सभी पाठकों को आपके अपने अनुज राजेश सरोहा की तरफ से हाथ जोड़कर राम -राम और हार्दिक अभिनन्दन और प्रणाम।
जिस प्रकार शीर्षक है सुगंध मेरी माट्टी की। एक पहल है हरियाणवी संस्कृति को संजोए रखने की, अपने आसपास के हाल और माहौल आप तक पहुंचाने का प्रयास है। हरियाणा नाम सुनते ही लोगों के दिलों दिमाग में एक अलग छवि पैदा हो जाती है, कि देशी, पहलवान, दुध-दही-घी का खाणा और बोली का तो सबसे अलग ही आनन्द है, क्योंकि एक अकेला व्यक्ति भी लाखों-करोडों की भीड़ में अलग से पहचान लिया जाता है। या तो वो चाल ढाल और वेष भूषा से बता देगा नहीं तो फिर अपनी बोली से पक्का बता देगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है पिछली पीढ़ी ने जो बदलने की कोशिश शुरू की थी, उसका असर आने वाली पीढ़ी में नजर आ रहा है और हम रह गये है दोनों के मध्य इसलिए सबसे ज्यादा हमारी जिम्मेदारी है कि आने वाले समय में हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को किस दिशा में लेकर जाना है। एक बहुत बड़े विद्वान ने कहा है कि, जो समाज अपना इतिहास भूल जाता है तो वह भविष्य में कभी राज नहीं कर पाता है और यहां हम ना केवल इतिहास बल्कि अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं। हालांकि हरियाणा सरकार इस बात पर बधाई की पात्र है कि उसने सरकारी नौकरी के लिए लगभग हर परीक्षा में हरियाणा से संबंधित अलग से जानकारी को अतिआवश्यक कर दिया है, परन्तु सरकारी नौकरी मिलने के बाद कितने लोगों को अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम रहता है और कितने लोग हरियाणवी होने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं।