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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
तलाश ज़िंदगी की अनुज सुब्रत की अभी तक की दूसरी किताब है। इतनी कम उम्र में ही यह शायर अपने क़लम से एक वहशीपन, दर्द और अपने अश्कों की ज़बान लिखने लगा। इनके कलाम में आपको ज़िंदगी से झुँझल
तलाश ज़िंदगी की अनुज सुब्रत की अभी तक की दूसरी किताब है। इतनी कम उम्र में ही यह शायर अपने क़लम से एक वहशीपन, दर्द और अपने अश्कों की ज़बान लिखने लगा। इनके कलाम में आपको ज़िंदगी से झुँझलाहट, मोहब्बत की तहक़ीक़ और आशना की सुंदरता पे कहे गए बेहद ख़ूबसूरत कलाम मिलेंगे, हालांकि शायर ने इन तमाम बातों तमाम फ़सानों से इंकार किया है,
"जिसने भी पूछा सबसे इंकार किया 'सुब्रत'
नाहीं कोई फ़साना था नाहीं कोई फ़साना है"
मगर ये भी है कि बिना दर्द के इस प्रकार का दर्द भी नहीं लिखा जा सकता है, और ऐसे ही शायर ने इस बात पे भी ज़ोर दिया है कि उसने कितने आँसू कितने दर्द से अपने कलाम को लिखा है,
"हमने कितने अश्कों से अश'आर को लिखा है
तुम क्या जानो दर्द-ए-दिल की तमन्ना क्या है"
और यही बातें बिहार के एक छोटे से शहर मोतीपुर में जन्मे २० वर्षीय अनुज सुब्रत को नायाब बनाती है। हालांकि, अनुज सुब्रत हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत और भोजपुरी में लिखते है और ऊपर से इनकी सोच और लिखने का ढंग इनको पढ़ने और समझने में आम लोगों के लिए मुश्किलें पैदा करता है।
यह किताब अनुज सुब्रत की बेहतरीन कविताओं का संग्रह है, जिसमें 'सुब्रत' की कविताओं में एक अलग ही दुनिया का ज़िक्र, एक अलग ही नयापन और हिंदी और उर्दू का एक अनूठा-सा ज़ायक़ा मिलता है। सुब्
यह किताब अनुज सुब्रत की बेहतरीन कविताओं का संग्रह है, जिसमें 'सुब्रत' की कविताओं में एक अलग ही दुनिया का ज़िक्र, एक अलग ही नयापन और हिंदी और उर्दू का एक अनूठा-सा ज़ायक़ा मिलता है। सुब्रत की यह कविताएं आमतौर पर दर्द और इश्क़ से ताल्लुक़ रखती है, इन कविताओं में हर उस कोने का ज़िक्र मिलता है जहाँ तक प्रेम का प्रकाश है और उस अंधेरे का भी ज़िक्र मिलता है जहाँ प्रेम का प्रकाश नही सिर्फ दर्द है और साथ ही एक अकेलेपन की भी बात मिलती है।
जिसका एक अनूठा उदाहरण है,
"सब कुछ छूटा हुआ है
बचपन हिज़्र-सा हुआ है।
हर कोई जा रहा है इस जहां को छोड़ के
लगता है अंबर में कोई मसीहा हुआ है।
ममता में ग़ैर माँओं के पैर क्या छुए मैंने
उनको लगा उनका बेटा मौत-सा हुआ है।
चाहत थी खिलौनों की, बचपन में हमे
अब जवानी में उनसे बैर कैसा हुआ है।"
आज शाम जब मुझे भूख लगी तो अपनी माँ के पास गया और माँ की साड़ी का पल्लू पकड़ कर , खींचते हुए उससे शिकायती लहजे में कहा कि, Read More...
ये जो तुम सबको अपना कर बैठे हो तुमको मालूम नही तुम बहुत बुरा कर बैठे हो इश्क़ को जो Read More...
ये जो कुछ भी है सब सच नही है ये जो दर्द है ये तो कुछ नही है ये नया मक़ाम है ये नई जिंदगी है ऐसा तो नही है कि वहाँ कुछ नही ह Read More...
“Does life really takes turns” asked by a practical student Stephen to himself. He was a ravishingly student of physics, by applying so many law of physics, he wanted to get the answer of that question, but he felt that he was failed to got the answer of this question. His mind couldn&rs Read More...
यक़ीन कर, यक़ीन से अब पर्दा हुआ है मैं जहाँ खड़ा हूँ वहाँ सबने सर झुका लिया है बहुत बुरा हूँ मैं, हर तरफ मिरि ही बुराइयाँ Read More...
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