दर्पण एक सच
वर्तमान परिवेश में पुस्तक पढ़ने की रुचि जनमानस में निरंतर कम होते जा रही है। आधुनिक समय में साहित्य अध्ययन करने वाले बहुत कम हैं, साहित्य पढ़कर हम अपने सिलेबस का ज्ञान नहीं बढ़ा सकते, परन्तु वास्तविकता और व्यवहारिक कौशल हमारे अंदर समाहित होती है। साहित्य पढ़कर समाज में हो रहे सही-गलत सभी तरह के कार्य में तर्क-वितर्क कर सकते हैं, एक सुंदर, स्वच्छ समुदाय के निर्माण में भागीदार हो सकते हैं।
बचपन से साहित्य पढ़ता रहा जो विचार आते थे उसे लिखता रहा, मेरे मन में विचार आया, कि मैं भी साहित्य एक ऐसी 'पुस्तक' लिखूं, जिस 'पुस्तक' में सभी तरह की रचनाएं शामिल कर सकूँ, 'पुस्तक' साहित्य द्वारा इस समाज को कुछ दे सकूँ तो मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करूँगा।
मैंने प्रयास किया, और मेरी ये मेहनत कहाँ तक सफल है, आप सभी पाठक ही बता सकते हैं।
बतौर लेखक "दर्पण - एक सच" मेरी पहली पुस्तक है, इसमें शीर्षक दर्पण पर एक ही रचना है, लेकिन "दर्पण - एक सच" काफी आकर्षक नाम है। साथ ही साथ 'दर्पण' आईना को कहा जाता है, जो सच्चाई बयां करता है।
मैं खुद को 'लेखक' तब-तक नहीं कह सकता जब-तक एक-एक पाठक को मेरी रचनाएं पसंद न आ जाए। समाज के दृष्टिकोण को देखते हुए, सभी तरह की 'रचनाएं' शामिल करने की कोशिश की गई है। हमारी मातृभाषा 'हिंदी' में सभी तरह की रचनाएं हैं। आइए हम इस पुस्तक की पाठ से परिचित हो जाएं, जिसमें कविता, कहानी, लघुकथा, दोहा सभी तरह के रसों को रखने का प्रयास किया है।।