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Sree Sree Anukulchandra ke Bichardhara : Ek Samajshastriya Samiksha / श्रीश्रीअनुकूलचन्द्र के बिचारधारा एक समाजशास्त्रीय समीक्षा

Author Name: Dr. Srikumar Mukherjee | Format: Paperback | Genre : Educational & Professional | Other Details

यह पुस्तक श्रीश्रीअनुकूलचन्द्र की विचारधारा के कुछ पहलुओं पर आधारित चुनिंदा बारह हिन्दी लेखों का संग्रह है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, विवाह, अर्थव्यवस्था, वर्णाश्रम, समाज, राजनीति, धर्म, संस्कृति, आध्यात्मिकता, आदर्श, मानव चरित्र, दर्शन, आदि के साथ श्रीश्रीअनुकूलचन्द्र के जीवन का एक आलेख की प्रस्तुति है। PSSAC और ISHRD के सहयोग से रांची विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा फरवरी 2019 में आयोजित "Relevance of the Ideology of Sree Sree Anukulchandra in Global Context” (वैश्विक संदर्भ में श्रीश्रीअनुकुलचनद्र की विचारधारा की प्रासंगिकता) पर एक सफल राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत किए गए शोध पत्रों में से चयनित कुछ हिन्दी पत्रों का यह संकलन है। यह आशा की जाती है कि इस पुस्तक से पाठक श्रीश्रीअनुकूलचन्द्र के जीवन और कार्यों से परिचित होते हुए शैक्षणिक और शोधात्मक दृष्टिकोण से उन्हे एक "लोक शिक्षक" के रूप में पहचान करने में सक्षम होंगे।

लेखकबृंद:
 प्रो० अशोक कुमार पाण्डेय
 प्रो० डा० प्रभात कुमार सिंह
 प्रो० डा० सुरेन्द्र पाण्डेय
 प्रो० डा० पारस कुमार चौधरी
 प्रो० डा० बिनोद नारायण
 डा० सुजीत कुमार चौधरी
 सुश्री मधू कुमारी
 सुश्री अर्चना कुमारी
 प्रो० राज मोहन
 प्रो० इन्दु कुमारी
 डा० एस० एन० झा
 डा० श्रीकुमार मुखर्जी

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डॉ. श्रीकुमार मुखर्जी

इस पुस्तक के सम्पादक डा० श्रीकुमार मुखर्जी (MSc-IT, MA-Sociology, PhD) पेशेवर तरीके से कम्पुटर विज्ञान के शिक्षक है। डा० मुखर्जी प्रथम जीवन में एक भौतिकवादी दार्शनिक विचारधारा से प्रभावित थे, लेकिन भौतिकवाद का नया स्वरूप द्वारा श्रीश्रीअनुकूलचन्द्रजी के जीवनदर्शन के प्रति आकृष्ट होने के पश्चात इसपर उन्होंने शैक्षिक शोध (PhD) सम्पन्न किया है। सम्पादक के अनुसार -“मैंने श्रीश्रीअनुकूलचन्द्रजी के धार्मिक विचारों में एक अद्भुत क्रान्तिकारी वैज्ञानिक दृष्टिकोण पाया......अस्तित्व को धारण करने वाला विज्ञान ही धर्म है, और वह एक है,.....सम्प्रदाय धर्म नही है.......वस्तु में है existential-urge और वही है ईश्वर, और ईश्वर एक है....अध्यात्मिक साधना एकप्रकार मनोबैज्ञानिक चिकित्सा है......प्राकृतिक सूत्रानुसार विवाह संस्कार से अच्छे मनुष्य का जन्म होता है और वह उन्नत समाज निर्माण का आधारशिला है,......वैशिष्ट्य-भिन्नता सृष्टि के प्रत्येक जीवों में भिन्न वर्ण के रूप में पाया जाता है,....चारित्रिक कमजोरी से औद्योगिक गिरावट तथा आर्थिक संकट पैदा होती है,..." आदि। वर्तमान में डा० मुखर्जी अपने पेशे में रहते हुए भी इंडो-आर्यन लोकशिक्षा से जुड़े हुए है।  

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