यह पुस्तक मेरे प्रिय अग्रज पुत्र स्वर्गीय मनीश कुमार सिंह को समर्पित है जो अब हमारे बीच नही हैं पर उनकी लिखी कुछ रचनायें सदैव हमारे बीच रहेंगी जो इस पुस्तक में लिखी हुई हैं । इसमे लिखी सभी रचनायें भारत के वीर सपूतों के जीवन मे आयी कठिनाइयों और उन कठिनाइयों से लड्ने की वीर गाथाओं का वर्णन किया गया है
प्रिय पुत्र तुम्हारी स्म्रतियां आज भी मेरे ह्रर्दय को द्रवित कर देती हैं, मानो तुम अभी कहीं से आओगे और सदैव की तरह मेरे चरण स्पर्श कर के मेरा हाल पूछोगे, परंतु ये मात्र मेरा भ्रम है जो मेरे जीवन के अंत तक रहेगा ।
मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम जहां भी रहो सदैव सुखी रहो ।
कहते हैं कि हम मानव सिर्फ कठ्पुतलियां हैं उस विधाता की, जिसके हाथों में हम सबकी डोर है और जब तक वो डोर थामे है तब तक ही हमारे प्राणों की डोर भी हमारे शरीर से जुडी हुई है, उस डोर के छूटते ही हम इस कालचक्र से हमेशा के लिये मुक्त हो जाते हैं, जिसमे प्रत्येक जीव अपने कर्म और भाग्य के अनुसार फल पाता है, फर्क़ सिर्फ इतना है किसी को सब कुछ मिल जाता है तो किसी को कुछ भी नही मिलता, इसलिये हमेशा मुस्कुराते रहें और उस ईश्वर का धन्यवाद करें, इससे हमारा लिखा भाग्य तो नही बदल सकता पर जीवन मे आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति हमे जरूर मिलती रहेगी क्युंकि ना जाने कब वो जीवन डोर टूट जाये और हम भी स्म्रति मात्र रह जायें ।
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