जब हम कभी अकेले बैठे किसी गहरी सोच में डूबे हों,
आस पास की गतिविधियों का भी भान ना हो .. शून्य होकर सोचते हों अपने होने का अस्तित्व और तभी एक सुंदर तितली आकर हमारे हाथों पर बैठ जाये .. क्या महसूस होगा तब? यही ना कि हम महके होंगे किसी पुष्प की भांति जिससे आकर्षित होकर वो तितली हमारे हाथ पर बैठी ..
वो तितली एक कविता है जो प्रकृति हमें सुनती है .. गाहे बगाहे अनायास ही कहीं भी कभी भी ..
'लोबान' भी वैसी ही महक़ है, जो आपको महसूस होगी जब आप इसे पढ़ेंगे। विचारों की तितलियाँ आपके ज़हन में उड़ने लगेंगी और आप स्वयं को महकता हुआ पाएंगे 'लोबान' की तरह।
'लोबान' प्रतीकात्मक रहस्यवादी धारणाओं को पुष्ट करता एक ऐसा कविता संग्रह है जो हमें हमारे विचारों का प्रकति में व्याप्त प्रेम से साक्षात्कार करवाता है।
तो क्या आप बन सकते हैं 'लोबान' सा महकता प्रेम !