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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palकवी-परिचय • पी. एचडी. पोस्ट-डॉक्टरेट (इम्पीरियल कॉलेज, लंदन). शोध क्षेत्र- इम्यूनोडाइग्नोस्टिक्स फॉर ट्यूबरक्लोसिस. • रिसर्चअनुभव => 17 वर्ष, रिसर्च पब्लिकेशंस = > २५ • 'राष्ट्रभाषा-पंडित', महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा महासभा, पुणे Read More...
कवी-परिचय
• पी. एचडी. पोस्ट-डॉक्टरेट (इम्पीरियल कॉलेज, लंदन). शोध क्षेत्र-
इम्यूनोडाइग्नोस्टिक्स फॉर ट्यूबरक्लोसिस.
• रिसर्चअनुभव => 17 वर्ष, रिसर्च पब्लिकेशंस = > २५
• 'राष्ट्रभाषा-पंडित', महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा महासभा, पुणे
• भारतीय हिंदी परिषद्, प्रयाग: आजीवन सदस्यता
• साहित्यिक योगदान (कवितायें + लेख) : 42 (27 +15)
• प्रकाशित पुस्तकें: सम्वेदनाओंको दस्तक, रंगभीनें मोती, प्रेम: निशब्द झरना,
कटाक्ष, भाव-विभोर
• प्रकाशित कविता 'करे समाजका नव-निर्माण'- पुस्तक: 'संकल्प'
• कविता ‘गजगामिनी की मौत’ (एक हाथीनि की मौत): फैकल्टी ऑफ़ आईटी
एंड कंप्यूटरसाइंस, पारुल यूनिवर्सिटी ,वड़ोदरा गुजरात द्वारा आयोजित
'इंटरनेशनल लेवल-पोएट्री कम्पटीशन’ फर्स्ट रैंक–काव्योत्सव २०२०-२1.
• कविता 'धीमी जिंदगी- रफ़्तार पकड़ ' अप्प्रेसिअशन सर्टिफिकेट: सुपर ७ द्वारा
आयोजित अखिल भारतीय काव्य प्रतियोगिता.
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Achievements
हमारी पुस्तक "कलम बोलती है साँझा संकलन" कलम बोलती है साहित्य परिवार का पहला सांझा संकलन है। इस पुस्तक में देश - विदेश के लगभग 94 रचनाकारों की रचनाएं शामिल है। जिसमें गीत, ग़ज़ल, मुक्
हमारी पुस्तक "कलम बोलती है साँझा संकलन" कलम बोलती है साहित्य परिवार का पहला सांझा संकलन है। इस पुस्तक में देश - विदेश के लगभग 94 रचनाकारों की रचनाएं शामिल है। जिसमें गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहा संग्रह, कविता आदि विधाओं की रचनाएं सम्मिलित हैं।
मनुष्य के जन्म के साथ और उसके जीवन के अंत तक मनुष्य का कईं भावोसे, रसोसें, रंगोंसे, भावनाओंसे परिचय होता हैं. कहीं तालमेल बैठता है तो कहीं टकराव, कहीं अलगाव, कहीं मिलाप. अलग अलग घटना
मनुष्य के जन्म के साथ और उसके जीवन के अंत तक मनुष्य का कईं भावोसे, रसोसें, रंगोंसे, भावनाओंसे परिचय होता हैं. कहीं तालमेल बैठता है तो कहीं टकराव, कहीं अलगाव, कहीं मिलाप. अलग अलग घटनायें और जीवन के विभिन्न अनुभवों में इन भावो के उच्चतर सीमा पर पहुंचने पर व्यक्ति/मानव जीवन के सभी रंगो का और रसोंका दर्शन करता हैं जो इन भाव-विभोर अवस्था को पार कर लेता है वो मानो जीवन के मर्म को कुछ हद तक समझ पाता हैं. हम हर भाव को किस अवस्था में जीते हैं, किस लेवल तक आनंद उठा सकते हैं, अपने पैशन या इंटरेस्ट या अपनी वीकनेस या स्ट्रेंथ को कितने स्तर तक ऊपर ले जा सकते है बस इसी कशमकश में हम अपना जीवन जीते है और उस भाव-भावना की अवस्था अनुरूप हमारा जीवन सफल या असफल रूपमें विकसित होता जाता है. हर भाव का अपने सीमा के उच्चतम स्तर पर पहुंचना भाव-विभोर अवस्था कहलायेगा.इस अवस्था में वो उस रस या भाव का असली मर्म-भाव जान पायेगा इसीलिये इस अवस्था को पार करने के बाद ही इंसान के जीवन में परिवर्तन (ट्रांसफॉर्मेशन) की शुरुआत होती है. कुछ हादसे, घटनायें जीवन की दिशा बदल देती है ये भी उसीका एक स्वरुप है. अपनी सोच को अच्छी उड़ान देने पर वो शीर्ष स्तर पर पहुंच कर अच्छा ही परिणाम देगा जिससे आपका जीवन भी आनंद-विभोर हो जायेगा.
इन परिवर्तनशाली, आविष्कारक, संवेदनशील मानवीय कल्पनाओंको को और उसकी उच्चतम सीमाओं (भाव-विभोर अवस्था) को समर्पित
सफलता-भौतिक उपभोग पाने के चक्कर में, मोडर्नाइज़ेशन (आधुनिकीकरण), प्रदर्शनवादी और मार्केटिंग दिखावे वाली सोच ने, सफल प्रोफेशनलिज्म बनने के चक्कर में, जल्दबाज़ी में आज हमनें कई सम
सफलता-भौतिक उपभोग पाने के चक्कर में, मोडर्नाइज़ेशन (आधुनिकीकरण), प्रदर्शनवादी और मार्केटिंग दिखावे वाली सोच ने, सफल प्रोफेशनलिज्म बनने के चक्कर में, जल्दबाज़ी में आज हमनें कई समझौते कर लिये है. हम रिश्तोंसें, व्यवहारोसें, यथार्थवादी भूमिगत जमीनीं सच्चाईयोसें, जीवन की मुलभुत वास्तविकता से, बुनियादी सिद्धांतोसें, अपनों से ऊब गयें यां उनसे दुरी बना ली हैं. हम अपने जीवन में और अपने आसपास होने वाली गतिविधियों पर केवल एक मूकदर्शक की भांति नजर रखतें है, कभी कभार सोशल मीडिया पर अपना उगाल निकल लेते हैं. सब वैसा ही चलता आ रहा हैं और होता रहेगा. हम पढ़ेलिखेँ अनपढ़ या पढ़ेलिखेँ गंवार कहलायें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
हम सब सच्चाईयां जानतें हैं, अपनी गलतियां भी, पर क्यां करें? की हम कुछ नहीं जानतें ?
गहराईसे विश्लेषण करें तो हम बहुत कुछ खोतेँ चले जा रहे हैं, चाहें जल्द बाज़ी में, सफलता का शिखर छूना हो या क्षणिक सुख पाना हो हम जल्दी समझौता कर रहे है जीवन की बुनियादी चीजोंसे, सुखोसें, मूल्योंसें और सिद्धांतोसें ....
इन्हें बचानें और व्यवस्था में अगर सकारात्मक बदलाव/परिवर्तन हेतू न्यायोचित बातों को समर्थन करना होगा. राजहंस की तरह सही न्यायोचित को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखनी होगी. सामजिक विक्षिप्तता, विसंगतियां और बुराइयां अगर गलत हैं तो गलत माननी पड़ेगीं, उनपर कडां प्रहार करना पड़ेगा और सुधारनी पड़ेगी.
प्रेम बिना जीवन अपूर्ण कहलाता है। मनुष्य जन्मे से लेकर मृत्यु के प्रवास तक प्रेम रूपी धागे से जीवन के हर पहलु में किसी से न किसी से जुड़ता है। खासकर युवा अवस्था जहाँ उसे किसी साथी
प्रेम बिना जीवन अपूर्ण कहलाता है। मनुष्य जन्मे से लेकर मृत्यु के प्रवास तक प्रेम रूपी धागे से जीवन के हर पहलु में किसी से न किसी से जुड़ता है। खासकर युवा अवस्था जहाँ उसे किसी साथी की - संग दिल की तलाश होती हैं, जहां से गुजरे बिना न जीवन पूरा माना जा सकता हैं, न आदमी प्रेम के बंधन से खुद को दूर रख पाता हैं। इस अवस्था में इंसान प्रेम की तलाश करता हैं, किसी से प्रेम की याचना तो किसी से सच्चा हमसफ़र बनने का निवेदन करता हैं, ऐसे समय या तो उसे मनचाहा प्रेम मिल जाता हैं या छूट जाता है (चाहे जो भी कारण हो)- ये अहसास उसके दिल में ऐसे कैद हो जाते हैं जिनसे न आदमी कभी छूट पाता हैं, न भुला पाता हैं, जीवन के अंत तक…
प्यार एक खुशनुमां अहसास हैं जो हर हाल में कुछ न कुछ सीखा जाता हैं, दिल पे निशां छोड़ जाता है .
समय के प्रवाह के साथ ये निःशब्द प्रेम-रूपी झरना हर प्रेमी-प्रेमिका के मन में अविरत बहते रहता है.
एक खुशनुमा अहसास के साथ....
इंसान सीखना चाहे या न सीखें, इतिहास ने हमेशा ये दर्शाया है केवल तलवारोसें जंग नहीं जीती गयी, संपत्ति से पुण्य नहीं ख़रीदा गया, काल चक्र पर किसी का जोर नहीं चलता, उदारता ने कभी हिंसा,
इंसान सीखना चाहे या न सीखें, इतिहास ने हमेशा ये दर्शाया है केवल तलवारोसें जंग नहीं जीती गयी, संपत्ति से पुण्य नहीं ख़रीदा गया, काल चक्र पर किसी का जोर नहीं चलता, उदारता ने कभी हिंसा, नफरत या दुश्मनी का दामन नहीं पकड़ा , मानव और प्रकृति का रिश्ता अटूट ही रहा, गुरु की महानता और पराक्रमी पुरुषोंकी, पशु -सैनिको की वफादारी, त्याग-वीरता का आकलन कोई नहीं कर सका।
ये वो रंग-भीनी मिटटी है जिसनें भगवान् को भी मजबूर किया अवतार लेने पर, जिन्हें मनुष्य रूप में इन सभी जीवन चक्र से गुजरना पड़ा और इतिहास का हिस्सा बनाना पड़ा।
ऐसे स्वर्णिम इतिहास को शतशः नमन
जिंदगी और प्रकृति के मुलभुत सिद्धांतो, तथ्यों, मूल्यों, संस्कारो, भूत-वर्तमान घटनाक्रम, बदलती परिस्थिति, कुछ सच्ची घटनायेँ और इन सबसे प्रभावित बदलता मानवीय स्वार्थी व्यव्हार, च
जिंदगी और प्रकृति के मुलभुत सिद्धांतो, तथ्यों, मूल्यों, संस्कारो, भूत-वर्तमान घटनाक्रम, बदलती परिस्थिति, कुछ सच्ची घटनायेँ और इन सबसे प्रभावित बदलता मानवीय स्वार्थी व्यव्हार, चंचल मन की संवेदना, व्यथा इन सभी बातोकों ध्यान में रखकर जीवन के अलग-अलग पहलू [रुख (बर्ताव-व्यवहार)], अलग रूप, अलग अंग, अलग रंग, अलग भाव, अलग-अलग मानवी मन की संवेदनायें इन आठ कविताओँ में गुँथी गयीं हैं, जो आठ बार दस्तक देगी मानवी संवेदनाओंको और उनको जागनें-सोचने-समझनें के लियें मजबूर करेगी ।
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