैं अद्यतन २०,००० से अधिक कविताएँ लिख चुका हूँ जिसे मैं व्यक्तिगत तौर पर एक उपलब्धि के रूप में लेता हूँ।
मैं माँ गिरा की सेवा में रत रह सकूँ यही प्रभु से मेरी प्रार्थना है।
यह मेरा ४०वाँ एकल काव्य-संकलन है,
यह मेरा ३६वाँ एकल काव्य-संकलन है। माँ शारदा की असीम अनुकम्पा से ही यह सम्भव हो पा रहा है। अपने एकल काव्य-संकलन प्रकाशित करने का सुविचार जनवरी, २०१७ में मेरी धर्म-पत्नी श्रीमति आश
यह मेरा ३६वाँ एकल काव्य-संकलन है। माँ शारदा की असीम अनुकम्पा से ही यह सम्भव हो पा रहा है। अपने एकल काव्य-संकलन प्रकाशित करने का सुविचार जनवरी, २०१७ में मेरी धर्म-पत्नी श्रीमति आशा सिंघल, सुपुत्र निशान्त सिंघल, पुत्र-वधू कामिनी सिंघल व मेरी तत्कालीन अधीनस्थ अधिवक्त्री कामिनी श्रीवास्तव ने बारम्बार दबाव बनाते हुए मुझे बाध्य कर दिया अतः २०१८ से अबतक अनेक एकल व संयुच्त काव्य-संकलन प्रकाशित हो गए।
-- प्रस्तावना --
प्रिय पाठकों
सादर अभिवादन!
प्रस्तुत पुस्तक "बिखरे मन के फूल" को आप सबके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन बहुत ही हर्षित हो रहा है।
सम
-- प्रस्तावना --
प्रिय पाठकों
सादर अभिवादन!
प्रस्तुत पुस्तक "बिखरे मन के फूल" को आप सबके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन बहुत ही हर्षित हो रहा है।
समानता-असमानता, अमीरी-गरीबी सांसारिक जीवन और समय चक्र की प्रदत्त ईश्वरीय गतिविधियाँ हैं। ऐसे में कवि हृदय की व्यग्रता और विकलता का कविता की पंक्तियों में श्रृजित या क्रमबद्ध होना स्वाभाविक है।
जैसा कि कविता के लिए यह बात युगों से विषय सम्यक रही है - " कविता आत्मा रुपी सागर में उठती विचार की लहरों/धाराओं से प्रस्फुटित वह पवित्र ज्ञानात्मक ध्वनि है,जो अक्षरों-शब्दों का रूप लेकर जगत कल्याण के लिए अवतरित होती है"।
साथियों मनके सागर में उठती भावनाओं को जो कि मानवीय संवेदनाओं का अनूठा अनुक्रम संजोए हिलोरें मारती हैं उन्हें कविता का रुप देना, पंक्तिबद्ध करना कवि धर्मिता है।
मन में उठते मानवीय मूल्यों/संवेदनाओं के सार्वभौमिक रूप को कविता में मूर्त रूप देने का मेरे द्वारा प्रयास किया गया है, गणना आधारित छंद विधान से उन्मुक्त महाप्राण निराला जी के नक्शे कदम पर चलते हुए आत्मभाव और शब्द संगति, तुकांतता को आधार बनाकर मैं पन्द्रह वर्ष की उम्र से अनवरत लिखता रहा हूँ,आज उन्हीं रचनाओं को आप सबके समक्ष रखते हुए सुखद अनुभूति हो रही है, आशा करते हैं कि यह पुस्तक आप सबको जरुर पसंद आयेगी।।
कवि- उमाकांत त्रिपाठी "निश्छल"
समय निकल जाता है लेकिन कुछ वाक्यां ज़िन्दगी के उन अनमोल लम्हों के ज़हन में हमेशा रहते हैं हम ओर आप उस बीते हुए समय को एक लम्बी उम्र व्यतीत हो जान के बाद याद करते हैं जब यांदे धूमिल
समय निकल जाता है लेकिन कुछ वाक्यां ज़िन्दगी के उन अनमोल लम्हों के ज़हन में हमेशा रहते हैं हम ओर आप उस बीते हुए समय को एक लम्बी उम्र व्यतीत हो जान के बाद याद करते हैं जब यांदे धूमिल होने लगती हैं!
दुनियाँ में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो खून के नही होते पर वो खून से बड़कर होते है एक तरफ आज समाज में अपने रिश्ते दूर हो रहे हैं वही दूसरी तरफ जो मुंह बोले रिश्ते चाहे वो भाई बहन के हो पिता पुत्र के हो या एक माँ ओर बेटे के यकीनन इसमें सबसे बड़ा रिश्ता माँ बेटे का होता है वो भी निभाऐ जाते हैं!
अनेक काव्य-संकलन प्रकाशित होने के पश्चात् यह काव्य-संकलन एक विस्मय भरी चुनौती के रूप में निकाला जा रहा है। बड़ी आनन्द दायक अनुभूति हो रही है। संकलन का आरम्भ वन्दना अथवा प्रार्थन
अनेक काव्य-संकलन प्रकाशित होने के पश्चात् यह काव्य-संकलन एक विस्मय भरी चुनौती के रूप में निकाला जा रहा है। बड़ी आनन्द दायक अनुभूति हो रही है। संकलन का आरम्भ वन्दना अथवा प्रार्थना से करने का आदेश हुआ, अतः मैंने सरस्वती-वन्दना से संकलन के प्रारम्भ का मन बनाया।
प्रस्तुत उपन्यास में भी जहां एक ओर गांव की भोली भाली मासूम मूरतों की तस्वीर झलकती है, वहीं मुंबई की फिल्मी दुनिया की काली सच्चाई, नवांगतुको का संघर्ष और उनकी उपलब्धियों का आख्या
प्रस्तुत उपन्यास में भी जहां एक ओर गांव की भोली भाली मासूम मूरतों की तस्वीर झलकती है, वहीं मुंबई की फिल्मी दुनिया की काली सच्चाई, नवांगतुको का संघर्ष और उनकी उपलब्धियों का आख्यान भी देखने को मिलता है।
मन को खींच लिये जा रहा है ,
ये कैसा नयन हैं
पत्तियों को साथ ले जाती हैं, मानो वैसा पवन हैं
अटूट - सा बंधन बन रहा हैं , नैनों के मिलन से
ये शोर - शराबा कैसा मानो , जग जश
मन को खींच लिये जा रहा है ,
ये कैसा नयन हैं
पत्तियों को साथ ले जाती हैं, मानो वैसा पवन हैं
अटूट - सा बंधन बन रहा हैं , नैनों के मिलन से
ये शोर - शराबा कैसा मानो , जग जश्न माना रहा हैं हमारे
मिलन से
माँ मेरी ये पहली पुस्तक मैं आपको समर्पित करना चाहती हूँ। आपके ही संस्कारों से आज मैंने अपने जीवन मे हर शिखर को पाया है। अपना प्यार और स्नेह मुझपर हमेशा बनाये रखना। मैं आप में अपन
माँ मेरी ये पहली पुस्तक मैं आपको समर्पित करना चाहती हूँ। आपके ही संस्कारों से आज मैंने अपने जीवन मे हर शिखर को पाया है। अपना प्यार और स्नेह मुझपर हमेशा बनाये रखना। मैं आप में अपना सबसे अच्छा दोस्त, साथी देखती हूँ। इस दुनिया मे केवल एक आप ही हो जो मेरे बिना बोले सब कुछ समझ जाती हो। ईश्वर आपको स्वस्थ रखें और आप हमेशा इसी तरह आनंदित रहें।
आपकी चुनमुन आपसे कितना प्रेम करती है ये बताने के लिये शब्द नही है माँ।
'मिसेज वॉट्सन' मेरी पहली लघु कथा संग्रह हैं। इसके पहले मेरी एक संयुक्त काव्य संकलन "दो कवियों की काव्य पंखुड़ियाँ" और एकल काव्य संकलन "यशोधरा" प्रकाशित हो चुकी है।
बचपन से ही मु
'मिसेज वॉट्सन' मेरी पहली लघु कथा संग्रह हैं। इसके पहले मेरी एक संयुक्त काव्य संकलन "दो कवियों की काव्य पंखुड़ियाँ" और एकल काव्य संकलन "यशोधरा" प्रकाशित हो चुकी है।
बचपन से ही मुझे पढ़ने का बहुत शौक था। जब मैं मैट्रिक परीक्षा दे खाली बैठी थी तभी मेरी चचेरी बहन सीमा दी ने मुझे कर्नल रंजीत की जासूसी कहानी की पुस्तक पढ़ने को दी। फिर क्या था मैं कर्नल रंजीत की पुस्तकें पढ़ने लगी और उनकी लगभग सारी कहानियाँ पढ़ चुकी हूँ।
मैंने बड़ों से सुना है और कई जगह पढ़ा भी है कहते हैं कि साहित्य दर्पण समान होता है, जो समाज व व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है। सत्य के दर्शन कराता है, साहित्य में भी काव्य जो बहुत मज
मैंने बड़ों से सुना है और कई जगह पढ़ा भी है कहते हैं कि साहित्य दर्पण समान होता है, जो समाज व व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है। सत्य के दर्शन कराता है, साहित्य में भी काव्य जो बहुत मजबूत माध्यम है बात को सही व सटीक तरीके से लोगों तक पहुचाने का साहित्य व काव्य तो मुझे विरासत में ही मिला है मैं यह दावा नही करती की मेरी ये छोटी छोटी कविताएं छंद व व्याकरण के हिसाब से ठीक हैं कुछ गलतियां भी हो सकती हैं । हां पर यह कहुँगी ये मेरे मन के उदगार हैं जो मोती बन कर निकले हैं जैसे भी हैं आप के सामने हैं मन ने जो कहां कह दिया लिख दिया बस इतना ही है । यदि कुछ गलती भी हो तो छोटी बच्ची समझकर माफ कर देना यह मेरा पहला प्रयास है।
हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में हाइकु एक नवीनतम विधा है। हाइकु मूलतः जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। आज़ हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व साहित्य की निधि
हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में हाइकु एक नवीनतम विधा है। हाइकु मूलतः जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। आज़ हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व साहित्य की निधि बन चुका है।
यह कविता ३ पंक्तियों में लिखी जाती है। पहली पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ अक्षर और तीसरी में ५ अक्षर- इस प्रकार कुल मिलाकर १७ अक्षरों की कविता है। इसमें एक वाक्य को ५-७-५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखा जाता, बल्कि तीनों ही पंक्तियाँ अपने आप में पूर्ण होती हैं।
मैं न कविता लिखना जानता हूँ और न कवि बनना चाहता हूँ। न मैं छंद जानूँ, न तुक, न लय और न प्रास। मैं तो जानूँ सिर्फ़ मन के भावों का करना इज़हार। मैं मन में उठने वाले भावों को कागज़ के पन्
मैं न कविता लिखना जानता हूँ और न कवि बनना चाहता हूँ। न मैं छंद जानूँ, न तुक, न लय और न प्रास। मैं तो जानूँ सिर्फ़ मन के भावों का करना इज़हार। मैं मन में उठने वाले भावों को कागज़ के पन्नों पर शब्दों में पिरोता रहता हूँ और यूँ ही बन जाती कविता।
अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत हुई 2000 में और शुरू हो गया जीवन के कड़वे-मीठे अनुभवों का सफ़र। इस सफ़र में गुलाब के फूलों को देखा और काँटों को भी। हर मोड़ पर नएं-नएं अनुभव होते गएं। स
अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत हुई 2000 में और शुरू हो गया जीवन के कड़वे-मीठे अनुभवों का सफ़र। इस सफ़र में गुलाब के फूलों को देखा और काँटों को भी। हर मोड़ पर नएं-नएं अनुभव होते गएं। संसार की नग्न वास्तविकता को नज़दीकी से देखा। अपने इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं, जीवन में होने वाले अनुभवों और मानव-मन की गहराई में जाकर मैंने जो महसूस किया उसे शब्दबद्ध कर एक गठरी में बाँध लिया। उस गठरी को लघुकथा के रूप में आपके सम्मुख खोल रहा हूँ और चाहता हूँ कि आप मेरे एक-एक शब्द पर चिंतन करें।
भूमिका
जब तन मन का जुड़ाव मिट्टी के कणों से होकर अक्षरों में ढलकर किसी कविता या संग्रह का हिस्सा बनता है तो वास्तव में उन रचनाओं को जीने का मन करता है। कवि द्वारा जी ली गई इन
भूमिका
जब तन मन का जुड़ाव मिट्टी के कणों से होकर अक्षरों में ढलकर किसी कविता या संग्रह का हिस्सा बनता है तो वास्तव में उन रचनाओं को जीने का मन करता है। कवि द्वारा जी ली गई इन रचनाओं में हमारे आसपास की घटित संवेदनशील एंव भावनात्मक अनुभूतियां हम सब के लिए आत्मसात करने के प्रयोजन से किसी संग्रह का हिस्सा बन हमारे आचरण एंव जीने की कला को घढ़ने लगती हैं। आज के इन नये नये सोशल मीडिया उपकरणों में फंसी जीवनरेखा प्रकृति, पर्यायवरण, सामाजिक बन्धन रिश्तों व भावों से बाईपास होते हुए कठोरता के आवरण में ढकी चली जाती है। साहित्य की कोमल विधा कविता की मार्मिक शब्दावली में सामाजिक, प्राकृतिक परिवेश के विचारों को पिरोकर मन के सुप्त कोनों में आदर्श भावों से
उनके मन मे चुनौतियों को स्वीकार करने की शक्ति आएगी। सोंच में बदलाव आएगा, सकारात्मकता की ओर उन्मुख हो सकेंगे।
और "हौसले की ऊँची उड़ान" भरने के लिए प्रेरित होंगे। मुझे पूर्ण आशा और
उनके मन मे चुनौतियों को स्वीकार करने की शक्ति आएगी। सोंच में बदलाव आएगा, सकारात्मकता की ओर उन्मुख हो सकेंगे।
और "हौसले की ऊँची उड़ान" भरने के लिए प्रेरित होंगे। मुझे पूर्ण आशा और विश्वास है कि यह काव्य-संकलन "हौसले की ऊँची उड़ान" पाठकों को पसन्द आएगी। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
अशोक पटेल "आशु "
व्याख्याता- हिंदी
धन्यवाद
मैं अकिंचन इस पुस्तक को मां शारदे के आशीर्वाद से आपके समक्ष प्रस्तुत कर पा रही हूं, वर्ना मुझ में ऐसी काबिलियत नहीं...। सभी गुरुजनों व अपनों का प्यार इस में सम्मिलि
धन्यवाद
मैं अकिंचन इस पुस्तक को मां शारदे के आशीर्वाद से आपके समक्ष प्रस्तुत कर पा रही हूं, वर्ना मुझ में ऐसी काबिलियत नहीं...। सभी गुरुजनों व अपनों का प्यार इस में सम्मिलित है।
आज मैं जो भी हूं.. अपनी पूज्य माता श्री एवं पिताश्री के आशीर्वाद से हूं। उनके बढ़ावे से मैं आज यहां तक पहुंच पाई हूं।
"मां जन्नत का फूल" दुनिया की सभी मांओं को समर्पित है यदि मुझसे कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा प्रार्थी हूं
जीवन के हर मोड़ पर...,
अपनों का प्यार सदा पाया,
बड़ों के प्यार व आशीर्वाद से,
आज यह शुभ दिन है आया।
प्रस्तुत काव्य संग्रह में 62 कविताएं हैं । जो सन 2005 से अबतक लिखी हुई हैं, जो मुक्तच्छ्न्द में लिखी गयी है. जिसमें क्या हैं क्या नहीं यह निर्णय प्रबुद्ध पाठकों के पास सु
प्रस्तुत काव्य संग्रह में 62 कविताएं हैं । जो सन 2005 से अबतक लिखी हुई हैं, जो मुक्तच्छ्न्द में लिखी गयी है. जिसमें क्या हैं क्या नहीं यह निर्णय प्रबुद्ध पाठकों के पास सुरक्षित हैं, जिसे पाठक अपनी प्रतिक्रिया द्वारा व्यक्त करते हुए हमें उपकृत करेंगे ही. ‘काव्यप्रभा’ का उद्देश्य केवल और केवल ज्ञानवर्धन व लोकरंजन हैं. जिसके द्वारा विचारों का आदान-प्रदान जनसामान्य और पाठकों को हो. किसी भी भारतीय नागरिक पर टीका-टिप्पणी करना, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी भी प्रकार से जाने अनजाने में आहत करना हमारा मन्तव्य नहीं हैं . फिर भी कोई इस कविता संग्रह की कविताएं पढकर किसी प्रकार से आहत होता हैं, तो मैं विनम्रता से क्षमा क्षमा चाहता हुं. आपका अपना ही......
इसमें कोई भी संदेह नहीं है, कि जीवन गुलाब की तरह सुंदर है और हर पल-जिंदा रहने का उत्सव है, लेकिन इसमें चुनौतियाँ भी हैं जो कांटों की करती है।
इसमें कोई भी संदेह नहीं है, कि जीवन गुलाब की तरह सुंदर है और हर पल-जिंदा रहने का उत्सव है, लेकिन इसमें चुनौतियाँ भी हैं जो कांटों की करती है।
मैंने बाल कविताएं लिखते हुए बच्चों की उम्र, उसकी भाषिक संरचना तथा उसकी सोच और समझ का पूरा ख्याल रखा है. बाल कविता के रूप में अपना तीसरा संकलन रखते हुए मुझे अत्यधिक खुशी हो रही है
मैंने बाल कविताएं लिखते हुए बच्चों की उम्र, उसकी भाषिक संरचना तथा उसकी सोच और समझ का पूरा ख्याल रखा है. बाल कविता के रूप में अपना तीसरा संकलन रखते हुए मुझे अत्यधिक खुशी हो रही है. मैं इसके लिए विशेष तौर से साहित्य धरा अकादमी का शुक्र गुजार हूं,कि उन्होंने यह अवसर मुहैया कराया. मुझे उम्मीद है कि ये बाल कविताएं आपके द्वारा पसंद की जाएंगी.
-डॉ.जियाउर रहमान जाफरी
सहायक प्रोफेसर
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज गया बिहार
9934847941
"काव्य-संग्रह" 'मेरी कलम'नाम से प्रकाशित कराने जा रहा हूँ जिसमें विभिन्न विषयों से सम्बंधित लगभग पचहत्तर उद्देश्य-पूर्ण कविताएं संग्रहित हैं। "साहित्य धरा अकादमी"के संचालक आदरण
"काव्य-संग्रह" 'मेरी कलम'नाम से प्रकाशित कराने जा रहा हूँ जिसमें विभिन्न विषयों से सम्बंधित लगभग पचहत्तर उद्देश्य-पूर्ण कविताएं संग्रहित हैं। "साहित्य धरा अकादमी"के संचालक आदरणीय हितेश रंजन जी का आभारी हूँ जिन्होंने प्रकाशन का दायित्व निभाया है और मेरी भावनाओं को जन-जन तक पहुँचाने में सहयोग प्रदान किया है।
धन्यवाद
प्यारेलाल साहू मरौद
दिनांक :
दो शब्द
बचपन से ही मुझे पत्र पत्रिकाओं अखबारों में रूचि तथा उनमें कुछ ना कुछ लिखने का शौक रहा है। बीच के कुछ कालखण्ड को छोड़कर यह प्रक्रिया अनवरत जारी है। वर्ष 2019 में घटित एक
दो शब्द
बचपन से ही मुझे पत्र पत्रिकाओं अखबारों में रूचि तथा उनमें कुछ ना कुछ लिखने का शौक रहा है। बीच के कुछ कालखण्ड को छोड़कर यह प्रक्रिया अनवरत जारी है। वर्ष 2019 में घटित एक घटना ने लेखन की प्रक्रिया को तीव्र किया तथा मेरे अंदर का सोया साहित्यकार कुलांचे भरने लगा। फ़रवरी 2020 में मेरी पहली कविता संग्रह " नया नया सा एहसास" प्रकाशित हुई।
वर्तमान में लगभग दस साझा काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुकी है।साथ ही साथ सोशल मीडिया के विभिन्न साहित्यिक प्लेटफार्मों पर नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती हैं। मुझे साहित्य के क्षेत्र में प्रकाशकों द्वारा अनेकानेक सम्मान प्राप्त हुए हैं। मेरी रचनाएं अधिकतर समकालीन और जनसरोकार वाली होती हैं। जिसमें आम आदमी केन्द्रीय भूमिका में रहते हैं। सरकार से उनकी उपेक्षा पर कटाक्ष करती हुई प्रतीत होती हैं। सामान्य शब्दों से सजी होती हैं। जिसे जनसाधारण भी सहज रूप से समझ सकते हैं।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह काव्य संग्रह भी आप सबों को भाएगा।
नवाब मंजूर
दो शब्द
जब आत्मा प्रेरित करती है और माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिलता है तो शब्द मन की भावनाओं को उकेरने लगते हैं, और शब्द प्रवाह एक रचना का रूप ले लेते हैं।
सर्व साधारण जीवन में
दो शब्द
जब आत्मा प्रेरित करती है और माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिलता है तो शब्द मन की भावनाओं को उकेरने लगते हैं, और शब्द प्रवाह एक रचना का रूप ले लेते हैं।
सर्व साधारण जीवन में हम नित्य अनेक घटनाओं और उपलक्ष्यों को गहनता से महसूस करते हैं और उनका विश्लेषण अपने जीवन के सांसारिक अनुभवों और
बड़े बुजुर्गों के द्वारा प्राप्त संस्कारो के आधार पर करते हैं।
जब मन भीतर से विचारों को ये धारा शब्द रूपी प्रवाह द्वारा प्रक्षेपित होती है तो बस कविता कहानी का रूप ले लेती है
और मन को एक संतुलन प्रदान करती है।
भिन्न-भिन्न भावों और किरदारों की अभिव्यक्ति के माध्यम से दरसल एक लेखक स्वयं के उत्तम स्वरूप की खोज कर रहा होता है।
इस काव्य-संग्रह में मन की बात और जीवन के अनुभवों को व्यक्त करने का प्रयास किया है॥
हिमांशु चतुर्वेदी
लेखक परिचय :-
नाम : डाॅ. ललित फरक्या "पार्थ"
जन्म दिनांक : 29जून, 1965
जन्म स्थान : रतलाम (मध्यप्रदेश)
शिक्षा : कला स्नातक, आयुर्वेद रत्न (पंजीकृत चिकित्सक)
विधा : कविता, आलेख, लघुकथ
लेखक परिचय :-
नाम : डाॅ. ललित फरक्या "पार्थ"
जन्म दिनांक : 29जून, 1965
जन्म स्थान : रतलाम (मध्यप्रदेश)
शिक्षा : कला स्नातक, आयुर्वेद रत्न (पंजीकृत चिकित्सक)
विधा : कविता, आलेख, लघुकथा, निबन्ध, हाइकू, समीक्षा, क्षणिका इत्यादि।
काव्य कृतियाँ :
1) स्पर्श : दिल से दिल तक
2) अन्तर्घट : मन की मन तक
3) स्पन्दन : साँसों की साँसों तक
4) अनाहिता : कुछ दिल की कुछ मन की
मन की बात
नमस्कार मित्रों, अपने चारों ओर जो प्रतिदिन घटित हो रहा है उसे मैंने अनुभव किया और समाज में जागरूकता लाने के उद्देश्य से सभी सामाजिक मुद्दों को, विकृतियों को एक-एक ल
मन की बात
नमस्कार मित्रों, अपने चारों ओर जो प्रतिदिन घटित हो रहा है उसे मैंने अनुभव किया और समाज में जागरूकता लाने के उद्देश्य से सभी सामाजिक मुद्दों को, विकृतियों को एक-एक लघुकथा का रूप दिया है। इन्हे पढ़कर आपको आभास होगा कि हम आज भी किन छोटी-छोटी बातों को सरलता से उपेक्षित किए जा रहे हैं जो एक समय के बाद समस्या बनकर विकराल रूप में हमारे सामने आ खड़ी होती है।तब हम इनसे उबरने के उपाय ढूंढते हैं। क्यों न समय रहते सचेत हुआ जाए? इस प्रश्न के उत्तर से आपको सीधे जोड़ती हुई लघुकथाएँ, निश्चित अपना उद्देश्य प्राप्त करेंगी। आपके हृदय तक उतरेंगी।
धन्यवाद
||तुम्हारा होना||
ये रंग
जो तुम्हारी हंसी से
बिखरे पड़े हैं धरा पर
तुम्हारे प्रेम की ऊष्मा पाकर ही
वाष्पित हुए
और इंद्रधनुष हो गया सतरंगी
तुम्हारी खुशियों से ही
तय
||तुम्हारा होना||
ये रंग
जो तुम्हारी हंसी से
बिखरे पड़े हैं धरा पर
तुम्हारे प्रेम की ऊष्मा पाकर ही
वाष्पित हुए
और इंद्रधनुष हो गया सतरंगी
तुम्हारी खुशियों से ही
तय किये गए
धरती और आकाश की
सम्पूर्णता के समीकरण,
अलसुबह
तुम्हारे चेहरे के नूर से ही
खिलते रहे फूल
जब नहीं रहोगी तुम
बेरंग हो जायेगी दुनियाँ
खत्म हो जायेंगी पृथ्वी पर
जीवन की सारी संभावनाएं |
भानु प्रकाश रघुवंशी
* मोटर साइकिल एक कविता *
बहुत धीरे ही सही
कुछ लोगों की पहुँच में
बीच की सड़क भी आई
सड़क के किनारे चलने वाले लोग
हो सके रफ़्तार में शामिल .
बहुत धीरे ही सही
लोगों के पास अ
* मोटर साइकिल एक कविता *
बहुत धीरे ही सही
कुछ लोगों की पहुँच में
बीच की सड़क भी आई
सड़क के किनारे चलने वाले लोग
हो सके रफ़्तार में शामिल .
बहुत धीरे ही सही
लोगों के पास अपनों तक पहुँचने के लिए
अपने समय के साथ
हो पाया ठीक से मुकम्मल .
बच्चे देश का सुनहरा भविष्य हैं। बाल मन बहुत ही कोमल होता है। जैसा भी ढालो उसी रूप में ढल जाता है । मेरी ये सारी कविताएँ बाल मित्रों के लिए लिखी गई हैं। अब तक मैं बाल रचनाएँ लिखती
बच्चे देश का सुनहरा भविष्य हैं। बाल मन बहुत ही कोमल होता है। जैसा भी ढालो उसी रूप में ढल जाता है । मेरी ये सारी कविताएँ बाल मित्रों के लिए लिखी गई हैं। अब तक मैं बाल रचनाएँ लिखती चली आई हूँ। अब मैं बाल कविताओं को पुस्तक के रूप में बच्चों तक पहुँचाना चाहती हूँ। ये मेरा पहला बाल कविता संग्रह है जो प्रकाशित करवा रही हूँ। इस बाल संग्रह में प्रार्थना से लेकर पशु-पक्षी, प्रकृति , परिवार , देश प्रेम आदि विविध प्रकार की कविताओं को संकलित किया गया है। जिसमें रोचकता के साथ साथ ज्ञान की बातों का भी समावेश किया गया है ।मेरी बाल कविताएँ जैसी भी हो ,कुछ विचार हैं, जिन्हें मैं अपने बाल मित्र , पाठकों तक पहुँचाना चाहती हूँ।
Journey
A tiny, powerless, ignorant creature
Carrying the baggage of previous sins,
And filthy load of instincts,
Groping in darkness of Maya,
Unguided, unprotected, uncared;
Tied with the unbreakable rope of
Raag, dvesa, and moha,
Moving helplessly
In the vicious cycle of life and death,
Curbing under the pressure
Of akushala karma and samskara,
Yearning for bliss, enlightenment and liberation,
Yearning
Journey
A tiny, powerless, ignorant creature
Carrying the baggage of previous sins,
And filthy load of instincts,
Groping in darkness of Maya,
Unguided, unprotected, uncared;
Tied with the unbreakable rope of
Raag, dvesa, and moha,
Moving helplessly
In the vicious cycle of life and death,
Curbing under the pressure
Of akushala karma and samskara,
Yearning for bliss, enlightenment and liberation,
Yearning to unravel the mystery of the world
And the divine glory;
दो शब्द..
मैं "अनु" कोई कवित्री और लेखिका नहीं हूं बस बारह साल की उम्र से ही शब्दों को जोड़-तोड़ कर कुछ-कुछ लिखने का प्रयास करती आ रही
हूं और यह जो पुस्तक आप पाठकों के हाथों में
दो शब्द..
मैं "अनु" कोई कवित्री और लेखिका नहीं हूं बस बारह साल की उम्र से ही शब्दों को जोड़-तोड़ कर कुछ-कुछ लिखने का प्रयास करती आ रही
हूं और यह जो पुस्तक आप पाठकों के हाथों में सौंप रही हूं यह कविता संग्रह मेरी पहली कविता संग्रह है,
मुझे खूब हर्ष भी हो रहा है कि प्रेम के अनुभव पर आधारित कविताएं कुछ आप लोगों के मन को छू लेगी ऐसा मेरा विश्वास है और कुछ आँखो को नम करेंगी, मुझे आशा है इस पुस्तक में रह गई अशुद्धियों को छोटी बहन को प्यार देकर प्रथम प्रयास मानते हुए नजर अंदाज कर हमें माफ कर देंगें।
आपकी अपनी
अनुराधा
प्रश्न व्यूह
(लंबी कविता)
महेश कटारे "सुगम"
अब दुखी द्रोपदी बैठी थी
अपमान भाव से भरी हुई
थी केश राशि उलझी उलझी
कुछ सकुचाई कुछ डरी हुई
मन शांत भला कैसे ह
प्रश्न व्यूह
(लंबी कविता)
महेश कटारे "सुगम"
अब दुखी द्रोपदी बैठी थी
अपमान भाव से भरी हुई
थी केश राशि उलझी उलझी
कुछ सकुचाई कुछ डरी हुई
मन शांत भला कैसे होता
वह मार रहा था फुफकारें
विद्रोह भाव थे खड़े हुए
अब खींच म्यान से तलवारें
प्रारब्ध
॰॰॰॰॰
जैसे भगवान विष्णु के
सहस्त्रनाम हैं
वैसे ही मैंने प्रारब्ध के सहस्त्र रूप
और सहस्त्र रंग देखे हैं,
प्रारब्ध मेरे जीवन में
कभी अभद्र भाषा के रूप में, क
प्रारब्ध
॰॰॰॰॰
जैसे भगवान विष्णु के
सहस्त्रनाम हैं
वैसे ही मैंने प्रारब्ध के सहस्त्र रूप
और सहस्त्र रंग देखे हैं,
प्रारब्ध मेरे जीवन में
कभी अभद्र भाषा के रूप में, कभी
झिड़कियों के रूप में, कभी गंदी गालियों के रूप में, कभी लात-जूतों के प्रसाद के रूप में, कभी छलावे के रूप में, कभी निरंतर पराजय और अपमान के रूप में, कभी मेरे साहित्य सृजन को घृणा और वितृष्णा की दृष्टि के रूप में
प्रस्तुत होता रहा है।
११.३०, २१-०५-२०२२
पालम विहार, गुरुग्राम
दो शब्द
जीवन की आपधापी में समय कहाँ है किसी के पास। ऐसे में तीव्र उत्कंठा और तात्कालिक सुलझाव मनुष्य की अपेक्षा बन गये हैं। परिणामतः साहित्य ने अपने स्वरूप में परिवर्तन करना
दो शब्द
जीवन की आपधापी में समय कहाँ है किसी के पास। ऐसे में तीव्र उत्कंठा और तात्कालिक सुलझाव मनुष्य की अपेक्षा बन गये हैं। परिणामतः साहित्य ने अपने स्वरूप में परिवर्तन करना भी लाजिमी है। कविताओं ने छंद छोड़कर भाव और संवेदनापक्ष को महत्व दिया। लघुकथा ने कहानी का विस्तार छोडा और संवेदना को तीव्रता से अपनाया। वैसे ही इन लघुनिबंधों ने विचार को प्रमुखता दी है।
प्राक्कथन
साहित्य स्वांत सुखाय के साथ साथ लोक हिताय के लिए हो तो उसको सफल साहित्य माना जाता है। साहित्य की बहुत सी विधाओं में लिखा जाता है जैसे कथा-कहानी, कविता, गजल, नाटक उपन्
प्राक्कथन
साहित्य स्वांत सुखाय के साथ साथ लोक हिताय के लिए हो तो उसको सफल साहित्य माना जाता है। साहित्य की बहुत सी विधाओं में लिखा जाता है जैसे कथा-कहानी, कविता, गजल, नाटक उपन्यास, लघुकथा इत्यादि अनेक विधाएं हैं जिसमें साहित्य की रचना की जा रही है। हीरा सिंह कौशल ने दूरभाष पर कहा कि आप ने मेरी लघुकथा पर अपनी बात लिखनी है। इन्होंने कहा कि कि मैं आपको लघुकथाएं भेजूंगा आपने इसमें अपनी बात कहनी है।
दो शब्द
हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि किताबें हमें जिंदगी का रास्ता दिखाती हैं, ये सच्चाई भी है मैंने अपनी साहित्य यात्रा भी साहित्य के सबसे बड़े पुरोधा मुंशी प्रेम चंद जी
दो शब्द
हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि किताबें हमें जिंदगी का रास्ता दिखाती हैं, ये सच्चाई भी है मैंने अपनी साहित्य यात्रा भी साहित्य के सबसे बड़े पुरोधा मुंशी प्रेम चंद जी के उपन्यास (वरदान) को पढ़ कर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली और प्रेम विषय को समझने की कोशिश में लग गया। जब मैं अपने मन में अवरुद्ध अनुभव कर रहा था तो केवल मेरी रुचि गीतों, ग़ज़लों की तरफ बढ़ गई। पहले भी कई मसौदों को पढ़ा था– उन सबमें उन्हें उन नायकों ने प्रेम रूप प्रस्तुत किया जो वे मेरे लिए एक पर्याय बन चुके हैं, और, निश्चय ही जिन आत्मानुभूति के लिए लेखनी चलाई उससे सहायता और प्रेरणा भी दी।
इस पुस्तक में मुख्य बिंदु प्रेम है, आपको इस पुस्तक में श्रृंगार युक्त रचनाएं प्रेम, विरह गीत और मुक्तक पढ़ने को मिलेगा आशा है आप सभी पाठकों को पढ़ते समय अपने प्रेमी की याद अनायास आ जायेगी।
और आप एक अलग अनुभव और आनंद की अनुभूति होगी।
धन्यवाद!
अभिषेक मिश्रा
दिनांक : 01.05.2022
दो शब्द...
मैं कवि नहीं हूँ। कविता जीना मेरे बस में नहीं।
गाहे बेगाहे शब्दों को जोड़ लेता हूँ।
मुझे पता है आज कविता पढ़ने वाले उतने लोग नहीं हैं जितने लिखने वाले। ऐसे में कवि
दो शब्द...
मैं कवि नहीं हूँ। कविता जीना मेरे बस में नहीं।
गाहे बेगाहे शब्दों को जोड़ लेता हूँ।
मुझे पता है आज कविता पढ़ने वाले उतने लोग नहीं हैं जितने लिखने वाले। ऐसे में कविता संग्रह का प्रकाशन मात्र एक शौक या कदाचित एक संभ्रांत मूर्खता से अधिक कुछ भी नहीं।
बहरहाल दुनिया को कविता की आवश्यकता है। कविता मानवता की मातृभाषा है। इसके बिना मानवता गूंगी हो जाएगी। इसलिए कविता लिखी जाती रहेगी। कविता मानव समाज का एक भावुक इतिहास होती है जिसका सत्य कोरे इतिहास से ज्यादा सुंदर और शिवत्व युक्त होता है। समाज के सच को जानने के लिए कविता की आवश्यकता रही है और आगे भी रहेगी। यह आदमी को आदमी बनाना सिखाती है।
"प्रतिबिंब" एक बहुआयामी कृतियों का काव्य संग्रह है। इसमें कवयित्री ने जहां एक ओर स्नेह,सद्भावना और खट्टी मीठी स्मृतियों को छंदों में पिरोकर प्रस्तुत किया है वहीं दूसरी ओर उनक
"प्रतिबिंब" एक बहुआयामी कृतियों का काव्य संग्रह है। इसमें कवयित्री ने जहां एक ओर स्नेह,सद्भावना और खट्टी मीठी स्मृतियों को छंदों में पिरोकर प्रस्तुत किया है वहीं दूसरी ओर उनकी कविताओं में भारतवर्ष के त्योहारों और ऋतुओं के माध्यम से जीवन के हर्षोल्लास और जनसामान्य के संघर्षों और उपलब्धियों की झांकी भी देखने को मिलती है। इनमें प्राचीन सभ्यता की उन्नति और अविरल परिवर्तन की झलक का बड़ी सहजता से चित्रांकन किया गया है।
दो शब्द:
जीवन एक अनोखा सफ़र है। इस सफ़र में होने वाले कड़वे-मीठे अनुभवों को लघुकथा के रूप में व्यक्त करने का एक छोटा-सा प्रयत्न किया है। आशा करता हूं कि मेरी हर एक कथा का सार किस
दो शब्द:
जीवन एक अनोखा सफ़र है। इस सफ़र में होने वाले कड़वे-मीठे अनुभवों को लघुकथा के रूप में व्यक्त करने का एक छोटा-सा प्रयत्न किया है। आशा करता हूं कि मेरी हर एक कथा का सार किसी के ज़ेहन में उतर जाए, किसी के दिल को भा जाए और किसी की अंतरात्मा जाग जाए।
समीर उपाध्याय 'ललित'
दो शब्द:
अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत हुई 2000 में और शुरू हो गया जीवन के कड़वे-मीठे अनुभवों का सफ़र। इस सफ़र में प्रकाश पुंज को देखा और गुमनामी के अंधेरे को भ
दो शब्द:
अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत हुई 2000 में और शुरू हो गया जीवन के कड़वे-मीठे अनुभवों का सफ़र। इस सफ़र में प्रकाश पुंज को देखा और गुमनामी के अंधेरे को भी। हर मोड़ पर नएं-नएं अनुभव होते गएं। संसार की नग्न वास्तविकता को नज़दीकी से देखा। अपने इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं, जीवन में होने वाले अनुभवों और मानव-मन की गहराई में जाकर मैंने जो महसूस किया उसे शब्दबद्ध कर एक गठरी में बांध लिया। उस गठरी को लघु कथा के रूप में आपके सम्मुख खोल रहा हूं और चाहता हूं कि आप मेरे एक-एक शब्द पर चिंतन करें।
**समीर उपाध्याय 'ललित'**
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
यह मेरा ३४वाँ एकल काव्य-संकलन है। लेखन गति बहुत धीमी है। आँखें साथ नहीं दे रहीं। फिर भी अपने स्वभावानुसार काव्य-सृजन कर ही रहा हूँ।
आगामी काव्य-संकलन
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
यह मेरा ३४वाँ एकल काव्य-संकलन है। लेखन गति बहुत धीमी है। आँखें साथ नहीं दे रहीं। फिर भी अपने स्वभावानुसार काव्य-सृजन कर ही रहा हूँ।
आगामी काव्य-संकलनों की मुख-पृष्ठ छवियाँ और शीर्षक सोच कर रखे हैं।
मेरी आँखे ठीक रहतीं तो कतिपय कला-कृतियाँ मैं भी बना डालता। किन्तु हमारी समस्त गतिविधियाँ विधि के आधीन हैं।
इस संकलन में १०० कविताएँ रखी हैं मैंने जो ०१-०५-२०२२ व १३-०५-२०२२ के मध्य जन्मीं हैं। मैं अपनी रचनाओं का सम्पादन न तो स्वयं करता हूँ न ही किसी से करवाता हूँ। अब भूमिकाएँ भी नहीं लिखवाता।
काव्य व रचना शायद मै कभी ना लिखता मै सन् 1975 से उपन्यास लिखता रहा कई पत्र पत्रिकाओं में अक्सर लेख लघुकथाऐ धारावाहिक कहानी ही लिखता रहा लाक डाउन के समय अपने एक मित्र के कहने पर चार प
काव्य व रचना शायद मै कभी ना लिखता मै सन् 1975 से उपन्यास लिखता रहा कई पत्र पत्रिकाओं में अक्सर लेख लघुकथाऐ धारावाहिक कहानी ही लिखता रहा लाक डाउन के समय अपने एक मित्र के कहने पर चार पंक्तियां लिखी थी एक प्रेरणा स्त्रोत बन मेरे जीवन की लिखत बदल गई फिर माँ शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखता है मेरी माँ मेरी बहन मेरी हर रचना को प्रोत्साहित करती थी बस यही से सफर शुरू हुआ! अपने जीवन में मेने नारी को सम्मान पूर्वक मान दिया व यही से प्रेरित होकर मेने रचनाएँ लिखी अभी तक 300 से ऊपर रचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है सिर्फ रचनाओ में मुझे हिन्दी
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰
यह मेरा ३८वाँ एकल काव्य-संकलन है, ३४वाँ "काव्य-नवरत" प्रकाशनाधीन है, ३५वाँ "अंतर्जगत की काव्य-यात्रा" प्रकाशनाधीन है, ३६वाँ व ३७वाँ भूमिका लेखन के लिये गय
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰
यह मेरा ३८वाँ एकल काव्य-संकलन है, ३४वाँ "काव्य-नवरत" प्रकाशनाधीन है, ३५वाँ "अंतर्जगत की काव्य-यात्रा" प्रकाशनाधीन है, ३६वाँ व ३७वाँ भूमिका लेखन के लिये गये हुए हैं।
मैं अपनी लेखन यात्रा विषयी विवरण अपने पूर्व के काव्य-संकलनों में विस्तार से दे चुका हूँ।
मैं अधिक कुछ न कह कर इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि मेरी मुँहबोली, बहुत स्नेहमयी अनुजा अंजू कालरा दासन "नलिनी" ने एक ही दिन में अत्यन्त सारगर्भित, सुन्दर, प्रभावशाली भूमिका लिख कर मुझे प्रेषित कर दी जिसके लिये मैं अनुजा अंजू का सदा आभारी रहूँगा।
कवि परिचय
उड़ता मन काव्य संग्रह के लेखक कवि बिशेश्वर कुमार जो
बी कुमार के नाम से साहित्य जगत में जाने जाते हैं का जन्म भूमि छपरा बिहार जो राष्ट्र कवि आदरणीय रामधारी सिंह द
कवि परिचय
उड़ता मन काव्य संग्रह के लेखक कवि बिशेश्वर कुमार जो
बी कुमार के नाम से साहित्य जगत में जाने जाते हैं का जन्म भूमि छपरा बिहार जो राष्ट्र कवि आदरणीय रामधारी सिंह दिनकर और फणीश्वर नाथ रेणु जैसे विभूतियों की जन्म स्थली है।
कवि अवकाश प्राप्त एसबीआई अधिकारी जीवन के इर्द गिर्द घूमते मानव मन की अचेतन भावनाओं को जन मानस
की बोल चाल की देवनागरी भाषा में कविता का सृजन किया हैं।
उड़ता मन काव्य संग्रह कवि की द्वितीय पुस्तक संकलन
आप पाठक बंधुओं की सेवा में समर्पित हैं। त्रुटियों के लिए
क्षमा प्रार्थी करते हुए प्रस्तुत करता हूं।
जिंदगी मौन ,क्या तलाशती मालूम नहीं
मन को हैं एक उड़ान , शुन्य में भटकन
कविता के भाव के साथ आपके अंतर्मन को छू जाने की
कामना के साथ प्रस्तुत उड़ता मन काव्य संग्रह।।
बी कुमार
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
कविता संग्रह "हौसले की उड़ान" मेरी पहिली कविता संग्रह है। जो मेरे मन मे एक कुलबुलाहट,एक जिजीविषा, एक अकुलाहट थी वह इस कविता संग्रह "होशले की उड़ान" के माध्यम से बाहर आई है। जो आम जनमान
कविता संग्रह "हौसले की उड़ान" मेरी पहिली कविता संग्रह है। जो मेरे मन मे एक कुलबुलाहट,एक जिजीविषा, एक अकुलाहट थी वह इस कविता संग्रह "होशले की उड़ान" के माध्यम से बाहर आई है। जो आम जनमानस से लेकर युवाओं में हौसले भरने का काम करेगी। सोई हुई अंतरात्मा को जगाने का काम करेगी। उनमें आशा, विश्वास और हौसले का संचार करेगी।
दो शब्द
भगवान श्री कृष्ण के मुखों से निकली श्रीमद् भागवत गीता
को मुक्तकों में लिखने का मात्र एक उदेश्य यह है की यह सरल भाषा में लोगो तक पहुँचे।
तथा इस कृति के माध्यम से
दो शब्द
भगवान श्री कृष्ण के मुखों से निकली श्रीमद् भागवत गीता
को मुक्तकों में लिखने का मात्र एक उदेश्य यह है की यह सरल भाषा में लोगो तक पहुँचे।
तथा इस कृति के माध्यम से समस्त लेखकों को आवाहन है की वह इसे अपने तरीके से गीता लिखें ताकि उनके पाठक भी गीता को पढें।
वर्तमान समाज में जहाँ चारो तरफ अराजकता फैल रही है वहाँ गीता का ज्ञान अपने कर्तव्यों को पहचानने के लिये अति आवश्यक है।
मुक्तकों मे होने के कारण मुक्तक पसंद करने वाले पाठक इसे पढ़ेंगे।
धन्यवाद साहित्य
अभिषेक द्विवेदी
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
भूमिका
ऐसी छेड़ी तान गुरु मेरी नज़र में, ऐसी छेड़ी तान गुरु, ये रोचक शीर्षक है डॉ.रमेश कटारिया पारस के ग़ज़ल संग्रह का।
ग्वालियर ही नहीं अपितु भारत के अनेक स्थानों पर देश क
भूमिका
ऐसी छेड़ी तान गुरु मेरी नज़र में, ऐसी छेड़ी तान गुरु, ये रोचक शीर्षक है डॉ.रमेश कटारिया पारस के ग़ज़ल संग्रह का।
ग्वालियर ही नहीं अपितु भारत के अनेक स्थानों पर देश के अनेक मंचो पर सुने एवम सराहे गए डॉक्टर पारस जी बहुत ही सुलझे हुए शायर और साहित्यकार हैं।
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
चंद अल्फाज़ से हर्फ़ लेकर ज़िन्दगी क़यामत की दहलीज़ पर बाअदब खड़ी होती है। उस दिन जब ज़र्रे से आवाज उठती है कि तूने ताउम्र क्या किया? मुझे खुशी होगी कि मैं कहूँ कि मैं ताउम्र इंसान बना
चंद अल्फाज़ से हर्फ़ लेकर ज़िन्दगी क़यामत की दहलीज़ पर बाअदब खड़ी होती है। उस दिन जब ज़र्रे से आवाज उठती है कि तूने ताउम्र क्या किया? मुझे खुशी होगी कि मैं कहूँ कि मैं ताउम्र इंसान बना रहा। बकौल ग़ालिब -
"बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना।"
बाअदब के अल्फाज़ में ज़िन्दगी के हर्फ़ हैं जिसे आपके सामने इस फैसले के लिए पेश करता हूँ कि क्या ये बाक़ायदा आप ही की सदा ही नहीं है? बेशक़ कलम ने इन्हें ज़ज़्ब कर सादे कैनवास पर बिखेरा है लेकिन दूर से आती सबा की मखमली सदाएँ आप ही की तो थीं -
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
अपनी बात
समय और इस समय से जुड़ी सारी की सारी सच्चाई महज इत्तफाक नहीं है कि हम इसका इंतजार करें और तलाशे इन समय के बीच से अपनी अपनी मंजिल। आज जो हमारे बीच समय फैला है, इस फैलाव में
अपनी बात
समय और इस समय से जुड़ी सारी की सारी सच्चाई महज इत्तफाक नहीं है कि हम इसका इंतजार करें और तलाशे इन समय के बीच से अपनी अपनी मंजिल। आज जो हमारे बीच समय फैला है, इस फैलाव में बहुत सारी विडंबनाओं के बीच जीने की तलाश में विषम स्थिति पैदा हो गई है। हमारे चारो ओर एक भागमभाग की जिंदगी दौड़ रही है, भौतिक सुख के पीछे यह भीड़ अपनों को धक्के देकर बस दौड़ रही है और सही मंजिल का पता नहीं है। इस काल में सब बेगाने हो गए हैं, हमारे बीच से नैतिकता, करुणा, ममता, मानवता, धर्य, संवेदना आदि क्षण प्रतिक्षण खंडित हो रहें हैं। ऐसे विकट समय में बहुत जरूरी हो जाता है कि समय के मापदंड पर हमारी सारी मानवीयता और इनसे जुड़े सभी सवालों से न सिर्फ जुझा जाए बल्कि इनके हल के तलाश में जरूरी कदम उठाया जाए।
मेरी इस चौथी पुस्तक 'दृश्यों के आईने' पर उन्हीं सवालों के खोज में उन सारे आयामों को पिरोया गया है जहां से हम खंडित होने को विवश हैं और सही दिशा की खोज कर उन्हें बहाल करने की कोशिश की गई है. अब यह पुस्तक आपके हाथों में है, आपकी राय की मुझे प्रतीक्षा रहेगी कि हम कितने कामयाब हो पाए हैं।
(हस्ताक्षर)
मोतीलाल दास
डोंगाकाटा, नंदपुर
मनोहरपुर – 833 104
पश्चिम सिंहभूम, झारखंड
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
महेश कटारे "सुगम" स्त्री विमर्श के भी रचनाकार हैं. वैदेही विषाद उनकी पहली लंबी कविता है जो स्त्री के अन्याय के विरोध में पूरी ताकत से खड़ी है . प्रश्न व्यूह इसी प्रकार के प्रतिकार
महेश कटारे "सुगम" स्त्री विमर्श के भी रचनाकार हैं. वैदेही विषाद उनकी पहली लंबी कविता है जो स्त्री के अन्याय के विरोध में पूरी ताकत से खड़ी है . प्रश्न व्यूह इसी प्रकार के प्रतिकार की दूसरी लंबी कविता है.संपूर्ण स्त्री जाति को अपमानित करने वाली द्रोपदी चीर हरण की घटना से उठे अनेक प्रश्न इस व्यूह की रचना करते हैं.इस प्रणांतक पीड़ा के बारे में जब द्रोपदी यह सोचने बैठती है कि आखिर इस घटना को अंजाम देने वाले व्यक्ति कौन कौन हैं,
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, कहानी संकलन, ग़ज़ल संकलन के अलावा लघुकथा संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
(हितेश रंजन दे)
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
नियति का विधान संसार के सब विधानों-संविधानों से ऊपर होता है।
हम योजनाएँ बना तो सकते हैं किन्तु सब योजनाएँ नियति के आधीन होती हैं। मैंने सोचा था इस वर
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
नियति का विधान संसार के सब विधानों-संविधानों से ऊपर होता है।
हम योजनाएँ बना तो सकते हैं किन्तु सब योजनाएँ नियति के आधीन होती हैं। मैंने सोचा था इस वर्ष प्रत्येक पखवाड़े में एक एकल काव्य-संकलन प्रकाशित करवाऊँगा किन्तु स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया। जहाँ प्रतिदिन सामान्यतः दस से बीस कविताएँ आकार लिया करती थीं वह गति एकदम से बाधित हो गई। नियति तुम्हारी जय।
यह ३३वाँ एकल काव्य-संकलन आप तक पहुँचा पा रहा हूँ।
जीवन में अनेक रंग देखे और अभी भी नए-नए रंग दिखा रही है नियति। जैसी हरि इच्छा। अनेक विषयों को छू कर, कभी ओढ़ कर, कभी पकड़ कर चलती हैं मेरी कविताएँ। मेरी प्रत्येक कविता का मूल उत्स यथार्थ है।
मेरा उदास होना, प्रफुल्लित होना, मौन हो जाना, एकाकीपन की कारा में पड़े रहना, सब रंग मिलेंगे आपको मेरी कविताओं में।
मेरी प्रत्येक कविता में ईश्वर की उपस्थिति मुझे बल देती है। मैं पराजित नहीं होऊँगा, चलता रहूँगा जैसे भी बन पड़ेगा।
अभी तक प्रभु ने १९,००० से अधिक कविताएँ मुझसे लिखवा दी हैं।यह भी नियति की कृपा ही है कि वह मेरी गति में अवरोध तो उत्पन्न करती है किन्तु विराम नहीं लगने देती।
धन्यवाद तुम्हारा नियति।
आप कविताएँ पढ़ें और मेरे भीतर तक की सारी प्रदर्शनी देखें। हो सकता है कहीं-कहीं आप ठिठक कर ठहर जाएँ और आप को लगे कि मैंने आपकी आपबीतियाँ भी निचोड़ डाली हैं अपनी कतिपय कविताओं में। यदि ऐसा हुआ तो मेरा लेखन सार्थक हो जाएगा।
आशीर्वादाकांक्षी,
आपका
हस्ताक्षर
डॉ.विनय कुमार सिंघल,
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
अधिवक्ता/कवि
चलभाषः८१७८७३२१०६,९८९१४३५१४५
निवासः १४१२, ब्लॉक-सी, द्वितीय-तल, व्यापार केंद्र के निकट, पालम विहार, गुरुग्राम-१२२०१७, हरियाणा
कवयित्री के विचार
मेरे लिए बड़े हर्ष का विषय है कि "बांसुरी की जिंदगी" मेरा पहला काव्य संग्रह प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें मैंने साधारण भाषा में अपनी कविताओं का सृजन किया
कवयित्री के विचार
मेरे लिए बड़े हर्ष का विषय है कि "बांसुरी की जिंदगी" मेरा पहला काव्य संग्रह प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें मैंने साधारण भाषा में अपनी कविताओं का सृजन किया है ताकि पाठक आसानी से भावों को समझ सके सभी कविताएं आम जीवन के इर्द-गिर्द हैं यदि मुझसे कोई त्रुटि हुई हो या व्याकरण की दृष्टि से कोई त्रुटि रही हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हु। मेरे पतिदेव आदरणीय प्रिंसिपल बलराज गर्ग साहब जी ने मुझे हमेशा खुलकर लिखने की प्रेरणा दी। लिखते लिखते कब छोटी-छोटी कविताओं ने संग्रह का रूप धारण कर लिया पता ही नहीं चला। मुनि समकित द्वारा मेरी पुस्तक "बांसुरी की जिंदगी" का नामकरण हुआ एवं राष्ट्रीय कथावाचक पंडित राधे कृष्ण महाराज जी एवं समकित मुनि जी का आशीर्वाद विशेष रूप से मुझे मिला।
मीना गर्ग
जिला जींद हरियाणा
दो शब्द..
गत कुछ वर्षों से काव्य यात्रा का आरंभ हुआ । या कह लो कलम पकड़ी। 2020 में जब कोरोना महामारी फैली तब मेरी लेखनी ने कुछ कदम बढ़ाने का सिलसिला आरंभ हुआ। यूं तो मैंने कभी किसी ख
दो शब्द..
गत कुछ वर्षों से काव्य यात्रा का आरंभ हुआ । या कह लो कलम पकड़ी। 2020 में जब कोरोना महामारी फैली तब मेरी लेखनी ने कुछ कदम बढ़ाने का सिलसिला आरंभ हुआ। यूं तो मैंने कभी किसी खास सम्मेलन अथवा काव्य गोष्ठी में शिरकत नहीं की जाना नहीं हुआ परन्तु
कुछ पत्र– पत्रिकाओं में मेरी कविताएं छपी। ये 2020 से 2021 का साल रहा जब ( USA) अमेरिका की हम हिन्दुस्तानी जैसे भारत के बाहर के पेपर में मेरी कविताओं को स्थान मिला ।यूं मुझे एक छोटी सी पहचान मिली ।
मैंने कविताएं शौक से और मन आती कुछ बातें जो अनकही होती कुछ उलझने जो सुल्झ नहीं पाती को लिखना शुरू किया । जो आप सभी के सामने कविताओं के रूप में उपस्थित हैं।
आप सभी को समर्पित हैं । आप सभी का प्यार,, प्रोत्साहन,, आशिर्वाद की कामना करते हुए।बस इतना ही की "
गिरू तो उठा लेना, भटकूं तो राह दिखाना,
मिले जो सभी का आशिर्वाद, तो लेखन सफल माना।
राजी यादव
किदवई नगर, न्यू दिल्ली ।
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
अक्ष पीड़ा के कारण मैं उपोद्घात् लिख पाने में असमर्थ हूँ।
आपका स्नेहाकांक्षी
(हस्ताक्षर)
डॉ.विनय कुमार सिंघल
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
०१-०३-२
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
अक्ष पीड़ा के कारण मैं उपोद्घात् लिख पाने में असमर्थ हूँ।
आपका स्नेहाकांक्षी
(हस्ताक्षर)
डॉ.विनय कुमार सिंघल
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
०१-०३-२०२२
८१७८७३२१०६, ९८९१४३५१४५
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
इस से पूर्व मेरे २७ एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।
यह मेरा २८वाँ एकल काव्य-संकलन है। अद्यतन मेरे १५ संयुक्त काव्स-संकलन भी प्रकाशित हो चुके है
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
इस से पूर्व मेरे २७ एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।
यह मेरा २८वाँ एकल काव्य-संकलन है। अद्यतन मेरे १५ संयुक्त काव्स-संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं। नोशन प्रैस व साहित्य धरा अकादमी के सक्रिय सहयोग से यह मेरा नौंवा एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ है। ईश्वर से प्रार्थना है कि यह बारम्बारता अबाध गति से चलती रहे।
इन काव्य-संकलनों के प्रकाशन में मेरी अनुजा अंजू व हितेश रंजन दे जी का सतत सहयोग मिल रहा है।
मेरे परिवार के प्रत्येक छोटे-बड़े सदस्य का भी मानसिक संबल अव्याहत रूप से मुझे प्राप्त हो रहा है।
यह एकल काव्य-संकलन "काव्य-अवन्तिका" आपके हाथों में है, इसमें मैंने १६-०१-२०२२ से ३१-०१-२०२२ के मध्य रचित १६४ कविताओं को समाहित किया है, कृपया मनोयोग से पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ।
आशीर्वादाकांक्षी—
(हस्ताक्षर)
डॉ.विनय कुमार सिंघल
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
अधिवक्ता/ कवि
०१-०२-२०२२
हृदय के उद्गार
मन-प्रवाहिनी में कब विचार, लहरों का रूप ले लेते हैं, इसका कोई नियत समय नहीं, पर यह तय है कि लेखनी में साक्षात् सरस्वती माँ की कृपा हो तभी यह सम्भव हो पाता है।
प्रत
हृदय के उद्गार
मन-प्रवाहिनी में कब विचार, लहरों का रूप ले लेते हैं, इसका कोई नियत समय नहीं, पर यह तय है कि लेखनी में साक्षात् सरस्वती माँ की कृपा हो तभी यह सम्भव हो पाता है।
प्रतिदिन सूर्योदय की स्वर्ण-रश्मियों, माता-पिता का आशीर्वाद, प्रभु की असीम कृपा, डॉ. विनय कुमार सिंघल जी का कविता-लेखन, परिवारजनों का सहयोग, मुझमें निरंतर ऊर्जा संचित करते रहते हैं कि मैं नियमित रूप से लिखती रहूँ।
पाठक-गण, भ्राता-गुरु, वीणा दीदी, भाई-बहन, सखि एकता, निरन्तर मेरा उत्साहवर्द्धन करते रहते हैं, जिनके प्रति मैं सदा आभारी रहूँगी।
जिस तरह आवरण को देख कर भीतर की लिखित सामग्री का अनुमान लग जाता है, उसी तरह पुस्तक के शीर्षक को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि पुस्तक कैसी होगी ? "खुरदरा रेशम" और यह चतुर्थ पुस्तक "खुलती गिरहें" के शीर्षकों का श्रेय एकता को जाता है।
"खुरदरा रेशम" के प्रकाशक—'प्रेरणा प्रकाशन', "संगम दो काव्य-धाराओं का" के प्रकाशक — 'पराग बुक्स', श्री लोकेश थानी जी, श्री पराग कौशिक जी, को धन्यवाद देती हूँ।
मेरी प्रतिदिन की ऊर्जा का श्रेय एवम् "संगम दो काव्य-धाराओं का" के नाम का श्रेय मेरे भ्राता-गुरु को जाता है। उनकी सेहत व दीर्घायु की कामना करते हुए अपनी लेखनी को विराम देती हूँ और आशा करती हूँ कि पाठक-गण मेरा उत्साहवर्द्धन यूँ ही करते रहेंगे।
(हस्ताक्षर)
अंजू कालरा दासन
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, लघुकथा-संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
हितेश रंजन दे
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, लघुकथा-संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
हितेश रंजन दे
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, लघुकथा-संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
हितेश रंजन दे
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन, लघुकथा-संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
हितेश रंजन दे
कैलाश मनहर कोई नए कवि नहीं हैं उन्हें कवितायेँ लिखते हुए चार दशक से कम नहीं हुए होंगे | आज भी वे राजस्थान के जयपुर जिले के एक कस्बे मनोहरपुर में रहते हैं | वे पेशे से स्कूल मे
कैलाश मनहर कोई नए कवि नहीं हैं उन्हें कवितायेँ लिखते हुए चार दशक से कम नहीं हुए होंगे | आज भी वे राजस्थान के जयपुर जिले के एक कस्बे मनोहरपुर में रहते हैं | वे पेशे से स्कूल में अध्यापक रहे हैं | इस वजह से उनकी कविता की ज़मीन आज भी खेतों की तरह खुरदुरी और मटियाले रंग की ज्यादा है | वे बातों को बुनियादी जगहों से ज्यादा उठाते हैं | लेकिन अपनी बात को चालाक वक्रताओं का शिकार होने से सावधानीपूर्वक बचाते हैं | जैसी सादगी और साधारणता उनके जीवन में है वैसी ही सादगी और साधारणता उनकी कविताओं में भी है | अपनी बात को भी वे बहुत सादगी और सपाटबयानी में कहने से झिझकते नहीं हैं | जहां वार करना होता है वहाँ सीधे सीधे वार करते हैं | वे शायद ही कभी पीठ पर वार करते हों | कैलाश मनहर की कविताओं के विषय भी उनके बहुत आसपास के ज़मीनी होते हैं लेकिन उनके भीतर से जो कुछ वे तलाश करके लाते हैं वह पाठक के भाव और विचार जगत में हमेशा कुछ नया जोड़ता है | उनके इस नए संग्रह की कवितायेँ इतनी कालबद्ध हैं कि दो हज़ार इक्कीस के उतरते दो महीनों यानी नवम्बर और दिसम्बर माह की तारीख—तिथियों से गुजरते क्षोभ और पर्व—त्योहारों तक की धारणाओं को केंद्र में रखकर वे सौन्दर्यबोध संबंधी उन सचाइयों को लाने से नहीं चूकते जो जन और अभिजन को एक दूसरे से अलग करती है |
साहित्य के आकाश में लघुकथा बरसों से लिखी जा रही और पसंद की जा रही है। क्षण भर में घटित हो जाने वाली घटना बहुत प्रभाव डालती है। जैसे अचानक कोई पिन चुभो दे या कुछ शब्द कह दे ...तो कई बार
साहित्य के आकाश में लघुकथा बरसों से लिखी जा रही और पसंद की जा रही है। क्षण भर में घटित हो जाने वाली घटना बहुत प्रभाव डालती है। जैसे अचानक कोई पिन चुभो दे या कुछ शब्द कह दे ...तो कई बार जीवन बदल जाता है। लघुकथा छोटी होते हुए भी विसंगति पर प्रहार करके उसे बदलने का प्रयास करती है। सच की जमीन से उगी थोड़ी सी कल्पना के आग में तपी खरे सोने सी चमकती है और समाज के लिए पथ प्रदर्शक बन जाती है।
अपने इंद्रधनुषी रंगों को बिखेरकर मन के अंधेरों में रोशनी करती है।
हमारे परिवार, समाज और आसपास घट रही घटनाओं को
विषय बना कर लिखी जा रही लघुकथाएं चेतना जगाती है ...सावधान करती है और समस्या का हल भी बताती है।
'अपने नाप की दुनिया' साझा लघुकथा संग्रह निश्चित ही अपने उद्देश्य को पूरा करेगी। बहुत सी बधाई और शुभकामनाये ..
लेखकों, सम्पादक मंडल और प्रकाशक को।
ऐसे सराहनीय मंगल कार्य सतत चलते रहें यही दुआ है।
मधु सक्सेना
लघुकथा ही वस्तुतः वह विधा है जो विस्तार नहीं चाहती और स्फीति के पूरी तरह से ख़िलाफ़ है, जहाँ लेखक रतजगा करके आँखें लाल नहीं करता, जहाँ पाठक यह शिकायत नहीं कर पाता कि उसका समय नष्ट हु
लघुकथा ही वस्तुतः वह विधा है जो विस्तार नहीं चाहती और स्फीति के पूरी तरह से ख़िलाफ़ है, जहाँ लेखक रतजगा करके आँखें लाल नहीं करता, जहाँ पाठक यह शिकायत नहीं कर पाता कि उसका समय नष्ट हुआ है। संवेदना का एक हल्का-सा उछाल, भावना का कोई भी कण, सम्बन्धों की सूक्ष्मतम भंगिमा तुरत-फुरत एक समर्थ रचना बन जाये, यह लघुकथा में ही सम्भव है। बस लेखक के पास एक दृष्टि और कुछ रचने की कसक होनी चाहिए। जहाँ तक भाषा का मसला है, वह यहाँ भी उसे बेफ़िक्र नहीं छोड़ती, केवल थोड़ी-सी निश्चिन्तता देती है। लघुकथा किसी भी रंग की नहीं होती, परन्तु सारे रंगों को समेट सकती है। वहाँ सुबह का रंग भी हो सकता है, शाम का भी, और चमकती हुई दुपहरिया भी वहाँ आत्मसात् होने के लिए उद्यत रहती है।
लघुकथा की बढ़ती हुई लोकप्रियता और माँग के दृष्टिगत इस संचयन का आना सुखद है। यहाँ संग्रहीत रचनाएँ पाठकों को मनुष्यता और जीवन के दमकते हुए टुकड़ों की मानिन्द नज़र आयेंगी।
सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी
(वरिष्ठ साहित्यकार)
14/34, इन्दिरानगर,
लखनऊ - 226016
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा
साहित्य धरा अकादमी :
एक परिचय -
साहित्य धरा अकादमी लेखकों एवं पाठकों का एक लोकप्रिय साहित्यिक संस्थान है। हमारे लिए हर्ष का विषय है कि इस संस्थान से देश-विदेश के चर्चित युवा लेखकों और नामवर साहित्यकारों के साथ-साथ लाखों-लाख पाठक भी लगातार जुड़ रहे हैं। यह संस्थान इसके संस्थापक तथा संचालक श्री हितेश रंजन दे द्वारा १२ जुलाई २०२१ को निःस्वार्थ रूप से हिंदी भाषा को संरक्षित करने एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया पूर्णत: अव्यवसायिक साहित्यिक संगठन है, जो मूलतः हिंदी की सभी विधाओं के लेखकों की उत्कृष्ट रचनाओं को संरक्षित करने का कार्य करते है। साथ ही प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्रित कर नि:शुल्क रूप से पुस्तक में स्थान भी देता है। यह संस्था लेखकों को लेखकीय प्रति, प्रशस्ति-पत्र एवं रॉयल्टी भी देती है।
इन सभी कार्यों के अलावा अकादमी द्वारा समय-समय पर भारत भर के लेखकों की रचनाएं आमंत्रित कर कई कविता-संकलन का प्रकाशन भी किया जाता रहा है। उन लेखकों से, जो अभी तक हमारी संस्था से नहीं जुड़ पाए हैं, अगर वो जुड़ना चाहते हैं तो हमारे पते, दूरभाष या ईमेल के जरिए संपर्क कर अधिक जानकारी ले सकते है। हमें आपको ख़ुद से जोड़कर प्रसन्नता होगी।
शुभकामनाओं सहित,
संस्थापक सह संचालक
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
गत वर्ष मेरी काव्य-यात्रा के कीर्तिमानों का वर्ष रहा। यदि मेरी व्याधियों ने कोई बाधा उपस्थित नहीं की तो मेरी काव्य-यात्रा गतिमान रहेगी ऐसा मेरा विश्व
उपोद्घात्
॰॰॰॰॰॰॰॰
गत वर्ष मेरी काव्य-यात्रा के कीर्तिमानों का वर्ष रहा। यदि मेरी व्याधियों ने कोई बाधा उपस्थित नहीं की तो मेरी काव्य-यात्रा गतिमान रहेगी ऐसा मेरा विश्वास है।
मुझे ज्ञात नहीं कि वर्ष २०२२ में कोई नया कीर्तिमान बन पाएगा अथवा नहीं।
वैसे भी गत कीर्तिमान भी अनायास ही बन गये थे। मेरा लेखन भी किसी कीर्तिमान हेतु नहीं हो रहा। मेरा लेखन स्वान्तःसुखाय और लोक-रंजन हेतु ही रहा है। आज इस यात्रा को ५५वर्ष हो गए हैं।
मेरा सामाजिक व साहित्यिक गतिविधियों में आना-जाना कई वर्षों से विरामित चल रहा है। मेरे पास अब लोग आते-जाते भी नहीं हैं।
किसी भी साहित्यकार के जीवन का यह दौर बहुत वेदनापूर्ण होता है।
यदा-कदा तीन अधिवक्ता-मित्र यथा श्री विनोद कुमार श्रीवास्तव, श्री हरी के. तोलानी व सुश्री कामिनी श्रीवास्तव आ जाते हैं जिनको मैं बहुत धन्यवाद देता हूँ।
उपोद्घात्
मेरा यह काव्य-संकलन "अनहद-नाद"
कुल मिला कर २५वाँ एकल काव्य-संकलन है। साहित्य धरा अकादमी द्वारा छापा जा रहा यह मेरा छठा एकल काव्य-संकलन है। इस काव्य-संकलन में मैंन
उपोद्घात्
मेरा यह काव्य-संकलन "अनहद-नाद"
कुल मिला कर २५वाँ एकल काव्य-संकलन है। साहित्य धरा अकादमी द्वारा छापा जा रहा यह मेरा छठा एकल काव्य-संकलन है। इस काव्य-संकलन में मैंने १६-१२-२०२१ व ३१-१२-२०२१ के मध्य रचित २६७ कविताओं का समावेश किया है।
सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात यह है कि ईस्वी वर्ष २०२१ में मैंने कुल मिला कर १८४० कविताएँ लिखीं जो मेरी जानकारी के अनुसार एक विशेष कीर्तिमान है। वैसे यह एक जग प्रसिद्ध तथ्य है कि प्रत्येक कीर्तिमान
कभी न कभी ध्वस्त होता ही है। इसी वर्ष में कविता लेखन में मेरे कुछ और
कीर्तिमान भी अनायास ही बन गये। २३-०५-२०२१ को २६ कविताएँ, १६-११-२०२१ को ३३ कविताएँ, २३-१२-२०२१ को ३५ कविताएँ, २७-१२-२०२१ को २७ कविताएँ व २९-१२-२०२१ को २८ कविताएँ लिखीं जो एक दिन में सर्वाधिक कविताएँ लिखे जाने के कीर्तिमान हैं, तदानुसार ५ भिन्न-भिन्न दिनों में कुल मिला कर मैंने १४९ कविताएँ लिखीं। उन कविताओं को पुनर्स्मरण करते हुए उन कविताओं का संचयन "कविता का अन्तर्नाद" नाम से छपेगा।
वर्तमान काव्य-संकलन जो अब आपके हाथ में है, इसे आप मन से पढ़ें और आनन्द लें।
आशीर्वादाकांक्षी—
(हस्ताक्षर)
डॉ.विनय कुमार सिंघल
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
अधिवक्ता/कवि
०१-०१-२०२२
अपनी-अपनी श्रेणी में ये सब कीर्तिमान, मेरी जानकारी के अनुसार, अब तक अक्षुण्ण हैं।
उक्त कीर्तिमानों के अतिरिक्त जो एक और दुर्लभ कीर्तिमान भी बना वह यह है कि ईस्वी वर्ष २०२१ में म
अपनी-अपनी श्रेणी में ये सब कीर्तिमान, मेरी जानकारी के अनुसार, अब तक अक्षुण्ण हैं।
उक्त कीर्तिमानों के अतिरिक्त जो एक और दुर्लभ कीर्तिमान भी बना वह यह है कि ईस्वी वर्ष २०२१ में मैंने कुल मिला कर १८४० कविताएँ लिख डालीं। इर सभी कीर्तिमानों में केवल हिन्दी की कविताएँ ही सम्मिलित हैं, ग़ज़ले, अँग्रेज़ी की कविताएँ, दोहे, मुक्तक, चतुष्पदियाँ, क्षणिकाएँ, मिनी हाइकू, हाइकू, अश्आर, रुबाइयाँआदि सम्मिलित नहीं किये गये हैं।
कोई पाठक/कवि यदि उक्त किसी भी या सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त करने वाले किसी भी कीर्तिमान से परिचित हो तो मेरा मार्गदर्शन अवश्य करे, मुझ पर बहुत उपकार होगा।
आप इस अनोखे संचयन को मनोयोग से पढ़ें और अपना आशीर्वाद दें।
(हस्ताक्षर)
डॉ.विनय कुमार सिंघल
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
अधिवक्ता/कवि
३०-१२-२०२१
उपोद्घात्
माँ शारदा की अनुकम्पा से यह मेरा २४वाँ एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ है— "काव्य-मल्लिका" और यह काव्य-संकलन साहित्य धरा अकादमी द्वारा छापा गया पाँचवाँ एकल काव्य-स
उपोद्घात्
माँ शारदा की अनुकम्पा से यह मेरा २४वाँ एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ है— "काव्य-मल्लिका" और यह काव्य-संकलन साहित्य धरा अकादमी द्वारा छापा गया पाँचवाँ एकल काव्य-संकलन है मेरा जो निरन्तर एक के पश्चात् एक छप कर आया है।
इसके लिये श्री हितेश रंजन दे का मैं
हृदय से आभारी हूँ।
इस संकलन में मैंने ०१-१२-२०२१ से १५-१२-२०२१ के मध्य लिखित रचनाओं का चयन किया है जिसमें कुल कविताओं की संख्या १८८ है।
ईश्वर ने साथ दिया तो शीघ्र ही अगले काव्य-संकलन भी आपके द्वार पर अपनी उपस्थिति अंकित करेंगे।
आप सब इन कविताओं को मनोयोग से पढ़ें और मेरा मार्गदर्शन करें।
आपके स्नेह व आशीर्वाद का आकांक्षी—
(हस्ताक्षर)
डॉ.विनय कुमार सिंघल
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
अधिवक्ता/ कवि
२८-१२-२०२१
उपोद्घात्
माँ शारदा की अनुकम्पा से यह मेरा २४वाँ एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ है— "काव्य-मल्लिका" और यह काव्य-संकलन साहित्य धरा अकादमी द्वारा छापा गया पाँचवाँ एकल काव्य-संकलन है मेरा जो निरन्तर एक के पश्चात् एक छप कर आया है।
इसके लिये श्री हितेश रंजन दे का मैं
हृदय से आभारी हूँ।
डॉ.विनय कुमार सिंघल
इस काव्य-संकलन में विशेष बात यह है कि १६-११-२०२१ को मैंने एक दिन में ३३ कविताएँ लिखी थीं और इस संकलन में मैंने १६-११-२०२१ से ३०-११-२०२१ के मध्य लिखी कविताओं को समाहित किया है।
कुल म
इस काव्य-संकलन में विशेष बात यह है कि १६-११-२०२१ को मैंने एक दिन में ३३ कविताएँ लिखी थीं और इस संकलन में मैंने १६-११-२०२१ से ३०-११-२०२१ के मध्य लिखी कविताओं को समाहित किया है।
कुल मिला कर यह मेरा २३वाँ एकल काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ है, यह सब माँ शारदा के आशीर्वाद के बिना सम्भव ही नहीं था।
उपोद्घात्
माँ सरस्वती की कृपा से मेरी काव्य-यात्रा १९६७ से अबाध गति से अग्रसर है। मेरा उत्साहवर्द्धन मेरे मित्रों से आरम्भ होता हुआ मेरे परिवार के सदस्यों यथा पत्नी आशा स
उपोद्घात्
माँ सरस्वती की कृपा से मेरी काव्य-यात्रा १९६७ से अबाध गति से अग्रसर है। मेरा उत्साहवर्द्धन मेरे मित्रों से आरम्भ होता हुआ मेरे परिवार के सदस्यों यथा पत्नी आशा सिंघल, पुत्र निशान्त सिंघल व पुत्र-वधू कामिनी सिंघल व मेरी सहायिका अधिवक्ता कामिनी श्रीवास्तव से होता हुआ मेरी अनुजा अंजू कालरा दासन तक पहुँचा।
डॉ. विनय कुमार सिंघल
गगन के वितान से भी विशाल कल्पना-लोक होता है किसी भी कवि का। बस किसी भी कविता की श्रेष्ठता उसकी मौलिकता में छिपी होती है। प्रत्येक कवि की रचना अपने आप में एक विशेष लालित्य लिये होत
गगन के वितान से भी विशाल कल्पना-लोक होता है किसी भी कवि का। बस किसी भी कविता की श्रेष्ठता उसकी मौलिकता में छिपी होती है। प्रत्येक कवि की रचना अपने आप में एक विशेष लालित्य लिये होती है। प्रत्येक कवि के निजी विचार और उन विचारों को अभिव्यक्त करने की शैली प्रत्येक कवि को अन्य कवियों से भिन्न पहचान देती है। लाखों कविताएँ नित्य जन्म लेती हैं और अनन्त काल तक जन्म लेती रहेंगी। कवि को अपनी आलोचना से विचलित नहीं होना चाहिए, आलोचना से उसकी कविता उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाती है। यह भिन्न बात है कि आलोचक के पास आलोचना करने की पात्रता हो। मेरी कविताएँ मेरे स्वभाव, चरित्र का श्रेष्ठ दर्पण हैं। कविता का मूल्यांकन तो पाठक ही करता है। अतः सभी गुणी पाठकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि मेरी रचनाओं को प्रत्येक पूर्वाग्रह अथवा दुराग्रह से मुक्त हो कर पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें।
साहित्य धरा प्रकाशन के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ जिनके सहयोग से यह काव्य-संकलन प्रकाशित हो सका।
कवि का संक्षिप्त-परिचय
*********************
नामः डॉ.विनय कुमार सिंघल
जन्म-तिथि व स्थानः ११ जुलाई, १९४९ (श्रावण का प्रथम सोमवार),
बाजार सीता राम, पुरानी दिल्ली- ११
कवि का संक्षिप्त-परिचय
*********************
नामः डॉ.विनय कुमार सिंघल
जन्म-तिथि व स्थानः ११ जुलाई, १९४९ (श्रावण का प्रथम सोमवार),
बाजार सीता राम, पुरानी दिल्ली- ११० ००६ ।
माता का नामः स्व.श्रीमती प्रकाश वती
पिता का नामः स्व. लाला प्रेम प्रकाश सिंघल
शैक्षणिक योग्यताः स्नातकोत्तर अध्ययन—गणित,अँग्रेज़ी, हिन्दी, विधि, पत्रकारिता, ज्योतिष
रुचिएँः पठन-पाठन, हस्त-रेखा अध्ययन, संगीत, साहित्य, कलाकृतियाँ, छायांकन
लेखनः हिन्दी, अँग्रेज़ी व उर्दू भाषाओं में काव्य की प्रत्येक विधा में रचना, लेख, निबन्ध, कहानियाँ, उपन्यास, अनुवाद, सम्पादन, मंच-संचालन, संगीत व साहित्य गोष्ठियों का आयोजन-संचालन आदि
प्रकाशनादिः १६ एकल काव्य-संकलन, ०९ संयुक्त काव्य-संकलन, अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, "कामदा" हिन्दी साहित्य को समर्पित मासिक पत्रिका व "फॉर्च्यून कॉलेज टाइम्ज़" द्विभाषी त्रैमासिक पत्रिकाओं का सम्पादन आदि
सम्प्रतिः दिल्ली उच्च न्यायालय, नई दिल्ली में अधिवक्ता १९८० से
निवासः सी-१४१२, द्वितीय तल, पालम विहार, व्यापार केंद्र के निकट, गुरुग्राम-१२२०१७ (हरयाणा)
चलभाषः ८१७८७३२१०६,
९८९१४३५१४५(व्हाट्सएप के साथ)
बरसात प्रेम की अनुभूति है। प्रेम की यह अनुभूति आदमी के दुःख को कम करती है। तभी वर्षाऋतु कविता के घर में उत्सव की तरह दिखाई देती रही है। यानी कविता आदमी के जीवन में उत्सव का विकल्प
बरसात प्रेम की अनुभूति है। प्रेम की यह अनुभूति आदमी के दुःख को कम करती है। तभी वर्षाऋतु कविता के घर में उत्सव की तरह दिखाई देती रही है। यानी कविता आदमी के जीवन में उत्सव का विकल्प है और यही कारण है कि ‘सुहानी बरसात’ में शामिल की गई कविताएँ आदमी के दुःख को कम करने का एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। पुस्तक में शामिल अधिकतर कवि-कवयित्री जिस तरह नए पत्ते की तरह ताज़ा हैं, मुलायम हैं, जीवंत हैं, उसी तरह कविता की भाषा भी दूब की मानिंद नई है। सच कहिए तो इसी दूब में बरसात अपने जीवन-राग को बचाकर रखती आई है ताकि धरती पर जो बुराइयाँ हैं, ये बुराइयाँ ख़त्म करी जा सकें। इस किताब की ख़ासियत यह भी है कि इन कविताओं को पढ़कर आप अपनी निराशा से बाहर निकलने का रास्ता खोज सकते हैं। किताब में छपी कविताओं का असल रोमाँच यही तो है। निःसंदेह वर्षा-शृंखला की यह पुस्तक हिंदी कविता को रचनाकारों की नई तथा पुरानी आवाज़ एक साथ सौंपती हुई दिखाई देती है। इस कारण समकालीन कविता के लिए यह एक दुर्लभ क्षण भी कहा जा सकता है।
शहंशाह आलम
प्रकाशन विभाग, बिहार विधान परिषद, पटना।
भूमिका
अनेक सम्भावनाओं से लक-दक यह कविता-संग्रह, एक नितान्त अज्ञात कवयित्री सुश्री कामिनी श्रीवास्तव के कवि-मन की अन्तर्भू से निसृत हुआ है और बहुत ही सक्षमभाव से उनकी पहचान क
भूमिका
अनेक सम्भावनाओं से लक-दक यह कविता-संग्रह, एक नितान्त अज्ञात कवयित्री सुश्री कामिनी श्रीवास्तव के कवि-मन की अन्तर्भू से निसृत हुआ है और बहुत ही सक्षमभाव से उनकी पहचान का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का छन्दमुक्त कविता लिखना उस काल-खण्ड का हिन्दी-काव्य-साहित्य का सुनामी बन कर आया और अनेक स्थापित कवि-साहित्यकार बौखला गए। कोई कहता निराला ने छन्द तोड़ दिया, कोई कहता यह भी कोई कविता है आदि,आदि। अन्ततोगत्वा निराला की विजय हुई और कहा गया कि निराला ने नव-छन्द जोड़ा था। बहुत से कवि मनीषियों ने उसी छन्द-मुक्त कविता की राह पर चल कर बहुत नाम अर्जित किया।
कामिनी जी का वर्तमान काव्य-संग्रह भी उसी नव-काव्य-विधा की दिशा में एक सफल प्रयास है।
बारिश की भाषा
प्रकृति की अनुपम देन बारिश जैसे समय, काल, युगधर्म से अलग अपनी ही रौ में होती आई है बिलकुल वैसे ही प्रेम मानव-मन में बसा होता आया है, जिसे ऊँच-नीच, जाति-धर्म-संप्रद
बारिश की भाषा
प्रकृति की अनुपम देन बारिश जैसे समय, काल, युगधर्म से अलग अपनी ही रौ में होती आई है बिलकुल वैसे ही प्रेम मानव-मन में बसा होता आया है, जिसे ऊँच-नीच, जाति-धर्म-संप्रदाय से कोई मतलब नहीं होता है। बारिश प्रकृति है, तो प्रेम मानव-मन में रह रहा अनमोल संसार है। जब किसी प्रेम करने वाले के चेहरे पर बरखा की बूँदें पड़ती हैं, तब उसे लगता है मानो उसकी प्रेमिका ने हौले से उसका चेहरा सहला दिया है। वाटिका में भीगकर प्रेम का एहसास या प्रेम में पड़कर बारिश में एक साथ भीगने की तमन्ना वही कर सकता है, जो सच्चा प्रेम करना जानते हैं। आत्मा में बसा आत्मिक, अलौकिक, अपूर्व प्रेम जब पावस से मिलता है, तो प्रकृति का एक नया रूप बन जाता है।
‘बारिश की भाषा’ में शामिल की गई कविताएँ यही काम करती हैं। ये कविताएँ हमको प्रेम की बारिश से, जीवन की बारिश से, संघर्ष की बारिश से नहलाती हैं और हमें तरोताज़ा करती हैं। ये कविताएँ आकाशगंगा की तरह हमारे दुखों को सजाती हैं। चुनिंदा कविताओं का यह संचयन कविता के पाठकों के लिए आकाशगंगा की तरह है, जिसे कविता के विविध रंगों से रंगा गया है। इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं कि यह प्रयास समकालीन हिंदी कविता के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
डॉ. रानी श्रीवास्त
दो शब्द
प्रस्तुत पुस्तक "बूंद-बूंद का प्यार" एक साझा काव्य संग्रह जिसमें आज के कई आधुनिक नए-नए कवियों एवं कवियत्रीयों की रचनाओं को पढ़कर आनंद महसूस कर पाएंगे मैं कोई संपादक भी न
दो शब्द
प्रस्तुत पुस्तक "बूंद-बूंद का प्यार" एक साझा काव्य संग्रह जिसमें आज के कई आधुनिक नए-नए कवियों एवं कवियत्रीयों की रचनाओं को पढ़कर आनंद महसूस कर पाएंगे मैं कोई संपादक भी नहीं हूं बस मेरा यह पहला प्रयास है अगर मेरे संपादन में किस तरह का कोई त्रुटि होता है तो सभी लेखक-लेखिकाओं एवं साहित्य प्रेमियों से आग्रह है कि वो अपने आत्मज मानकर मुझे क्षमा करने की कृपा करें।
त्रुटियां क्षमा पार्थी संपादक
धन्यवाद रवि रंजन
पुस्तक के बारे में
प्रस्तुत पुस्तक "कोरोना काल का सफर" एक प्रेरणादायक कविताओं की संग्रह है, जिसमें मैने कुल ५१ कविताओं को शामिल किया है। कोरोना के गंभीर समस्या को देखते हुए
पुस्तक के बारे में
प्रस्तुत पुस्तक "कोरोना काल का सफर" एक प्रेरणादायक कविताओं की संग्रह है, जिसमें मैने कुल ५१ कविताओं को शामिल किया है। कोरोना के गंभीर समस्या को देखते हुए लॉकडाउन के दौरान कोरोना से बचाव के प्रति लोगों में जागरूकता बनाए रखने के लिए यह मेरा साहित्य के क्षेत्र में प्रथम प्रयास है।
आशा ही नहीं पूरे दिल से उम्मीद करता हूँ, कि सभी वर्गों के पाठकों को यह पुस्तक पसंद आएगी और रही बात पुस्तक में त्रुटियों के बारे में तो मुझे अपना भाई, सखा और आत्मज मानकर क्षमा करने की कृपा करें।
आपका अपना प्यारा
हितेश...
Are you sure you want to close this?
You might lose all unsaved changes.
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.