तेरा साथ है तो...

वीमेन्स फिक्शन
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कुछ लोगों को nostalgia में जीना कितना सुकून देता है इसे आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागने वाले लोग क्या ही समझ पाएंगे!

खासकर लड़कियां तो अपनी आधी उम्र nostalgia में जी कर ही निकाल देती हैं. उनका तीन चौथाई हिस्सा तो मायके में ही रह जाता है, बचा एक चौथाई हिस्सा..... शादी के बाद की जिम्मेदारियों और उम्मीदों के बोझ तले बेचारा क्या तो जिएगा और क्या ही मरेगा! अगर उस मायके वाले तीन चौथाई हिस्से में किसी का प्यार बसा हो तो और मुश्किल… "मानो करेला वो भी नीम चढ़ा". अब यहाँ सिर्फ यह कह देना कि शादी होते ही वह पुराना सब कुछ भुला कर बस अपने पति, की हो जाती हैं तो यह केवल कहना भर होता है. प्यार करने वाले दिल पर जुदाई क्या कहर ढाती है... यह सिर्फ वही जान सकता है जो इस पथ से गुजरा हो. तो उसे nostalgia में जीना ही बेहतर लगता है. हमेशा चुप-चुप, खोए-खोए, मन से बुझे और चेहरे से मुस्कुराते रहना… ऐसे nostalgia प्रेमियों का व्यक्तित्व बन जाता है.

मायके में हमेशा हंसती-खिलखिलाती रागिनी ने भी शादी के बाद अपना ऐसा ही व्यक्तित्व बना लिया था. क्यों बना लिया था.... अरे वही nostalgia और क्या? उसके nostalgia का कारण कोई प्रेमी नहीं बल्कि शादी था. उसे शादी करनी ही नहीं थी. इंजीनियर थी, कमा रही थी. अकेली जी सकती थी फिर शादी करना जरूरी क्यों था?

"शादी तो हर किसी को करनी पड़ती है. तू कौन सी आसमां से कूदी है जो तेरी शादी नहीं होगी". उसकी बेस्ट फ्रेंड मनीषा ने कहा.

समाज के अपने नियम कायदे होते हैं. उनका पालन करना भी जरूरी होता है. शादी नहीं करेगी तो क्या अकेली रहेगी सारी उम्र? या फिर वो आजकल… क्या कहते हैं उसको… "अरे हां, लिव-इन में रहेगी किसी के साथ"? नाक कटाएगी हमारी? मां ने डांटा.

रहने दो ना मम्मी... उसे नहीं करनी शादी तो मत कराओ. वैसे भी तुम कौन सा खुश हो शादी करके! "सारा दिन तो कभी पापा को, कभी हमको, कभी घर की जिम्मेदारियों को और कभी अपनी किस्मत को कोसती ही रहती हो. अगर यही सब शादी के बाद रागिनी को भी करना है तो फिर क्या फायदा ऐसी शादी से". जिस परंपरा की वजह से तुम औरतें सदियों से अपनी किस्मत को कोसती आ रही हो क्यों जरूरी है कि रागिनी भी उसी परंपरा को निभाए और फिर सारी उम्र तुम्हारी तरह ही अपनी किस्मत को कोसने में निकाले! "जिंदगी जीने के लिए होती है मम्मी, किसी को या खुद को कोसने के लिए नहीं". बड़े भाई ने पक्ष लिया.

चुप कर तू. बड़ा आया मां को ज्ञान देने वाला. मां की डांट खाकर वो भी चुप हो गया.

लास्ट बचे पापा, रागिनी यूं तो पापा की लाडली थी और वह उसे हमेशा सर पर बिठा कर रखते थे लेकिन इस बार तो पापा ने भी उसे जमीन पर ला पटका. शादी तो बेटा करनी पड़ेगी. सारी उम्र unmarried रहना विदेशों का culture होगा, अपना नहीं. मैं बस इतनी हेल्प कर सकता हूंँ कि लड़का तू अपनी पसंद का चुन ले.

"कर लो सब दरवाजे बंद, देखो आए-आए चोर".... चारों दिशाओं में दौड़-दौड़ कर मदद मांगने, रो-धो लेने, सर-पैर पटक लेने के बाद भी रागिनी की आजादी में डाका पड़ ही गया. पूरे गाजे-बाजे के साथ रागिनी को ताउम्र काला पानी की सजा के लिए जेल भेज दिया गया. घर परिवार संभालने की संपूर्ण जानकारी मम्मी, मौसी द्वारा लिखा पढ़ा दी गई. सुहागरात और पति को बस में करने का क्रैश कोर्स व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के होनहार व कुछ अनुभवी छात्रों द्वारा करा दिया गया. किंतु लाइफ में थ्योरी से ज्यादा हमेशा प्रैक्टिकल काम आते हैं. मगर कैच यह है कि थ्योरी तो आप कभी भी पढ़ लो पर कुछ प्रैक्टिकल तो सही वक्त पर और सही जगह ही किए जा सकते हैं. सही वक्त और सही जगह पर रागिनी की रटी हुई थ्योरी कुछ काम नहीं आई. प्रैक्टिकल जो हुआ उसमें वह फेल हो गई. सुहागरात वाला सिलेबस उसकी समझ से बिल्कुल बाहर निकला. हालांकि उसके पति नमन ने सिचुएशन संभाल ली पर रागिनी को वो सब बिल्कुल नहीं भाया.

खैर रात गई, बात गई. यह तो रोज का रूटीन होना था. रागिनी दिखने में काफी खूबसूरत थी. उसकी कत्थई आंखें सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती थीं. नमन उसे बहुत प्यार करने लगा था लेकिन सात-आठ महीनों के साथ के बाद भी रागिनी को ना शादीशुदा लाइफ से प्यार हुआ और ना ही नमन से. उनके फिजिकल रिलेशनशिप में भी केवल नमन ही होता था... रागिनी ना जाने कहाँ होती थी.

"तेरा साथ है तो, मुझे क्या कमी है… " रागिनी का फेवरेट गाना था. काॅलेज के टाइम पर वो जब भी ये गाना सुनती थी तब यही सोचती थी कि शायद कभी उसकी जिंदगी में भी ऐसा कोई आए जिसके लिए वो दिल से इसे गुनगुनाए. नमन के लिए ये गाना गाने का उसका कभी मन ही नहीं किया.

यूं ही बेरंग सी जिंदगी जीते-जीते वह nostalgia में जीने लगी. इसी nostalgia में उसे अपनी बेस्ट फ्रेंड मनीषा की सबसे ज्यादा याद आती. उसके साथ बिताए स्कूल-काॅलेज के दिन, मौज-मस्ती... बस इन्हीं बातों में वह खोई रहती.

शादी के दो साल बाद रागिनी, मनीषा के शहर गुड़गांव शिफ्ट हो गई. दोनों सहेलियों की बैठक फिर जमने लगी. वह जितनी देर मनीषा के साथ रहती उतनी देर खुश रहती. बाकि time वही फीकी सी, बनावटी मुस्कान लिए फिरती. एक दिन अचानक मनीषा रागिनी के घर आ गई अपना बैग लेकर. रागिनी ने कारण पूछा तो वह बोली पति से लड़ कर आई है. ज्यादा बातचीत करने पर पता चला कि उसकी पति से नहीं बनती. आए दिन झगड़े होते हैं और आज तो उसके पति ने हाथ तक उठा लिया.

रागिनी यह सब सुनकर आश्चर्यचकित रह गई. लेकिन वजह क्या है झगड़े की? तेरे पति झगड़ालू या गुस्सैल तो कहीं से नहीं लगते.

U are right...

तो झगड़ा किस बात का?

मैं उनसे खुश नहीं हूंँ...

क्यों खुश नहीं है? जब स्वभाव अच्छा है तो?

बस नहीं हूंँ खुश! मेरी अपनी वजह हैं. केवल स्वभाव अच्छा होना ही तो किसी सफल शादी की कसौटी नहीं है!

तो और क्या कसौटी होती है सफल शादी की? और क्या चाहिए तुझे उनसे?

प्यार...

वह प्यार नहीं करते तुझे?

करते हैं.

तो फिर problem क्या है यार? क्यों घुमा फिरा के बोल रही है?

I am physically not satisfied with him...

रागिनी तो जैसे pause हो गई.

तुझे समझ आया रागिनी?

क... क.. क्या... Physically not satisfied... मतलब?

मतलब यह कि मैं हमारे physical relationship में खुश नहीं हूंँ. उनका व्यवहार अच्छा है, मुझे चाहते हैं, but अपनी-अपनी needs होती हैं. मेरी वह need पूरी नहीं होती. बस इसी बात पर हमारे झगड़े होते हैं.

ऐसे थोड़ी होता है मनु. अपने पति के बारे में लड़कियां ऐसी बातें करती शोभा नहीं देतीं.

रागिनी… तू किस एंगल से पढ़ी लिखी है यार? यह 21वीं सदी है. Marital rape का नाम सुना है तूने? जब पति का मन करे वह अपनी ही पत्नी का rape कर सकता है. वह legal है. लेकिन अगर पत्नी अपने लिए कुछ चाहे तो गलत है... क्योंकि वह औरत है?

Ok ok, calm down. But यूँ घर छोड़ने से तेरी problem solve हो जाएगी?

पता नहीं, लेकिन अभी कुछ दिन तो मैं वहाँ नहीं जा सकती. नमन को कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी?

नहीं यार, उनका स्वभाव अच्छा है.

अच्छा, फिर तो तुझे बहुत खुश होना चाहिए! तो तू क्यों इतनी बुझी-बुझी सी रहती है?

खुश तो हूंँ मैं. अब छोड़ यह बातें... ये बता डिनर में क्या लेगी?

कुछ भी बना ले यार... चल मैं भी चलती हूंँ.

मनीषा का साथ रागिनी के चेहरे की खोई रौनक लौटा लाया. मनीषा को आए हुए दो ही दिन हुए थे कि नमन को 15 दिन के लिए दुबई जाना पड़ा. अब घर में थीं दोनों सहेलियां, उनकी दोस्ती, थोड़ी शैंपेन, थोड़ी मस्ती और ढेर सारी बातें. रागिनी ने ऑफिस से 5 दिन की छुट्टी ले ली. दोनों ने साथ में खूब शॉपिंग की, मूवीज देखीं, दिल्ली तक घूम आए. सारी रात बातें करतीं, दिन भर सोतीं. उठतीं तो सामने एक-दूसरे का चेहरा देखकर अजीब सा सुकून मिलता. एक सुकून इस बात का भी कि इन दिनों उन्हें अपने-अपने पतियों का सो काॅल्ड प्यार नहीं झेलना पड़ रहा था.

एक रात हॉरर मूवी देखने का प्लान बना. Starters और Champagne से टेबल सजा दी गई. डिम लाइट, हॉल के कर्टन डाउन और टीवी ऑन. रागिनी को ऐसी मूवी से डर लगता था लेकिन मनीषा नहीं मानी. जैसे-जैसे मूवी आगे बढ़ती गई रागिनी का डर बढ़ता गया. वह मनीषा के पास चिपक कर बैठ गई, बिल्कुल एक बच्चे की तरह. हॉरर सीन देखकर जितना रागिनी चीखी और जितनी कुलांचे उसने सोफे से मारी... मनीषा ने तौबा कर ली कि आज के बाद वो उसके साथ कोई हॉरर मूवी नहीं देखेगी. पूरी रात रागिनी मनीषा से चिपक कर सोई, बिल्कुल एक बच्चे की तरह उसके कांधे पर सिर रखकर और मनीषा भी काफी देर तक उसके सर को थपथपाती रही. उस रात रागिनी को ये अहसास हुआ कि मनीषा उसके लिए बहुत special है. नमन के साथ उसने आज तक इतना comfortable फील नहीं किया जितना कि वो मनीषा के साथ करती है. मनीषा के प्रति अपने दिल में आए अहसास से वो सिहर उठी. उसे एक अजीब… लिजलिजी सी feeling हुई…. Something unnatural. धीरे-धीरे दोनों को इस बात का एहसास होना शुरू हुआ कि वह दोनों एक दूसरे के लिए बनी हैं. चाहत दोनों की थी बस कदम कौन बढ़ाए! एक दिन मनीषा ने कहा कि वह अपने पति से तलाक ले रही है.

लेकिन क्यों?

क्योंकि मैं अब यह दोहरी जिंदगी नहीं जी सकती.

लेकिन तलाक... तू जानती है ना "divorcey" को हमारा समाज किन नजरों से देखता है?

हद है रागिनी, तू सच में आज की लड़की है! Educated, independent woman!

लेकिन मनु शादी तोड़ना अच्छी बात नहीं है...

सही है, असफल शादी में घुट-घुट के जीवन गुजार देना अच्छा है. बस अपने लिए सोचना बुरा है. तू खुश है अपनी शादी में? नहीं ना... फिर भी बंधी रहेगी उसमें क्योंकि यही हमारे आदर्श हैं. तू बन यार आदर्शवादी, मुझे नहीं बनना. एक ही जिंदगी मिली है... मुझे वह जीनी है, काटनी नहीं है. आगे का पता नहीं पर अभी मैं इस आदमी के साथ खुश नहीं हूंँ. अब मैं और इसके साथ नहीं रह सकती.

मनीषा अब एक पीजी में रहती है और बहुत खुश है. एक दिन रागिनी भी खुश हो गई, उसका nostalgia खत्म हो गया क्योंकि उसने भी बोझ बने शादी के बंधन से मुक्ति ले ली. वह भी मनीषा के साथ ही शिफ्ट हो गई. बिना किसी ठोस वजह के तलाक लेने के कारण दोनों के परिवार वाले उनसे नाराज हैं. लेकिन वो दोनों बहुत खुश हैं क्योंकि अब उन्हें किसी मर्द की कामना पूर्ति के लिए खुद को परोसना नहीं पड़ेगा.

उनका साथ रहना, खुश रहना, वह भी बिना किसी मर्द के.... समाज की आंखों में किरकिरी बन चुका है. लेकिन दूसरों की खुशी के लिए अपने जीवन को जहन्नुम कर देने वाली मानसिकता से वो दोनों ऊपर उठ चुकी हैं. दोनों एक दूसरे की पूरक हैं, एक दूसरे का परिवार हैं, एक दूसरे से बेहद प्यार करती हैं और जल्द ही शादी भी करने वाली हैं. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उन्हें एक साथ देखकर तिरछा मुस्कुरा देते हैं, उन्हें लेकर कटाक्ष करते हैं, उन्हें लेस्बियन कहते हैं! वो बुरा माने ही क्यों… वो लेस्बियन हैं तो हैं. वो बस ये जानती हैं कि उन्हें एक दूसरे के साथ जीना है, जीवनसाथी की तरह.

स्त्रियों को खुश रहने के लिए कब तक पुरुषों के नाम का, उनके साथ का सहारा चाहिए? अगर वो किसी पुरुष के सहारे के बिना खुशी-खुशी अपना जीवन जी सकती हैं... चाहे वह सिंगल हो या किसी लड़की के साथ रिलेशनशिप में हो... किसी को क्या फर्क पड़ता है? और क्यों फर्क पड़ना चाहिए? क्या हम ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहाँ बिना किसी को हानि पहुंचाए, कोई अपनी दुनिया में खुश है तो उसे खुश रहने दिया जाए????

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