"पी. एम. बुधवा" कविता संग्रह के माध्यम से मैंने झारखंड प्रदेश की दशा और दिशा को रेखांकित करने की कोशिश की है । प्रकृति की छांव तले पली बढ़ी यहां की संस्कृति कितनी संवृद्ध थी । लेकिन विकास के भंवरजाल में उलझकर अब वह बात रही नहीं । आदिवासी जंगल ज़मीन से बेदखल होते रहे । पलायन तो जैसे नियति बन गई । झारखंड की इस दुर्दशा के लिए यहां के लोगों को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए । वैसे इन कविताओं के ज़रिए मैने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है । समय करवट लेगा और खुशहाल झारखंड की हमारी परिकल्पना साकार होगी ।