धूप छाँव
सोचिये जरा, क्या हो अगर आपको खाने में सिर्फ मीठा ही मीठा मिले या तीखा ही तीखा मिले, कुछ ही दिनों में हम ऊब जायेंगे ना, क्या हो जो पूरे वर्ष कोई एक ही मौसम आकर ठहर जाए, नहीं झेला जायेगा ना। बस कुछ ऐसा ही है ज़िंदगी का भी, जीवन में सुख और दुःख आपस के वो साथी हैं जिनमें यदि एक का अधिक समय तक होना और ना होना जीवन उबाऊ बना देता है। सूरज के ढलने पर ही चाँद की महत्वता का ज्ञान होता है, सर्दियाँ ना हो तो धूप अपनी अहमियत कहाँ से लायेगी, ऐसी ही कहानी जिंदगी की भी है कभी खट्टा, कभी मीठा, कभी तीखा तो कभी कड़वा भी, तभी तो जीवन के अनुभव से परिचित होकर हम अर्थपूर्ण रूप से जी सकते हैं और जीवन का आनंद उठा सकते हैं।
धूप - छाँव से अधिक कोई अनुचित शीर्षक हमें सूझा ही नहीं इस संकलन को व्यक्त करने के लिए, जिसमें दर्ज प्रत्येक शब्द जीवन के पड़ावों पर सीखे हुए अनुभवों से लबालब हैं और अनुभवी लेखकों द्वारा व्यक्त किये गए हैं।
जीवन की यात्रा में पाठकों के हृदयतल को स्पर्श करना ही हमारा एक मात्र लक्ष्य है आशा करते हैं कि हमारा प्रयास व्यर्थ नहीं जायेगा और अपना ध्येय पूर्ण करेगा।।