हृदय के उद्गार
मन-प्रवाहिनी में कब विचार, लहरों का रूप ले लेते हैं, इसका कोई नियत समय नहीं, पर यह तय है कि लेखनी में साक्षात् सरस्वती माँ की कृपा हो तभी यह सम्भव हो पाता है।
प्रतिदिन सूर्योदय की स्वर्ण-रश्मियों, माता-पिता का आशीर्वाद, प्रभु की असीम कृपा, डॉ. विनय कुमार सिंघल जी का कविता-लेखन, परिवारजनों का सहयोग, मुझमें निरंतर ऊर्जा संचित करते रहते हैं कि मैं नियमित रूप से लिखती रहूँ।
पाठक-गण, भ्राता-गुरु, वीणा दीदी, भाई-बहन, सखि एकता, निरन्तर मेरा उत्साहवर्द्धन करते रहते हैं, जिनके प्रति मैं सदा आभारी रहूँगी।
जिस तरह आवरण को देख कर भीतर की लिखित सामग्री का अनुमान लग जाता है, उसी तरह पुस्तक के शीर्षक को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि पुस्तक कैसी होगी ? "खुरदरा रेशम" और यह चतुर्थ पुस्तक "खुलती गिरहें" के शीर्षकों का श्रेय एकता को जाता है।
"खुरदरा रेशम" के प्रकाशक—'प्रेरणा प्रकाशन', "संगम दो काव्य-धाराओं का" के प्रकाशक — 'पराग बुक्स', श्री लोकेश थानी जी, श्री पराग कौशिक जी, को धन्यवाद देती हूँ।
मेरी प्रतिदिन की ऊर्जा का श्रेय एवम् "संगम दो काव्य-धाराओं का" के नाम का श्रेय मेरे भ्राता-गुरु को जाता है। उनकी सेहत व दीर्घायु की कामना करते हुए अपनी लेखनी को विराम देती हूँ और आशा करती हूँ कि पाठक-गण मेरा उत्साहवर्द्धन यूँ ही करते रहेंगे।
(हस्ताक्षर)
अंजू कालरा दासन