कुछ ना भुला सकने वाले किस्से, जज़्बात, और लोगों से ही तो मिलकर ये ज़िंदगी बनती है। सात साल तक ज़िंदगी को और करीब से जानने के बाद तेरी-मेरी कशमकश के दूसरे भाग में ऐसे ही कुछ कहे-अनकहे जज़्बातों को बयान करने की कोशिश की गई। कुछ अधूरी ख्वाहिशों और कुछ मुकम्मल ऐहसासों का लूब्ब-ए-लुबाब है ये किताब।