बचपन के पसंदीदा खेल
कहते हैं बचपन बहुत ही खूबसूरत होता है लेकिन हर किसी का बचपन खूबसूरत हो ये तो जरूरी नहीं। यह जिंदगी है यहां कोई पैदा होते ही सोने के झूले में झूलता है तो किसी को पैदा होते ही कचरे के डिब्बे में फेक दिया जाता है। किसी का बचपन खिलौने से खेल कर बीतता है तो किसी का खिलौने बेच कर। हर किसी को खूबसूरत बचपन नही मिलता और जिन्हें मिलता है उन्हें कदर नहीं होती। और आज कल के बच्चों को तो अंदाजा भी नहीं है की वो इस मोबाइल की दुनियां में रह कर क्या क्या खो रहे हैं।
अपना बचपन याद करो तो वो गलियां सबसे पहले याद आती हैं जहा हम सब दोस्त मिल कर गिल्ली डंडा, गेंद बल्ला, छुपन छुपाई, आंख मिचौली, पकड़म पकड़ाई, पित्तो, चोर पुलिस जैसे खेल खेला करते थे और आज कल के बच्चे इन्हीं खेलों को चार दीवारों के अंदर रहकर अपने अपने फोन में खेला करते हैं।
आज जरूरत है अपने बच्चों को अपने जमाने के खेल याद दिलाने की ताकि वह भी अपने बचपन को खूबसूरत बना सकें और हमारी यह पुस्तक उन्ही खेलों को याद दिलाने के लिए बनाई गई है जिसमें विभिन्न जगह के कवियों ने अपने अपने बचपन के खेलों को अपनी कलम द्वारा शब्दों में दर्शाया है। आशा करते है की पाठकों को हमारी यह रचना पसंद आयेगी।