पुस्तक “पद्मवज्र” (Padmavajra), जो बौद्ध तन्त्र परम्परा पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ मुख्यतः वज्रयान (तन्त्रयान) परम्परा में पद्मवज्र नामक आचार्य के ग्रन्थों, विशेषतः “तन्त्रार्यावतार-टीका” के अध्ययन और व्याख्या पर केंद्रित है।)
दार्शनिक महत्त्व
1. यह ग्रन्थ बौद्ध तन्त्र के ज्ञानमार्ग और उपायमार्ग दोनों को संतुलित दृष्टि से प्रस्तुत करता है।
इसमें शून्यता और करुणा, ज्ञान और उपाय, तथा समता और विवेक के द्वन्द्वों को अद्वय रूप में व्याख्यायित किया गया है।
अपभ्रंश बौद्ध वाङ्मय की चर्चा से यह भी स्पष्ट होता है कि बौद्ध तन्त्र-साधना केवल संस्कृत ग्रन्थों तक सीमित नहीं रही, बल्कि लोकभाषाओं में भी उसका व्यापक प्रसार हुआ।
प्रो. सुनीति कुमार पाठक की यह कृति भारतीय बौद्ध तन्त्र-साहित्य के दार्शनिक, भाषिक और साधनात्मक पक्षों को जोड़ती है। उन्होंने तिब्बती, संस्कृत और अपभ्रंश स्रोतों के तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से यह दिखाया है कि पद्मवज्र की परम्परा बौद्ध तन्त्र-चिन्तन में ज्ञान (Prajñā) और करुणा (Karuṇā) के अद्वय समन्वय का एक उच्च उदाहरण है।