मेरे किताब का शीर्षक जितना छोटा है उसका अर्थ उतना ही सुदृढ़, गहन और प्रवीण है जहां एक मां अपनी संतान की खुशी में अनेकों सपनों को आंखों में संजोए बैठी थी वहीं दूसरी तरफ उस मां को अपनी संतान को गिराने को विवश कर दिया गया उस स्थिति में उसकी क्या दशा थी? और किस प्रकार उसके कोख में बैठी संतान उससे इस दुनिया में आने की करूण वेदना को किस प्रकार व्यक्त कर रही थी उसका साक्षात्कार उल्लेख किया गया है कैसे वो अपनी मां को मना रही थी कि - मां...इधर देखो मां, मां मैं आपकी कोख मैं पल रही बेटी हूं मां, मां मत मारो मुझे, मुझे जीने दो मां, देख रही तुम्हारी कोख से दुनिया में मां, कितनी सुंदर है ये दुनिया मां, मां मुझे आने दो संसार में, मत मारो न मां, सुन संतान की पुकार किस प्रकार मां व्याकुल हो गई उसका भी सूक्ष्म चित्रण मेरी किताब में किया गया है मां की वो तड़प वो दर्द उसकी सूनी कोख उजड़ जाने की व्यथा बड़ी दर्दनाक और विवशतापूर्ण थी उसका भी उजागर मेरी किताब में किया गया है क्योंकि उस मां की चिंता विवशता भी बेकार नहीं थी आखिर क्यों आने दे एक मां अपनी संतान को ऐसे समाज में? प्यारी सी इस दुनिया की एक कड़वी सच्चाई है, जल रही अस्मिता में लाखो लड़की है, और जहां एक ओर यह सवाल क्या बेटियां अभिशाप है? यह विचार मन को उद्वेलित कर रहा था वहीं दूसरी और उस संतान की बातें मां को कितना वात्सल्य का अनुभव करा रही थी उसका भी मधुर वर्णन किया गया है साथ ही बेटे का महत्व बेटी से कम नहीं उसका भी सूक्ष्म वर्णन कर बेटे और बेटी की समानता का वर्णन कर समाज में दोनों में फर्क किए बिना एक समान दर्जा देने की बात कही गई है।