कविता मनुष्य के भीतर जन्म लेने वाली वह लहर है, जो कभी प्रेम बनकर उठती है,
कभी देशप्रेम की पुकार बनकर गूँजती है, और कभी समाज की सच्चाई को आईना दिखाती है।
यह संग्रह उन लहरों का संगम है — भावनाओं, विचारों और संवेदनाओं का,
जहाँ दिल की धड़कनें शब्दों में ढलकर गीत बन गई हैं।
प्रेम मेरी कविताओं का पहला स्वर है —
वह प्रेम जो केवल किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि जीवन से, प्रकृति से, और समस्त सृष्टि से जुड़ता है।
देशभक्ति मेरी रगों में बहता वह रक्त है,
जो हर बार तिरंगे को लहराते देख फिर से जवान हो उठता है।
और समाज — वही दर्पण है, जिसमें हम सब अपनी परछाइयाँ देखते हैं,
कभी सवालों में उलझे, कभी उम्मीदों से भरे।
इस पुस्तक में हर कविता मेरे जीवन के किसी भावनात्मक क्षण से निकली है।
कभी वह किसी अधूरी याद का गीत बन गई,
कभी किसी सैनिक की आँखों का सपना,
और कभी किसी आम इंसान की बेचैनी का स्वर।
मैं मानता हूँ कि कविता केवल लिखी नहीं जाती —
वह जी जाती है, महसूस की जाती है।
यदि इन पंक्तियों में आपको अपने दिल की कोई धड़कन,
अपने देश की कोई पुकार, या अपने समाज की कोई सच्चाई दिखाई दे —
तो समझिए, यह प्रयास सफल हुआ।
— संजीव कुमार