आपने हिंदी ग़ज़लें तो बहुत पढी होंगी लेकिन इस किताब में वो ग़ज़लें हैं जो हमारे साहित्य और इतिहास के उस काल की हैं जब ग़ज़लें खून से लिखी जा रहीं थी। इस पुस्तक में 1857-1947 के बीच लिखी गई ग़ज़लों को खोज-खोजकर सहेजा गया है तथा साथ ही इनका विश्लेषण राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना की सफल अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी किया गया है।
यह पुस्तक अपने आप में इस प्रकार की पहली पुस्तक है क्योंकि अभी तक इस काल की ग़ज़लों का अध्ययन विश्लेषण शोधार्थियों एवं आलोचकों द्वारा नहीं किया गया है।