अपने गाँव की सौंधी मिट्टी की खुशबू हो या शहर की भागा दौड़ी के बीच दो पल सुस्ताने को मचलता सा मन ; किसी नाकाम रिश्ते की चुभन हो या इंसानियत पर पड़ी मोटी गर्द को परे हटाता गर्मजोशी का एक ताजा झोंका ! बचपन की सुनहरी गलियों से गुज़रती, रिश्तों के अधूरेपन में संपूर्णता को खोजती ये कहानियाँ और कविताएँ जीवन के कुछ ऐसे ही अलहदा से पहलुओं को छूकर आयी हैं। ये एक छोटी सी कोशिश है उन सब लम्हों को समेटने की जो सही मायनों में अपने साथ लेकर आते हैं 'दस्तख़त ज़िन्दगी के।'
पेश-ए-नज़र है सर्दियों की नर्म धूप सेंकते हुए, शाम के धुंधलके में छत पर लेटे लेटे परिंदो को ताकते हुये और रात के स्याह आगोश में पुराने पसंदीदा गीतों को सुनते हुए बुनी कुछ कहानियों और कविताओं का संकलन!
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