'कुदरत की पीर', प्रतिपक्ष में अपना नया तेवर लेकर आई है । जनवादिता, जनपक्षधरता और जनपीड़ा की अभिव्यक्ति ने उसे अपनी विशिष्ट भाव-भंगिमा प्रदान की है। ऐसे महत्वपूर्ण खंड के प्रकाशन बार-बार होने चाहिए। अपनी समग्रता और साथ ही सारगर्भिता में भी सत्यवान 'सौरभ' की संकल्पना 'गागर में सागर' प्रयास ही कही जाएगी। वर्तमान पीढ़ी के युवा लेखक सत्यवान ‘सौरभ’ वर्तमान समस्याओं पर पैनी नज़र रखते हुए प्रस्तुत खंड में उनका कारण और निवारण करते नज़र आये है। लेखों के चयन से कई बातें एक साथ स्पष्ट होती हैं। प्रथमतः तो यह कि उनके अंदर एक सजग लेखक सांस लेता है। वह पहचानता है कि आज हम किन-किन बाधाओं से लड़ रहें है। दूसरे, इन मुद्दों पर काम करना उनकी सदाशयता, संपन्न सोच और सार्थक सृजक होने की सच्ची निशानी भी देता है।