JUNE 10th - JULY 10th
अचानक भूकंप का जोरदार प्रकोप आया, जो पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया । सब कुछ दहस-नहस कर दिया । कोसों-कोसों तक सब कुछ नष्ट | चारों तरफ तबाही-तबाही । न लोग बचे, न जानवर, न प्रकृति की संपत्ती । सिर्फ एक लडका बचा शानू । कैसे ? पता नही । शानू की इंजिनिअरींग की पढाई अभी अभी पूरी हुई है । उम्र २५ साल । शानू अपनी माँ के दिए हुए अच्छे संस्कारों से बढा हुआ है । एक छोटे से गाँव का बच्चा शहर में आकर पढाई की । आधुनिक युग के चलते वह भी उसी तरह के वातावरण में रहना अच्छा महसूस करने लगा । जब कभी कोई परेशानी या प्रश्न आता तो तुरंत इंटरनेट पर, वेबसाइट पर डालकर ढुंढने लगता । सोशियल मीडिया को अपने जीवन में अपनाने लगा । यह युवा नौजवान आज के जमाने के सारे तौर तरीके सीख गया । इन सब का प्रयोग करते-करते उसकी मानसिकता इस तरह प्रभावित हो गई कि वह अपने मस्तिष्क का उपयोग करना भूल गया । हम सभी का भी यही हाल है। हमें कुछ भी ढुंढना हो तो गुगल पर ढुंढने लगते है । छोटा-सा हिसाब लगाना हो तो कम्प्युटर का इस्तेमाल करते है। कैसी मानसिक रचना बनती जा रही है ? शहरी जीवन का प्रभाव ऐसा पडा कि वह अपनी माँ के दिए हुए संस्कारों को भूलने लगा ।
आज ऐसी गंभीर परिस्थिती में उसके पास न इंटरनेट है, न कम्प्युटर है, न मोबाईल, न कोई दुसरा यंत्र । जिससे वह अपने मन में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर ढूँढ सके। यहाँ तक कि कोई इंसान भी नही है। केवल वह अकेला । ऐसे समय में वह रोए जा रहा था और उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ? चारों तरफ सुनसान, सन्नाटा और प्रकृति का प्रकोप फैला हुआ । कई मिलो दूर तक पैदल चलते रहा, चलते रहा। आखिर में थककर बैठ गया । उसने सोचा- क्या करूँ ऐसे जीवन का? मरना उसे सबसे आसान तरीका लगा सब समस्या को सुलझाने का । अगर हम उसकी जगह होते तो यही सोचते । उठा और भूकंप से जमीन में बनी खाई में गिरने लगा । हवा का एक जोरदार भवरा - वह फिर उठा और कुदने लगा, तब कडकडाती बिजली ने पीछे घसीट दिया । वह फिर उठा और कुदने लगा, धरती माँ ने खाई का दरवाजा बंद कर दिया । वह आश्चर्यचकित हो गया कि यह क्या हो रहा है ? "जब भी मैं मरने के लिए जाता हूँ तो प्रकृति मुझे रोक देती है। ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ ? जिंदा रहकर भी क्या करूँ मै । कोई नही है मेरा । “कई दिनों तक वह पेड़ के फल और पानी पीकर जिंदा रहा । अब तो इंटरनेट भी नही है कि अपने प्रश्न का उत्तर ढुंढ ले । हम सुविधाजनक वस्तुओं के कितने आदि हो गए है, जैसे हमारा उसके बिना अस्तित्व ही नही है । यह बिलकुल गलत है । मैंने तीन बार कोशिश की मरने की, लेकिन मै मर न सका । इसके पीछे कोई कारण अवश्य है । हताश निराश हो आकाश की ओर एकटक देखता जा रहा था । अपनी बाहर की इंद्रियों को बंद कर केवल आँखे खुली करके आकाश की ओर कई दिनों तक देखता रहा । आँख खुली पर दिखाई कुछ नहीं दे रहा था । "अब मरुँ तो मरुँ कैसे ? और जीऊ तो जीऊ कैसे ?" अपने आप से प्रश्न करने लगा । आसमान के भयंकर अंधकार में उसे टिमटिमाते चमकते तारे दिखाई दिए। उन्हें देख उसे अपनी माँ की बात अचानक याद आई कि माँ मुझे हमेशा कहती थी कि । 'मैं अमूल्य रत्न हूँ' । माँ के दिए हुए संस्कार वह शहरी चमक-दमक के सामने भूलने लगा था । लेकिन बचपन में दिए गए मजबूत संस्कार कही उसके पास कोने में पड़े हुए थे जो आज शायद उभरकर आ सकते है । पता नही आगे वह क्या करेगा ? माँ के कहे शब्दों को सकारात्मक लेगा या नकारात्मक ।
अभी तो उसे जोरों से भूख लगी है। पेड के फल तोडकर खा लिया । पेट की भूख मिटाने के बाद वही सो गया । रात में नींद में उसे 'अमूल्य रत्न' शब्द फिर सुनाई दिए । गहरी नींद में होने की वजह से वह कुछ समझ न सका । सुबह उठते ही फिर से उसे याद आया कि 'मैं अमूल्य रत्न हूँ' आश्चर्य से । कहाँ है मेरे अंदर रत्न ? "ढूँढ उस रत्न को " अपने आप से । कैसे पर कैसे ? कई दिनो तक वह इसी तरह विरान सुनसान गहों पर और जंगलो में घुमता रहा । एक दिन वह जंगल में बैठा था तभी अचानक कही से शेर आ गया और उसे खाने के लिए बढ़ने लगा । शानू अपनी जान बचाकर भागने लगा लेकिन शेर भी तेजी से उसके पीछे दौड रहा था। वह समझ गया कि अब मेरे मरने का समय आ गया है लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि शेर उसके पास से गुजरता हुआ हिरन को पकड़ लिया। और शानू को लगा कि वह उसे खा जाएगा । यह काल्पनिक दृश्य था परंतु सीख वास्तविक । शानू ने इस प्रसंग से यह समझा कि ध्यान एकाग्र चित्त होने से लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है जैसे शेर ने शिकार किया।
वह अपने 'अमूल्य रत्न' के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। उसने सोचा कि आसमान में जब अंधेरा होता है तभी तो तारे चमकते है ठीक उसी तरह मेरे जीवन में भी अंधकार के समय में ही मेरे अंदर का तारा चमक सकता है। जितना ज्यादा वह 'अमूल्य रत्न के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया उतना ही ज्यादा वह विचलित होता चला गया। आखिरकार थक हारकर चुपचाप बैठ गया। बिना खाए पीए तीन दिनों तक वह चुपचाप बैठा रहा ।
तब एक दिन उसे कुछ शब्द सुनाई आए । जैसे कोई उससे कुछ कह रहा है । अंदर से आवाज आई 'शानू' । उसने आस-पास देखा उसे कोई दिखाई नहीं दिया। फिर से आवाज आई । वह घबरा गया । यह क्या हो रहा है ? उसे डर लगने लगा कही भूत तो नही? फिर से आवाज आई- "नही भूत नही है, मैं हूँ मैं"
शानू घबराते हुए "कौन मैं ?"
"घबराओ मत, आगे बढो । जिस दिशा से आवाज सुनाई दे रही है उधर बढ़ते जाओ अत्यंत मधुर स्वर में । उसे अपनी ओर एक तरह का खिंचाव महसूस हुआ । और कोई रास्ता नहीं था तो उसने सोचा कि चलो यह करके देखते है । कुछ हुआ तो अच्छा नहीं हुआ तो और भी अच्छा | आवाज के आने पर उसे ऐसा लगा कि एक सेकंड के लिए बिजली की तरंगे ऊपर से नीचे तक उसके शरीर में फैली हुई है। चारों ओर खामोशी छाई हुई । कुछ तो है मेरे अंदर । उसने उस 'अमूल्य रत्न' को खोजना शुरू किया । समय के साथ धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते उसने पाया कि मेरे अंदर कई शक्तियाँ है और जो सर्वोपरी है वह आत्मा है । उसे आंतरिक अनुभव प्राप्त होने लगे । मार्गदर्शन मिलने लगा । करीब आठ साल का समय बीत गया । उसने एक भी इंसान को नही देखा। फिर भी आज उसे महसूस ही नहीं होता है कि वह अकेला है या किसी से मिला नहीं । ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने अपने अंदर के 'मैं' के साथ तालमेल बैठाकर संपूर्ण ब्रम्हांड से संपर्क स्थापित कर लिया। अपने अंदर के इंटरनेट से प्रश्न पूछना सीख गया । पहली बार उसने सत्य ज्ञान की खोज की । आंतरिक ज्ञान और इंजीनियरींग के ज्ञान को मिलाकर शानू हिम्मत के साथ तथा आंतरिक आवाज के सहारे आगे बढते-बढते वह एक गाँव में आ पहुँचा | उसका रंग-रूप देखकर लोग उससे दूर जाने लगे । इनते वर्षो से उसकी सूरत काली और बदसूरत हो गई थी। उसने सबसे पहले अपने रुप को ठीक करने के लिए कुछ पैसे कमाने शुरू किए । गाँव के सारे गोबर को उठाने का काम कर कुछ पैसे कमाकर उसने अपना हुलिया ठीक किया । फिर जो ज्ञानामृत उसे मिला वह गाँव के लोगों को देने लगा । धीरे- धीरे गाँव के लोग उसकी बाते समझने लगे ।
गाँव से शहर, शहर से देश, देश से विश्व में उसकी प्रसिद्धी होने लगी | शानू के लिए प्रसिद्धी से ज्यादा महत्वपूर्ण यह था कि वह लोगों को उनके अमूल्य रत्न' की खोज करने में मदद करें । हम कभी अकेले और बेसहारा है ही नहीं । बस जरूरत है तो हमें अपने आपको खोजने की । हम में ही अनंत शक्तियाँ विदयमान है जो हर कार्य करने में सक्षम है। अपने आंतरिक ज्ञान की शक्ति के माध्यम से उसने कितनी बड़ी-बड़ी कंपनिया खोल ली । कईयो को रोजगार मिला । शानू अरबोंपति बन गया। धन-दौलत, शौहरत, शांति, सुकुन, प्यार और विश्वास सब कुछ है उसके पास । उसने लोगों को यह भी सीखाया कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर उसका उपयोग करते हुए हम किस तरह अपनी आंतरिक शक्तियों को जगाकर सफलता प्राप्त कर सकते है । भूकंप के प्रसंग से शानू ने बहुत कुछ खोया पर उससे हजारों गुना उसने पाया । शानू परिपूर्ण संतोषजनक जीवन महसूस करने लगा | माँ के 'अमूल्य रत्न' की खोजकर वह 'अमूल्य ' । बन गया । मुस्कुराते हुए शानू समुद्र की ओर देखता बैठा रहा ।
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