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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palलेखिका अरुणा शर्मा, बचपन से ही अत्यंत दुर्लभ विचारों की धनी है. सदैव ही उनका ध्यान जीवन के उन पहलुओं पर जाता रहा जिन्हे समाज अक्सर अनदेखा करकर देता है. उनके विचार दूसरों को शीघ्र ही प्रभावित कर लेते है. उनके मन में समाज में बदलाव लानRead More...
लेखिका अरुणा शर्मा, बचपन से ही अत्यंत दुर्लभ विचारों की धनी है. सदैव ही उनका ध्यान जीवन के उन पहलुओं पर जाता रहा जिन्हे समाज अक्सर अनदेखा करकर देता है. उनके विचार दूसरों को शीघ्र ही प्रभावित कर लेते है. उनके मन में समाज में बदलाव लाने की महत्कांक्षा है.
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यह विभिन्न कविताओं का संग्रह है. इसमें प्रेम से विरह तक सभी विषय पर कविताएं हैं. यह इनके वर्तमान तक की संग्रहित कवितों का संग्रह है जिनमें भिन्न-भिन्न विषय है
यह विभिन्न कविताओं का संग्रह है. इसमें प्रेम से विरह तक सभी विषय पर कविताएं हैं. यह इनके वर्तमान तक की संग्रहित कवितों का संग्रह है जिनमें भिन्न-भिन्न विषय है
यह कहानी एक ऐसी पति पीड़ित महिला 'उल्मी' की है जो पहले अपने पति से बहुत प्यार करती थी मगर अब उतनी ही नफरत करती है. उस नफरत के आगे वो अपने जीवन को भी छोटा समझती है और अपने प्राण त्यागने
यह कहानी एक ऐसी पति पीड़ित महिला 'उल्मी' की है जो पहले अपने पति से बहुत प्यार करती थी मगर अब उतनी ही नफरत करती है. उस नफरत के आगे वो अपने जीवन को भी छोटा समझती है और अपने प्राण त्यागने का सोचती है तभी एक सुदर्शन सा राक्षस उसकी जान बचा लेता है वह उसके प्राण त्यागने की वजह जानना चाहता है। वह उल्मी नाम की महिला अपने पति से प्यार और नफरत दोनों ही कारण बता देती है अब वह अपने पति से अपने ऊपर किये गए जुल्मों का बदला लेना चाहती है. क्या उल्मी अपने पति से बदला ले पाएगी ? क्या जान बचने वाले राक्षस के प्यार को समझ पाएगी या उसी राक्षस की नफरत का शिकार हो जाएगी?
ये कहानियां मेरे नानीजी-नानाजी द्वारा बड़े जतन से इन कहानियों को संग्रहित किया गया है. ये कहानियां आज के परिवेश में नन्हे मुन्नों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है जो भा
ये कहानियां मेरे नानीजी-नानाजी द्वारा बड़े जतन से इन कहानियों को संग्रहित किया गया है. ये कहानियां आज के परिवेश में नन्हे मुन्नों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है जो भाषा में सरल और स्वभाव में सहज है. कृपया इन कहानियों को अवश्य पढ़े और बालकों का ज्ञानवर्धन करे. इन सबमें उन बुद्धिजीवियों का योगदान है जिन्होंने इन्हें लिखा और प्रेरणादायक बनाया और मेरे सम्मानीय नानीजी-नानाजी ने इन्हें इकठ्ठा कर अपना कीमती वक़्त दिया
This story is based on a true incident in which a woman is hurt by her own mother because her mother believes that she has been reborn. His dead elder sister was born to him as a daughter. Trying to snatch her husband. This feeling of mother lasts throughout her life and she is never able to consider her as her daughter. A daughter yearns for the love of her mother while she is alive, till her death. But she could not overcome her mother's hatred. She li
This story is based on a true incident in which a woman is hurt by her own mother because her mother believes that she has been reborn. His dead elder sister was born to him as a daughter. Trying to snatch her husband. This feeling of mother lasts throughout her life and she is never able to consider her as her daughter. A daughter yearns for the love of her mother while she is alive, till her death. But she could not overcome her mother's hatred. She lives in miseries throughout her life, but her parents or any side of the society does not take care of her. This book shows us that cruel part of the society in which blood relations end only with a feeling of wretchedness. The author has directly experienced what happened to Gudiya. The author has felt that pain and has tried to put that pain in her own words. This story shows us the horrible form of society and the disgusting behavior done by the mother to the daughter.
यह मार्मिक कहानी सेरोगेसी से पैदा हुए उस मासूम बच्चे के अंतर्मन की कहानी है जो इस दर्द को वर्षों तक सहन करता है. इस दौरान वह अपनी ना तो जन्मदात्री माँ से मिल ही पाता है और ना ही उसके
यह मार्मिक कहानी सेरोगेसी से पैदा हुए उस मासूम बच्चे के अंतर्मन की कहानी है जो इस दर्द को वर्षों तक सहन करता है. इस दौरान वह अपनी ना तो जन्मदात्री माँ से मिल ही पाता है और ना ही उसके प्यार को महसूस कर पाता है. समाज में इस सेरोगेट माँ के रूप में आए इस परिवर्तन को शायद बदल देना चाहिए क्योंकि इस तरह से पैदा हुए बच्चे अंत तक इस पीड़ा को भुगतते है. दिल के किसी कोने में अपनी जन्मदात्री माँ के विषय में जानने की उत्सुकता बनी रहती है.
No one could stop the pace of time, as the passing time, Mandvi's silence was increasing in exile. She could not even forget the treatment and humiliation that had happened to her. She could not get the love of adolescence, always got neglected feelings from her husband. After Rama's exile, Bharat had made up his mind to live outside the city as a forest dweller. Mandvi could not forget the discrimination faced by her in the palace.
The cycle of time w
No one could stop the pace of time, as the passing time, Mandvi's silence was increasing in exile. She could not even forget the treatment and humiliation that had happened to her. She could not get the love of adolescence, always got neglected feelings from her husband. After Rama's exile, Bharat had made up his mind to live outside the city as a forest dweller. Mandvi could not forget the discrimination faced by her in the palace.
The cycle of time was increasing, only the presence of a stranger could give some comfort to Mandvi. Ram was coming to Ayodhya today after fourteen years, as well as Bharat's vow was also fulfilled, the young man had known this. He left Mandvi till the palace and gave Naulakha necklace as a sign of his love.
When Ram felt the words of the washerman, he asked to leave Sita in the exile, then Mandvi's heart cried out. She was filled with anger and described herself as a victim of humiliation, as well as mentioned the justice and injustice done to Sita, but she was defeated by the fabric of the cruel society.
प्रेम..... इस शब्द में जितनी मिठास है. इसका दर्द उतना ही ज्यादा महसूस होता है. बूढी अम्मा किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक इस दर्द को सहती आई है. इनके प्रियतम ने किशोरावस्था, जवानी
प्रेम..... इस शब्द में जितनी मिठास है. इसका दर्द उतना ही ज्यादा महसूस होता है. बूढी अम्मा किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक इस दर्द को सहती आई है. इनके प्रियतम ने किशोरावस्था, जवानी में तो इसके प्रेम को समझा ही नहीं वृद्धावस्था में भी इनके निश्छल प्रेम ही हत्या कर दी थी. अन्तोत्गत्वा इस दर्द से राहत पाने के लिए. वह अलौकिक शक्तिओ की शरण में जाती है तथा अपने प्राणों की आहुति दे देती है. शायद संसार में प्रेम करने वालों का यही हश्र होता है.
यह कहानी सामाजिक परिवेश में पनपे उस विक्षिप्त भाव को दर्शाती है जिसमें आज भी लड़के-लड़की में भेद किया जाता है. लड़के-लड़की को आपस में बात करना पाप कहलाता है आज भी लड़कियों को बोझ समझा
यह कहानी सामाजिक परिवेश में पनपे उस विक्षिप्त भाव को दर्शाती है जिसमें आज भी लड़के-लड़की में भेद किया जाता है. लड़के-लड़की को आपस में बात करना पाप कहलाता है आज भी लड़कियों को बोझ समझा जाता है समाज में स्त्री को हमेशा से दूसरे दर्जे का समझा गया है ना पीहर उसका होता है ना ही ससुराल वह दोनों जगह ही पराई समझी जाती है अपनेपन को वह पहले भी तरसती रही और आज भी तरस रही है
ज़िंदगी रहस्यों का नाम है, न जानें कितने ही रहस्य इस दुनिया में है. कभी-कभी गाहे-बगाहे हमारी कल्पनाओं में घटित घटनाएँ यथार्थ के धरातल पर मूर्त होकर उभर आती है. हम उस कल्पना लोक में ख
ज़िंदगी रहस्यों का नाम है, न जानें कितने ही रहस्य इस दुनिया में है. कभी-कभी गाहे-बगाहे हमारी कल्पनाओं में घटित घटनाएँ यथार्थ के धरातल पर मूर्त होकर उभर आती है. हम उस कल्पना लोक में खोए चलते है जिसे हम काल्पनिक नहीं मानते ऐसा लगता है मानो वह सारा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने घटित हो रहा है. इस रहस्य रोमांच के कथा वृतांत में मेरे साथ भी यही हुआ जब मैंने चार ऊंट दोस्तों को देखा तो कल्पना ने उड़ान भरनी शुरू कर दी और वही उड़ान मुझे सचाई लगने लग आप सबसे अनुरोध है आप सब भी इस कल्पना लोक में विचरण करेंगे तो उसे यथार्थ मान बैठेंगे और अपनी सुध बुध भुला बैठेंगे जैसे मैं इस वक़्त भी उस यात्रा से अपने आपको जुदा नहीं कर पाई हूँ.
प्रेम..... इस शब्द में जितनी मिठास है. इसका दर्द उतना ही ज्यादा महसूस होता है. बूढी अम्मा किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक इस दर्द को सहती आई है. इनके प्रियतम ने किशोरावस्था, जवानी
प्रेम..... इस शब्द में जितनी मिठास है. इसका दर्द उतना ही ज्यादा महसूस होता है. बूढी अम्मा किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक इस दर्द को सहती आई है. इनके प्रियतम ने किशोरावस्था, जवानी में तो इसके प्रेम को समझा ही नहीं वृद्धावस्था में भी इनके निश्छल प्रेम ही हत्या कर दी थी. अन्तोत्गत्वा इस दर्द से राहत पाने के लिए. वह अलौकिक शक्तिओ की शरण में जाती है तथा अपने प्राणों की आहुति दे देती है. शायद संसार में प्रेम करने वालों का यही हश्र होता है.
यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसमें एक नारी को उसकी अपनी ही माता द्वारा दुःख मिलता है क्योंकि उसकी माता का मानना है कि उसका पुनर्जन्म हुआ है. उसकी मरी हुई बड़ी बहन ही उसके य
यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसमें एक नारी को उसकी अपनी ही माता द्वारा दुःख मिलता है क्योंकि उसकी माता का मानना है कि उसका पुनर्जन्म हुआ है. उसकी मरी हुई बड़ी बहन ही उसके यहां बेटी के रूप में जन्मी है. उसके पति को छीनने की चेष्टा कर रही है. माता का यही एहसास जीवन भर रहता है और वह उसे कभी अपनी बेटी नहीं मान पाती है. एक बेटी अपनी माँ के जिंदा रहते प्यार को तरस जाती है, मरते दम तक. पर अपनी माँ की नफरत को नहीं मिटा पाती. जिंदगी भर दुश्वारियों में जीती रहती है पर उसके माता-पिता या समाज का कोई भी पक्ष उसकी सुध नहीं लेता.
यह पुस्तक हमें समाज के उस क्रूर हिस्से को दर्शाती है जिसमें खून के रिश्ते केवल एक मनहूसियत के एहसास से ही खत्म हो जाते हैं.
गुड़िया के साथ जो हुआ वह लेखिका ने प्रत्यक्ष अनुभव किया है.
लेखिका ने उस दर्द को महसूस किया और उस दर्द को अपने शब्दों में पिरोने की चेष्टा की है.
ये कहानी हमे समाज के विभत्स रूप व माँ के द्वारा बेटी के साथ किये गए घृणित व्यवहार को दिखाती है
वक्त की रफ्तार को कोई ना रोक सका, गुजरता समय मांडवी के मौन वनवास को बढ़ाता जा रहा था. वह अपने साथ हुए बर्ताव व अपमान को भी भूल ना सकी थी. किशोरावस्था का प्यार उसे ना मिल पाया था, पति स
वक्त की रफ्तार को कोई ना रोक सका, गुजरता समय मांडवी के मौन वनवास को बढ़ाता जा रहा था. वह अपने साथ हुए बर्ताव व अपमान को भी भूल ना सकी थी. किशोरावस्था का प्यार उसे ना मिल पाया था, पति से हमेशा उपेक्षित भाव मिला. राम के वनवास जाने के पश्चात भरत ने नगर के बाहर वनवासी रूप में जीवन जीने का मन बना लिया था. महल में अपने साथ हुए भेदभाव को भी मांडवी भूल न पाई थी.
समय का चक्र बढ़ता जा रहा था, अजनबी युवक का सानिध्य ही मांडवी को थोड़ा सुकून दे पाता था. राम आज चौदह वर्ष पश्चात अयोध्या आ रहे थे, साथ ही भरत का प्रण भी पूरा हो गया था, युवक यह जान चुका था. उसने मांडवी को महल तक छोड़ दिया व अपने प्यार की निशानी नौलखा हार दे दिया.
धोबी के वचनों को दिल से लगा राम ने सीता को वनवास में छोड़ आने का कहा तो मांडवी का हृदय हाहाकार कर उठा. वह क्रोध से भर उठी और अपने आप को मान अपमान का शिकार तो बताया ही साथ ही सीता के साथ हुए न्याय-अन्याय का जिक्र भी किया, किंतु वह हार गई निष्ठुर समाज के ताने-बाने से.
अस्मिता अपने बच्चों के स्कूल जाने के बाद घर को बिखरा देख रही थी. उसका मन कुछ भी करने को नहीं कर रहा था. उसके कपड़े मैले Read More...
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