शेर-ओ-शायरी की मेरी पहली पुस्तक "इबादत -ए - इश्क़" का प्रथम संस्करण एमेजॉन, पोएटिक इमैजिका में खूब प्रचलित हुआ। मेरी उम्मीद से भी ज्यादा। मुझे पाठकों की बेइंतहा मोहब्बत नसीब हुई। मेरी उम्मीद यकीन में तब्दील हो गई। "इबादत -ए - इश्क़" का यह द्वितीय संस्करण एक ऐसी पुस्तक है जहाँ न सिर्फ कविताएं एवं शायरी मिलेगी, अपितु एक सार्थक प्रयास भी दिखेगा। प्रयास भावनाओं के हृदय स्पर्शी प्रदर्शन का, प्रयास अनुभवों को अंकित करने का और साथ ही एक प्रयास अपने हुनर को पंख देने का। सामाजिक तौर पर आज हम पहले की अपेक्षा अधिक विकसित हो चले हैं। समझ में, परिवार में, हमारे सोच में कई तब्दीलियाँ हुई हैं। रिश्तों के इर्द गिर्द सहमी बिखरी संवेदनाओं, उनमें सिमटे एहसास, एहसास एवं जज़्बातों से अंकुरित होता शब्द संसार, हर तरह से अनुकूल बदलाव आए हैं। बस इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर, संवेदनाओं को समेंटकर एक माला में पिरोने का निष्ठ प्रयास है "इबादत -ए - इश्क़" का द्वितीय संस्करण। पुस्तक के शुरूआती भाग ‘जायज़ा’ में आप कुछ बेहतरीन और नामचीन पाठकों की प्रतिक्रिया पढ़ सकेंगे। यकीन मानिए, मेरी किताब को लेकर उनके अनुभवों को पढ़कर मेरी आंखें भर आईं। मानों मेरा लिखना सफल रहा। साथ ही आप सभी के सहुलियत के नाते, कठिन शब्दों के अर्थ समझाने का भी प्रयास किया है मैंने। आशा है, मेरे हर एक प्रयास को उम्मीद से भी बढ़कर पसंद किया जाएगा। इस पुस्तक को आप सभी की ओर से खूब सराहना मिले।
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