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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
युवा साहित्यकार श्री ओमप्रकाश गोंदुड़े 'पुष्पेय' का कहानी- संग्रह " नवोदय के रंग -- क़िस्से हास्टल के " समकालीन समाज में बच्चों के बचपन के एक विशेष पक्ष पर केंद्रित लघुकथा संग्रह ह
युवा साहित्यकार श्री ओमप्रकाश गोंदुड़े 'पुष्पेय' का कहानी- संग्रह " नवोदय के रंग -- क़िस्से हास्टल के " समकालीन समाज में बच्चों के बचपन के एक विशेष पक्ष पर केंद्रित लघुकथा संग्रह है । आज के समाज में
हमारे ' बचपन ' का यह विशेष पक्ष है विद्यालयों में शिक्षार्जन के लिए युवा शिक्षार्थियों का विद्यालयों से संबद्ध छात्रावासों, अथवा हास्टलों , में प्रवास । ' पुष्पेय' की इस पुस्तक में, पुस्तक के शीर्षक के अनुरूप, एक स्कूल के हास्टल के जीवन का , विभिन्न रोचक प्रसंगों, घटनाओं व संदर्भों के माध्यम से, अत्यंत सजीव चित्रण है।
' पुष्पेय ' का यह कहानी - संग्रह वास्तव में उनके अपने छात्रावास - जीवन पर आधारित, उत्तम - पुरुष कथ्यालंकार में लिखित ,कथात्मक - संस्मरणों का संकलन है।
युवा साहित्यकार श्री ओमप्रकाश गोंदुड़े 'पुष्पेय' का कहानी- संग्रह " नवोदय के रंग -- क़िस्से हास्टल के " समकालीन समाज में बच्चों के बचपन के एक विशेष पक्ष पर केंद्रित लघुकथा संग्रह ह
युवा साहित्यकार श्री ओमप्रकाश गोंदुड़े 'पुष्पेय' का कहानी- संग्रह " नवोदय के रंग -- क़िस्से हास्टल के " समकालीन समाज में बच्चों के बचपन के एक विशेष पक्ष पर केंद्रित लघुकथा संग्रह है । आज के समाज में
हमारे ' बचपन ' का यह विशेष पक्ष है विद्यालयों में शिक्षार्जन के लिए युवा शिक्षार्थियों का विद्यालयों से संबद्ध छात्रावासों, अथवा हास्टलों , में प्रवास । ' पुष्पेय' की इस पुस्तक में, पुस्तक के शीर्षक के अनुरूप, एक स्कूल के हास्टल के जीवन का , विभिन्न रोचक प्रसंगों, घटनाओं व संदर्भों के माध्यम से, अत्यंत सजीव चित्रण है।
' पुष्पेय ' का यह कहानी - संग्रह वास्तव में उनके अपने छात्रावास - जीवन पर आधारित, उत्तम - पुरुष कथ्यालंकार में लिखित ,कथात्मक - संस्मरणों का संकलन है।
कविता के भिन्न-भिन्न मूड है..जिसमे व्यंग , राजनीती,आक्रोश,गांव की भावनाए प्रधान हैं। समय के शिक्षक ने फिर ग़ज़ल लिखने की गुस्ताखी करने की हिम्मत दी । पिता का अंत्यसंस्कार , कलयुग क
कविता के भिन्न-भिन्न मूड है..जिसमे व्यंग , राजनीती,आक्रोश,गांव की भावनाए प्रधान हैं। समय के शिक्षक ने फिर ग़ज़ल लिखने की गुस्ताखी करने की हिम्मत दी । पिता का अंत्यसंस्कार , कलयुग की रामायण,कुत्तों का जाम आदि व्यंग हैं जो हमारी सामाजिक दशा को इंगित करने का प्रयास हैं । आओ बचपन जी कर देखे और यारों मेरा गांव खो गया… समय की मार को दर्शाती हैं। एक बूंद आंसू आक्रोश और शक्ति समेटने जरिया है। घर तथा घर और मकान खुद के रूह में झांकने की कोशिश है और मुठ्ठी भर धुप अपना आसमान ढूढ़ने की कोशिश हैं। साधारण आदमी की साधारण कलम से निकली सामान्य अनुभूतियों का संग्रह हैं।यह पुस्तक देश के सीमा पर तैनात सिपाहों को समर्पित है, जो बॉर्डर पर सिर कटाकर भी हमारी रक्षा करते हैं। इसी कड़ी में सिपाही का दर्द और सरबजीत की पीड़ा को इस किताब में शामिल किया गया है, जो आपके रूह को झकजोर देंगे। जब सीमा पर तैनात सिपाही मुलभुत सुविधाओं को तरसता है और कसाब जैसा आतंकवादी VIP सुविधाओं का इस्तेमाल कर पाता है। जब लोग जिन्दा आदमी की अहमियत नकारते है और मरने पर आंसू बहाते है संसाधन लुटाते है इस पर भी प्रहार है।किसी व्यक्ति,धर्म,संप्रदाय या विचारधारा का विरोध नहीं है, यह कविता संग्रह अपितु खुद के भीतर की विषमताओं से रूबरू होने का प्रयास है। भिन्न भिन्न अनुभूतियां ही किताब की आत्मा है।कविताए अलग अलग मूड से संलग्न हैं मगर दाना माँझी की व्यथा, मृत पत्नी को मीलों कंधे पर ले जाना इस पुस्तक प्रकाशन की वजह हैं.. जो समाज में प्रतीत होती हुई असमानताएँ तथा विरोधाभास पर आक्रमण हैं। यह एक यात्रा है कवितों की जो माँ से शुरू होकर पिता (एक उम्र तो लगती हैं ) पर रूकती हैं।
एक राजा था I उसके चार दोस्त थे I एक व्यापारी,एक सैनिक,एक ज्ञानी (विद्वान) और एक किसान था I एक सुबह वे सभी शिकार के लिये एक Read More...
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