मेरी किताब भेदभाव सिर्फ एक किताब नहीं हैं बल्कि ये एक सच्चाई है उस समाज की जिसकी जड़ों को भेदभाव ने जकड़ रक्खा है, ये भेदभाव वक्त और परिस्थितियों के हिसाब से गिरगिट की तरह अपने रंग बदलता रहता है, यह भेदभाव अपने स्वार्थ और सहूलियत का भी भरपूर ध्यान रखता है, घटनाएँ चाहे कितनी भी बड़ी से बड़ी क्यूँ ना हो जाएँ ये भेदभाव उसे अलग अलग नामों से पहचान दिलवा ही देता है।