“ध्यान भरे लम्हे” वो लम्हे होते हैं, जिनकी पहुँच लम्हों के परे होती है। वे लम्हे आपको इस बात का अहसास दिलाते रहते हैं कि आप अनादि, अनंत हैं। वे लम्हे आपका पीछा नहीं छोड़ते। वे खुद को पुनर्जीवित करते रहते हैं। वे और गहरे और रहस्यमय होते चले जाते हैं। वे आपको खींचने लगते हैं। आप उनके प्रभाव से खुद को बचा नहीं पाते हैं। धीरे–धीरे आप उनमें डूबते चले जाते हैं। अंतर्जगत के द्वार एक के बाद एक खुलने लगते हैं और आपको यूँ महसूस होता है मानो आप अपनी इस धरती पर एक परग्रही हो।
ध्यान भरे लम्हों से मेरा रिश्ता बचपन से रहा है। दोपहर की धूप में छत पर पद्मासन लगाकर बैठ जाना और ध्यान का खेल खेलना। प्लेनचेट करके आत्माओं को बुलाना और उनका सच में आ जाना। बिना प्रयास किए सहज ही निरंतर साक्षी भाव में रहना। फिर भटकाव का एक दौर। मगर उन लम्हों का साये की तरह साथ चलना और फिर से अपने आगोश में ले लेना।
इस किताब में कुल चार अध्याय हैं। पहले अध्याय में मैंने सूक्ष्म जगत के विभिन्न अनुभवों के बारे में बताया है। कृष्ण, बुद्ध, जीसस, साईं बाबा, धूमावती माँ, वनदेवी, ओशो, अज्ञात साधु, अवधूत बाबा शिवानंद आदि किस प्रकार मुझे सूक्ष्म जगत में मिले और मुझे प्रेरित किया, मेरी सहायता की, ये सब मैंने इस अध्याय में बताया है। दूसरे अध्याय में मैंने ध्यान का अभ्यास करते समय होने वाले विभिन्न अनुभवों के बारे में बताया है। जैसे विशालता का अनुभव, लिंग में स्पंदन होना, सूक्ष्म शरीरों का गति करना, चक्रों का घूमना और खुलना, चेतना की सर्वव्यापकता को महसूस करना, भूत और भविष्य का सामने आ जाना, अंतर्जगत का प्रगटीकरण आदि। तीसरा अध्याय ध्यान के प्रयोग के बारे में और चौथा अध्याय ध्यान से होने वाले लाभ के बारे में है।
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