मैं विजय वर्मा, कोलकाता वासी, वही कोलकाता जो खुशियों का शहर कहलाता है। सन 1985 में एक बैंक के साथ जुड़ा और 32 वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद अब मैं सेवानिवृत्त जीवन का आनंद ले रहा हूँ |
सेवानिवृती के बाद ही मुझे अपने कलम और मन के सृजनात्मक होने का एहसास हुआ और तब मैंने यह निर्णय किया कि क्यों न मैं अपने प्रतिभा का उपयोग जन कल्याण के कामों में लगाऊँ यानि कि अपने लेखों और जानकारियों को लोगों तक पहुंचाऊँ, उनमें जागरूकता पैदा करूँ| उनके ज्ञान वर्धन के साथ साथ उनका मनोरंजन भी करूँ |
इन्हीं सब उद्देश्यों को ले कर मैं कविता, कहानी, लेख अपनी अपनी पेंटिंग इत्यादि को अपने ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत रहता हूँ |
मैं अपनी कहानियों और साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से न केवल अपने दोस्तों अपने परिवार, और अपने आस पास के लोगों से जुड़ना चाहता हूँ, बल्कि खुद अपने आप को भी समझना चाहता हूँ |
आरंभ में तो लिखना मुझे आसान लग रहा था लेकिन ज्यों ज्यों मैं इसकी गहराइयों में उतरता गया , त्यों त्यों मुझे यह लगने लगा कि मंज़िल अभी दूर है | मुझे अभी और आगे जाना है, अपने अनुभवों को लेखनी बद्ध करने के लिए |
लिखने के क्रम में मुझे समझ आया कि कुछ लिखने के लिए ज़िंदगी के सबक, सच्ची सीख, चोटें, अनुभव, और उनसे निकले लफ़्ज़ की बुनियाद चाहिए। सच्ची कविताएँ और नज्में इनसे ही बनती हैं। दिल से निकली बातें ही दिल तक पहुंचती हैं। जीवन की नदी में, उतार-चढ़ाव और ठहराव की रूपरेखा आवश्यक हैं। जिन कविताओं में ज़िंदगी की विविधता होती है, वे ही बोलती हैं।
खुद को आईना बनाने की कोशिश में ही हम इन शब्दों और लफ़्जों का जामा लिबास पहनते है। जीवन के अनुभव को इन कविताओं में ढालने की कोशिश भी यहाँ से शुरू होती है ।
मेरी बातें कैसी लगी, कैसा एहसास हुआ, पढ़ कर अवश्य बताएं, यह मेरी गुजारिश है |
आपका साथी
विजय वर्मा