जीवन यादों और अनुभवों का ऐसा खजाना है जिसे कोई व्यक्ति चाहे तो अपने तक सहेज कर रख ले और चाहे तो बाँट भी सकता है। इस कथा संग्रह में कहानीकार ने बचपन के रंग-बिरंगे पहलुओं को कल्पना की उड़ान, शरारतों की खट्टी-मीठी चटनी और भावनाओं की चाशनी में डुबोकर प्रस्तुत किया है। इसका जायका पाठकों को अनायास ही उनके बचपन की गलियों में खींच ले जायेगा।
"यादों की संदूकची" कथा-संग्रह में जहाँ एक ओर खेल-खेल में बड़े-बड़े कांड रचता मासूम बचपन दिखाई देता है तो वहीं दूसरी ओर मासूमियत का स्वांग रचता भद्र और सभ्य समाज भी नजर आता है।
कहानीकार संगीता ढानीवाला, एक स्थापित कवयित्री व नृत्य प्रशिक्षिका होने के साथ अपने बचपन से ही किस्सा-गो रही हैं। इनकी कहानियां मनोरंजक और बार-बार पढने योग्य होने के अलावा परिवार और समाज के लिए अनूठे संदेश भी देती हैं। हर कहानी पाठक को गुदगुदाने के साथ ही उसके मानस पटल पर अविस्मरणीय छाप छोड़ जाती है।
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