ये क़िताब मेरी लिखी हुई चंद नज़्मों का घेरा है। मैं हर माहौल को समझने और जीने की कोशिश करता हूँ और जीते-जीते शब्दों में पिरोता रहा हूँ। ये कहने को सिर्फ़ शब्द या फिर अल्फ़ाज़ हो सकते है, लेकिन असल तौर पर ये कहानियां है आपकी और मेरी। कहानियां कुछ अच्छी भी कुछ बुरी भी, महसूस करना चाहे तो की जा सकती है और भूली भी जा सकती है
इश्क़ से लेकर घर की चौखट तक, जिस्म से लेकर रूह तक, जिस भी जाविए से देखने की कोशिश करे आपको नज़ारा एक जैसा ही नज़र आता है, लेकिन सच ये है कि ये शब्द ये नज़्में साये है तेरे मेरे.......