खामोशियों की ख्वाहिशें
कुछ ख्वाहिशें जो खामोशी में दबी रह गयी, कुछ खामोशियाँ जो पन्नों पर बिखर गयी, बिफर गए ज़ज़्बात जब अपने हद की सीमा को लाँघ, तब ही तो एहसासों की कविताएँ सजों दी गयी।
बहुत कुछ हो जब कहने को, लेकिन शब्दों की कतार एक धुरी पर ही अटक जाए, किसी बंद घड़े में छुपे हुए खजाने की तरह, वो बातें, वो इजहार कहीं भीतर ही दबा रह जाए, बस वहीं पनप जाती हैं, खामोशी की ख्वाहिशें नाम के वृक्ष की नव कोपलें।
ऐसी ही कुछ मुझसे, मेरे दिल से जुड़ी बातें, जो मैं चाह कर भी बयाँ नही कर पायी, वो सपने जिन्हें खुली आँखों से देखा था, जिनके जीवंत होने का ख्वाब है मुझे साँसे देता रहा, और बस वो ही पूरा नहीं हो पाया, ऐसे ही मेरी भावनाएं, मेरे सपने, मेरी यादों की बस्ती है मेरी "खामोशियों की ख्वाहिशें"
इसका हर शब्द उसी के लिए है, उसी शख़्स को संबोधित करता है, जिससे जुड़ी हैं मेरी खामोशियाँ और जिसके साथ पूरी हो जायेंगी मेरे जीवन की सभी ख्वाहिशें।।