वो आख़री ख़त
जीवन किसी सुख की सेज का नही अपितु संघर्षों के चरितार्थ होने का नाम हैं। जिसमे प्रेम, क्रोध, करुणा, शांति, शोक, संयम इत्यादि भावों का प्रवाह निरंतर होता रहता हैं। यह कहानी सागर नाम के लड़के की न सिर्फ़ प्रेम व्यथा बल्कि व्यक्ति के जीवन मे आने वाली सारी कठिनाईयों का जिसमे भविष्य की चिंता, लक्ष्य प्राप्ति के लिये संघर्ष, हार का भय, प्रेम से बिछड़न व उसकी पराकाष्ठा इत्यादि कठिनाईयों का न सिर्फ़ वर्णन है। बल्कि इससे धैर्य रख कर निपटने का काफी हद तक उपाय भी बताया गया है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे परिस्थियां उम्र से पहले इंसान को बड़ा बना देती है, और इन्हीं परिस्थितियों से सीख कर सागर छोटी सी उम्र में बड़े-बड़े काम करने के न सिर्फ सपने देखता है, बल्कि उसे पूरा भी करता है। हर बड़ी जीत को हासिल करने के लिये, वह काफ़ी कुछ हारता भी है। मगर सागर हर हार को जीत की पहली सीढ़ी की तरह मानता है, जिस पर से होते हुए इंसान क़ामयाबी के ऊँचे से ऊँचे मक़ाम तक पहुँच सकता है।।