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Vivek SreedharAuthor of Ketchup & Curryरातें लंबी होती गई दिन कुछ ज्यादा नहीं देखा तेरे जाने के बाद उगते सूरज को दोबारा नहीं देखा एक तेरा चेहरा था जिसे द Read More...
समंदर से हारा ये शख़्स सहराओं से बेखबर लगता है आज फिर धुआं आसमां पर छा गया है आज फिर से उजड़ा कोई शहर लगता है एक तेरे Read More...
कोई दायरा भी कैसे बांध पता मुझे कितनी मुहब्बत है तुझसे कैसे बताता तुझे ताउम्र मलाल रहा ज़िंदगी भर तनहा रहने का म Read More...
कभी किसी गैर के मसले पर मसलहत नहीं की तेरे बाद हमने कोई हसरत नहीं की तेरा जाना इस कदर खल रहा है मुझे तेरे लिए लिख Read More...
क्या कोई कभी गुरूर की ज़िंदगी जी कर सुकून से रह सक है कभी कसी भूखे को पेट भर के देखना अच्छा लगता है बरना यूं तो ये परि Read More...
तेरे नाम पे जंग करते है ये हवा के झोंके तेरी जुल्फों को तंग करते हैं तेरे लबों से शिक़ायत है शायद मुझे इसलिए अपनी कम Read More...
कुछ उजड़ गया कुछ बिगड़ गया कुछ कल के लिए आबाद रखा तेरे क़दमों की आहट भूला दि मैंने तेरा लौट के आना याद रखा कुछ तनहा शा Read More...
बहूत हुई मुहब्बत अब तो बगावत तुज ही से करनी है तेरा नाम भी नहीं लेना है और शिकायत भी तुझ ही से करनी है थक गया अब खा कर ठ Read More...
किसने सोचा था कि तरक्की की तलाश में हम इतना आगे निकल जायेंगे कि वक़्त अगर कोई तबाही लेकर भी आए तो लौट आना मुश्किल हो Read More...
ये बेख्याली ज़हन से जाती क्यों नहीं मायूसी अब मुझे रुलाती क्यों नही क्या में पागल हो गया हूं ,नहीं तो फिर ये नींद मु Read More...
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