'बातें अनसुनी' बोलचाल में आनेवाली हिंदी भाषा में रचित कहानियों का एक संग्रह है जिन्हें कल्पना के धागों से बुना गया है। कहानियों में मुख्यतः ग्राम्य परिवेश का चित्रण किया गया ताकि सरलता और सादगी का संगम उद्घृत हो पाए।
प्रज्ञा कांत पटना की रहनेवाली हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। राष्ट्रकवि दिनकर जी से प्रभावित होकर उन्होंने लेखन में आने का मन बनाया और छोटी कहानियों और कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को साझा करती हैं।