भावांजलि - गुरु मां के चरणों में शत् शत् वंदामी
शिक्षक आजीवन अपने शिष्यों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, उनका सम्पूर्ण स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य पर टिका होता है, अपने शिष्यों को कर्मठ, कर्तव्यनिष्ठ और सफल बनाना। वे स्वयं जलते हैं निरंतर, एक बहती नदी की भाँति बिना रुके, ताकि उनके शिष्य के पथ को ज्ञान की गरिमा से रोशन कर सके, और सफलता का सागर उन्हें प्राप्त हो।
किंतु, सौभाग्यशाली हैं वो शिष्य, जिन्हें मिलता है अवसर अपने गुरु को गुरु दक्षिणा समर्पित करने का, वरन तुच्छ से तृण रूपी बालक की क्या विसात, जो वृक्ष को कुछ अर्पित कर सके,
किंतु, एक लेखक के रूप में मैंने इस पुस्तक में गुरु मां के वचनों से प्रभावित होकर उनके चरित्र, वचन, गुण और जीवन शैली पर आधारित कुछ भजन लिखे हैं। जिन्हें पढ़कर आप उनके जीवन और जीवन शैली के बारे बहुत कुछ समझ सकते हैं, ये मेरा एक लेश मात्र प्रयास है, गुरु माँ के प्रति अपनी आस्था और प्रेम व्यक्त करने का।